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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 14
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विष्णुं॒ स्तोमा॑सः पुरुद॒स्मम॒र्का भग॑स्येव का॒रिणो॒ याम॑नि ग्मन्। उ॒रु॒क्र॒मः क॑कु॒हो यस्य॑ पू॒र्वीर्न म॑र्धन्ति युव॒तयो॒ जनि॑त्रीः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विष्णु॑म् । स्तोमा॑सः । पु॒रु॒ऽद॒स्मम् । अ॒र्काः । भग॑स्यऽइव । का॒रिणः॑ । याम॑नि । ग्म॒न् । उ॒रु॒ऽक्र॒मः । क॒कु॒हः । यस्य॑ । पू॒र्वीः । न । म॒र्ध॒न्ति॒ । यु॒व॒तयः॑ । जनि॑त्रीः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विष्णुं स्तोमासः पुरुदस्ममर्का भगस्येव कारिणो यामनि ग्मन्। उरुक्रमः ककुहो यस्य पूर्वीर्न मर्धन्ति युवतयो जनित्रीः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विष्णुम्। स्तोमासः। पुरुऽदस्मम्। अर्काः। भगस्यऽइव। कारिणः। यामनि। ग्मन्। उरुऽक्रमः। ककुहः। यस्य। पूर्वीः। न। मर्धन्ति। युवतयः। जनित्रीः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 14
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वक्तृविषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्वन्नुरुक्रमस्त्वं यथा स्तोमासोऽर्का भगस्येव कारिणो विद्वांसो यामनि पुरुदस्मं विष्णुं ग्मन्। यस्य युवतयो ककुहः पूर्वीर्जनित्रीर्न मर्धन्ति तथा त्वं वर्त्तस्व ॥१४॥

    पदार्थः

    (विष्णुम्) व्यापकम् (स्तोमासः) स्तावकाः (पुरुदस्मम्) पुरूणि बहूनि दुःखानि दस्मान्युपक्षीणानि यस्मात्तम् (अर्काः) पूजनीयाः (भगस्येव) ऐश्वर्यस्येव (कारिणः) कर्त्तुं शीलाः (यामनि) प्रापणीये मार्गे (ग्मन्) गच्छन्ति (उरुक्रमः) बहुपुरुषार्थः (ककुहः) महतीः। ककुह इति महन्ना०। निघं० ३। ३। (यस्य) (पूर्वीः) (न) निषेधे (मर्धन्ति) हिंसन्ति (युवतयः) प्राप्तयौवनाः (जनित्रीः) मातॄः ॥१४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये भगवदुपासका ईश्वराज्ञानुकूलवर्त्तमाना भगवन्तो भूत्वाऽहिंसामहतीर्भगवतीः प्राप्य दुःखान्तं गत्वा महत्सुखं प्राप्नुवन्ति ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब वक्ता के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (उरुक्रमः) बहुत पुरुषार्थवाले आप जैसे (स्तोमासः) स्तुति करनेवाले (अर्काः) पूजा करने योग्य (भगस्येव) ऐश्वर्य्य के तुल्य (कारिणः) करनेवाले विद्वान् लोग (यामनि) प्राप्त होने योग्य मार्ग में (पुरूदस्मम्) बहुत दुःख नाश हुए जिससे उस (विष्णुम्) व्यापक को (ग्मन्) प्राप्त होते हैं और (यस्य) जिसकी (युवतयः) युवावस्था को प्राप्त (ककुहः) बड़ी (पूर्वीः) प्राचीनकाल में वर्त्तमान (जनित्रीः) माताओं का (न) नहीं (मर्धन्ति) नाश करते हैं, वैसे आप वर्त्ताव करो ॥१४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग भगवान् की उपासना करनेवाले ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल वर्त्तमान, वे ऐश्वर्ययुक्त होकर नहीं नाश होनेवाली बड़ी लक्ष्मियों को प्राप्त हो दुःख के पार जाकर बड़े सुख को प्राप्त होते हैं ॥१४॥

