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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 10
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒मं स्तोमं॑ रोदसी॒ प्र ब्र॑वीम्यृदू॒दराः॑ शृणवन्नग्निजि॒ह्वाः। मि॒त्रः स॒म्राजो॒ वरु॑णो॒ युवा॑न आदि॒त्यासः॑ क॒वयः॑ पप्रथा॒नाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । स्तोम॑म् । रो॒द॒सी॒ इति॑ । प्र । ब्र॒वी॒मि॒ । ऋ॒दू॒दराः॑ । शृ॒ण॒व॒न् । अ॒ग्नि॒ऽजि॒ह्वाः । मि॒त्रः । स॒म्ऽराजः॑ । वरु॑णः । युवा॑नः । आ॒दि॒त्यासः॑ । क॒वयः॑ । प॒प्र॒था॒नाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं स्तोमं रोदसी प्र ब्रवीम्यृदूदराः शृणवन्नग्निजिह्वाः। मित्रः सम्राजो वरुणो युवान आदित्यासः कवयः पप्रथानाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। स्तोमम्। रोदसी इति। प्र। ब्रवीमि। ऋदूदराः। शृणवन्। अग्निऽजिह्वाः। मित्रः। सम्ऽराजः। वरुणः। युवानः। आदित्यासः। कवयः। पप्रथानाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 10
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    यमिमं स्तोमं रोदसी इव मित्रो वरुणोऽहं प्रब्रवीमि तमृदूदरा सम्राजोऽग्निजिह्वा युवान आदित्यासः कवयः पप्रथानाः शृणवन् ॥१०॥

    पदार्थः

    (इमम्) परमात्मानम् (स्तोमम्) प्रशंसनीयम् (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव सकलविद्यावेद्यं प्रकाशकं सर्वस्य धर्त्तारम् (प्र) (ब्रवीमि) उपदिशामि (ऋदूदराः) ऋत्सत्यमुदरे येषान्ते (शृणवन्) शृण्वन्तु (अग्निजिह्वाः) अग्निरिव प्रकाशमाना सत्योपदेशा जिह्वा येषान्ते (मित्रः) सर्वस्य सखा (सम्राजः) सम्यग्राजमानाः (वरुणः) श्रेष्ठः (युवानः) प्राप्तयुवावस्थाः (आदित्यासः) सूर्य इव पूर्णविद्याप्रकाशाः (कवयः) विक्रान्तप्रज्ञा मेधाविनः (पप्रथानाः) प्रख्याताः ॥१०॥

    भावार्थः

    यथा चक्रवर्त्ती राजा स्वाज्ञया सर्वं न्यायं प्रकाशितं करोति तथैवाऽऽप्ता विद्वांसोऽध्यापनोपदेशाभ्यां परमात्मानं तस्याज्ञां च प्रसिद्धां कुर्वन्ति। येऽष्टाचत्वारिंशद्वर्षपर्यन्तं ब्रह्मचर्यं कृत्वाऽखिलविद्या जायन्ते त एवैतद्वक्तुं श्रोतुं निश्चेतुमभ्यसितुं साक्षात्कर्त्तुं च शक्नुवन्ति ॥१०॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    जिस (इमम्) इस परमेश्वर (स्तोमम्) प्रशंसा करने योग्य और (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी के सदृश सम्पूर्ण विद्याओं से जानने योग्य प्रकाश और धारण करनेवाले का (मित्रः) सबका मित्र (वरुणः) श्रेष्ठ हम (प्र, ब्रवीमि) उपदेश देते हैं, उसको (ऋदूदराः) सत्य है हृदय में जिनके वे (सम्राजः) अच्छे प्रकार प्रकाशमान (अग्निजिह्वाः) अग्नि के सदृश प्रकाशमान सत्य के उपदेश देनेवाली जिह्वा है जिनकी वे (युवानः) युवा अवस्था को प्राप्त (आदित्यासः) सूर्य के सदृश पूर्ण विद्या से प्रकाशित (कवयः) तीव्र बुद्धि से युक्त (पप्रथानाः) प्रख्यात बुद्धिमान् लोग (शृणवन्) सुनो ॥१०॥

    भावार्थ

    जैसे चक्रवर्त्ती राजा अपनी आज्ञा से सम्पूर्ण न्याय को प्रकाशित करता है, वैसे ही यथार्थवक्ता विद्वान् लोग अध्यापन और उपदेश से परमेश्वर और उसकी आज्ञा को प्रसिद्ध करते हैं और जो लोग अड़तालीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य करके पूर्णविद्या युक्त हैं, वे ही इसके कहने सुनने निश्चय और अभ्यास करने और प्रत्यक्ष करने को समर्थ होते हैं ॥१०॥

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    विषय

    प्रभु का उपदेश किनने सुना!