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    विषय

    प्रभु का स्तवन व पूजन

    पदार्थ

    [१] हमारी (स्तोमासः) = स्तुतियाँ तथा (अर्का:) = पूजाएँ (पुरुदस्मम्) = अत्यन्त ही शत्रुओं को विनष्ट करनेवाले (विष्णुम्) = उस व्यापक प्रभु को (यामनि) = इस जीवनयात्रा में (ग्मन्) = प्राप्त होती हैं। वे स्तोम व पूजाएँ प्रभु को प्राप्त होती हैं, जो कि (भगस्य कारिणः इव) = ऐश्वर्य का सम्पादन करनेवाली हैं। इन स्तोमों व अर्को द्वारा हम वास्तविक ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं। [२] (उरुक्रमः) = वे प्रभु अत्यन्त विशाल पराक्रम व व्यवस्थावाले हैं (यस्य) = जिनकी आज्ञाओं, क्रमों व व्यवस्थाओं को (पूर्वी:) = ये पालन व पूरण करनेवाली, (युवतयः) = सदा युवति रहनेवाली व परस्पर असंकीर्ण [यु अमिश्रणे] (जनित्रीः) = सब प्राणियों व ओषधि वनस्पतियों को जन्म देनेवाली (ककुहः) = दिशाएँ (न मर्धन्ति) = हिंसित नहीं करतीं। सब दिशाएँ प्रभु की व्यवस्था में ही चलती हैं, उसी प्रभु का हम स्तवन व पूजन करते हैं। यह पूजन हमें भी उस भगवान् की तरह भगवाला बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब दिशाओं में प्रभु का ही शासन है। इस प्रभु का पूजन हमें ऐश्वर्य प्राप्त कराता है।

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    विषय

    उत्तम मुख्य पुरुष का स्थापन।

    भावार्थ

    (स्तोमासः) स्तुतिशील, विद्वान् (अर्काः) सूर्य के समान तेजस्वी और स्तुतिकर्त्ता लोग (भगस्य इव कारिणः) धन के निमित्त कार्यकर्त्ता भृत्य लोगों के समान (पुरुदस्मम्) बहुत से विघ्नों और दुष्ट पुरुषों को नाश करने में समर्थ (विष्णुम्) व्यापक, विस्तृत सामर्थ्य वाले पुरुष को (यामनि) राज्य के नियंत्रण के कार्य में (ग्मन्) प्राप्त करें (यस्य) जिस (उरुक्रमः) महान् आरम्भ वाले, पराक्रमी पुरुष की (ककुहः) सर्व दिशावासी बड़ी २ प्रजाएं भी (पूर्वीः) पूर्ण, समृद्ध वा अपने से पूर्व विद्यमान रहकर भी (युवतयः जनित्रीः) युवती स्त्रियों के समान (न मर्धन्ति) पीड़ित नहीं करतीं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्दः– १ निचृत्पंक्तिः। भुरिक् पंक्तिः। १२ स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ६, ८, १०, ११, १३, १४ त्रिष्टुप्। ४, ७, १५, १६, १८, २०, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। १९, २२ विराट्त्रिष्टुप्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे लोक ईश्वराची उपासना करणारे असतात ईश्वराच्या आज्ञेनुसार वागून ऐश्वर्ययुक्त होतात व शाश्वत लक्ष्मी प्राप्त करतात ते दुःख नाहीसे करून सुख भोगतात. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May our songs and yajakas, following the divine path of the creator of life’s honour and excellence, reach Vishnu, omnipresent lord of marvellous actions. Great is he, mighty his deeds and gifts. Even heaven and earth, dyavaprthivi, ancient and eternal, ever youthful mothers of life, cannot violate him.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    In praise of the speakers of truth.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Industrious learned person! your devotees are adorable; they do good desirable deeds for prosperity, take shelter in Omnipresent God who removes all miseries and tread upon the path of righteousness. And as young women and grand old mothers do not transgress the Commandments of that all-pervading Supreme Being, so you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who are devotees of God, dwelling obeying always in the commandments of the Supreme Being and possess real wealth of peace, self-control, endurance and knowledge etc, they attain great virtues like non-violence and truth and pass off misery', and enjoy great delight.

    Foot Notes

    (पुरुदस्मम् ) पुरूणि बहूनि दुःखानि दस्मान्युपक्षीणानि यस्मात्तम् । पुरु इति बहुनाम । ( N. G. 3,1) दसु उपक्षये (दिवा० ) = By whose communion all miseries are evaporated: (ककुहः ) महती: । ककुहं इति ་महन्नाम। (N.G.. 3, 3 ) = Big or great. (मर्धन्ति ) हिंसन्ति । = Violate.

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