    पदार्थ

    [१] हे (रोदसी) = द्यावापृथिवी-द्युलोक व पृथिवीलोक के मध्य रहनेवाले सब लोगो ! मैं (इमं स्तोमम्) = इस मन्त्रसमूह को तुम्हारे लिए (प्रब्रवीमि) = कहता हूँ । इन मन्त्रों द्वारा तुम्हारे कर्त्तव्यों का संकेत करता हूँ। [२] इस को उन्होंने ही (शृणवन्) = सुना जानो जो कि [क] (ऋदूदरा:) = कोमल उदरवाले हैं जिनका पेट मात्रा में भोजन के कारण सदा कोमल रहता है-जो कभी अतिभोजन नहीं करते। [ख] (अग्निजिह्वाः) = जो अग्नि के समान तेजस्वी जिह्वावाले हैं- प्रकाश को प्राप्त करानेवाले ज्ञानोपदेश को करनेवाले हैं, अथवा जो अग्नि को ही जिह्वा स्थानीय बनाते हैं, अर्थात् यज्ञ करके [अग्नि में आहुति देकर] यज्ञशेष का ही सेवन करते हैं। [ग] (मित्रः) = जो सब के साथ स्नेह से वर्तता है अथवा मृत्यु व रोगों से अपना रक्षण करता है [प्रमीते: त्रायते] । [घ] (सम्राजः) = जो अपने सब कार्यों को सम्यक् व्यवस्थित [regulated] करते हैं । [ङ] (वरुणः) = जो अपने को पाप से रोकता है किसी से द्वेष नहीं करता, [च] (युवान:) = जो दुरित से अपने को अमिश्रित व सुवित से अपने को मिश्रित करते हैं [यु मिश्रणामिश्रणयोः] । [छ] (आदित्यासः) = जो सब जगह से गुणों का आदान करते हैं। [ज] (कवयः) = क्रान्तप्रज्ञ बनते हैं तथा [झ] (पप्रथानाः) = अपनी शक्तियों का विस्तार करते हैं अथवा हृदय को विशाल बनाते हैं। [३] ऋदूदर आदि नौ व्यक्तियों ने ही वस्तुतः प्रभु के उपदेश को सुना। जो ऋदूदर आदि नहीं बने उन्होंने इस वेदज्ञान को क्या सुना ! वेदज्ञान यदि उनके जीवन में नहीं आया तो सुना भी अनसुना ही हो गया।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रभु के उपदेश को सुनें। यह हमें 'ऋदूदर, अग्निजिह्व, मित्र, सम्राट्, वरुण युवा, आदित्य, कवि व पप्रथान' बनाएगा। कितना ही सुन्दर वह जीवन होगा।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा चक्रवर्ती राजा आपल्या आज्ञेने संपूर्ण न्याय करतो तसेच यथार्थवक्ते विद्वान लोक अध्यापन व उपदेश करून परमेश्वराची आज्ञा प्रकट करतात व जे अठ्ठेचाळीस वर्षांपर्यंत ब्रह्मचर्य पाळून पूर्ण विद्यायुक्त बनतात तेच वचन, श्रवण, निश्चय व अभ्यास प्रत्यक्ष करण्यास समर्थ असतात. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O heaven and earth, I sing this song of divine praise and celebration for you. May simple and noble hearted people of natural truth and honesty, Mitra, universal friends, brilliant rulers and administrators, Varuna, powers of justice and discrimination, youth, Adityas, enlightened people of blazing genius, and poets of open and expansive mind and intelligence may hear this and proclaim the truth with a tongue of fire.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of God are started.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    I am a friend of all and trying to be exalted by nature. Preach about this most Praiseworthy God who like the heaven and earth is to be known by various sciences, Illuminator and Upholder of all. May those who have truth within themselves, whose tongue is luminous like the fire, preaching their divine virtues, youthful (energetic), endowed with full knowledge like the sun and are far-sighted. Such sages and renowned persons listen to it.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As a sovereign illuminates (administers) all justice by His Command, in the same manner, absolutely truthful reliable and enlightened person propagate knowledge about God and His commands through teaching and preaching. Those who become knowers of all sciences, by observing Brahmcharya up to the age of forty eight years (called do Aditya category), can talk about Him (God) can hear, take right decisions, practice Yoga and have direct perception about Him.

    Foot Notes

    (स्तोमम् ) प्रशंसनीयम् = Praiseworthy. (ऋदगः ) ऋत् सत्यमुदरे यषान्ते । = Those who have truth within themselves (lit have truth within their bellies). (पप्रथानाः) प्रख्याताः । = Famous renowned. (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव सकल विद्यावेद्यं प्रकाशक सर्वस्य धर्त्तारम् = God who is to be known by all sciences, Illuminator and Upholder of all.

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