Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 54 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    हि॒र॑ण्यपाणिः सवि॒ता सु॑जि॒ह्वस्त्रिरा दि॒वो वि॒दथे॒ पत्य॑मानः। दे॒वेषु॑ च सवितः॒ श्लोक॒मश्रे॒राद॒स्मभ्य॒मा सु॑व स॒र्वता॑तिम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यऽपाणिः॑ । स॒वि॒ता । सु॒ऽजि॒ह्वः । त्रिः । आ । दि॒वः । वि॒दथे॑ । पत्य॑मानः । दे॒वेषु॑ । च॒ । स॒वि॒त॒रिति॑ । श्लोक॑म् । अश्रेः॑ । आत् । अ॒स्मभ्य॑म् । आ । सु॒व॒ । स॒र्वऽता॑तिम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यपाणिः सविता सुजिह्वस्त्रिरा दिवो विदथे पत्यमानः। देवेषु च सवितः श्लोकमश्रेरादस्मभ्यमा सुव सर्वतातिम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यऽपाणिः। सविता। सुऽजिह्वः। त्रिः। आ। दिवः। विदथे। पत्यमानः। देवेषु। च। सवितरिति। श्लोकम्। अश्रेः। आत्। अस्मभ्यम्। आ। सुव। सर्वऽतातिम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे सवितस्सुजिह्वः पत्यमानस्त्वं दिवो विदथे देवेषु हिरण्यपाणिः सवितेवाऽस्मभ्यं यं सर्वतातिं श्लोकमश्रेस्तं चादा त्रिरा सुव ॥११॥

    पदार्थः

    (हिरण्यपाणिः) पाणिरिव हिरण्यं तेजो यस्य सः (सविता) सूर्य्यः (सुजिह्वः) शोभना जिह्वा यस्य सः (त्रिः) त्रिवारम् (आ) समन्तात् (दिवः) विद्युदादेः (विदथे) विज्ञाने (पत्यमानः) पतिरिवाचरन् (देवेषु) पृथिव्यादिषु (च) विद्वत्सु (सवितः) परमैश्वर्यप्रद (श्लोकम्) वाचम् (अश्रेः) आश्रय (आत्) आनन्तर्ये (अस्मभ्यम्) (आ) (सुव) जनय (सर्वतातिम्) सर्वमेव ॥११॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यो लोकानामधिष्ठाता वर्त्तते तथैव विद्वान् सर्वेषामध्यक्षो भवेत् ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (सवितः) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के दाता (सुजिह्वः) सुन्दर जिह्वायुक्त (पत्यमानः) पति के सदृश आचरण करते हुए ! आप (दिवः) बिजुली आदि के (विदथे) विज्ञान और (देवेषु) पृथिवी आदिकों में (हिरण्यपाणिः) हस्त के सदृश तेज से युक्त (सविता) सूर्य्य के सदृश (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये जिस (सर्वतातिम्) सम्पूर्ण ही (श्लोकम्) वाणि का (अश्रेः) आश्रय करिये उसको (च) और (आत्) अनन्तर (आ) सब ओर से (त्रिः) तीन बार (आ, सुव) उत्पन्न करो ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य लोकों का अधिष्ठाता है, वैसे ही विद्वान् सबका अध्यक्ष होवे ॥११॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'सर्वताति' के लिये याचना

    पदार्थ

    [१] गतमन्त्र के अनुसार प्रभु की वाणी को सुननेवाला वह है, जो कि [क] (हिरण्यपाणिः) = हितरमणीय कर्मों को हाथ में लिये हुए हैं- सदा हितकर कार्यों में प्रवृत्त है । [ख] (सविता) = जो अपने अन्दर सोम का सवन करता है वीर्यशक्ति को उत्पन्न करने के लिए यत्नशील होता है, [ग] (सुजिह्वः) = सदा शोभन शब्दों को बोलता है- उत्तम जिह्वावाला है। [घ] (दिवः त्रि:) = दिन में तीन बार (विदथे) = ज्ञानयज्ञ में (आपत्यमान:) = सर्वथा गतिवाला होता है। अधिक से अधिक अध्ययन की वृत्तिवाला बनता है । [२] हे (सवितः) = वेदज्ञान द्वारा प्रेरणा देनेवाले प्रभो! आप (च) = निश्चय से (देवेषु) = देववृत्तिवाले पुरुषों में ही (श्लोकम्) = इस यशस्वी ज्ञान को (अश्रेः)= सेवित कराइये-उन्हीं को यह वेदज्ञान दीजिए (आत्) = और अब (अस्मभ्यम्) = हम सबके लिए (सर्वतातिम्) = सब सद्गुणों के विस्तार को आसुव प्रेरित करिए, आपकी कृपा से हम अपने अन्दर सब सद्गुणों का विकास करनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के उपदेश को सुननेवाला 'हिरण्यपाणि, सविता व सुजिह्व' बनता है। प्रातः, मध्याह्न व सायं स्वाध्यायशील होता है। प्रभु देवों को यह ज्ञान दें और हम सबके लिए कल्याण करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उत्तम पिता के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (सवितः) ज्ञान और वीर्य द्वारा शिष्यों और पुत्रों को उत्पन्न करने हारे विद्वान् पुरुष ! एवं (सवितः) हे सूर्यवत् तेजस्विन् ! आप (देवेषु) विद्या और सुख की कामना करने वाले शिष्यों और पुत्र-जनों के हित के निमित्त अथवा देवों, विद्वानों में विद्यमान, (श्लोकम्) वेद-वाणी वा ज्ञान-वाणी को (अश्रेः) सेवन कर, उसका अभ्यास कर और (अस्मभ्यम्) हमारे हित के लिये (सर्वतातिम्) सब प्रकार के उत्तम ऐश्वर्य (आसुव) प्रदान कर। (सविता) सर्वप्रकाशक सूर्य जिस प्रकार (हिरण्यपाणिः) हाथों के समान तेजोयुक्त किरणों वाला होने से ‘हिरण्यपाणि’ है उसी प्रकार तेजोमय धातु ‘हिरण्य’ को अपने हाथ में रखने वाला या उस धातु से लोक-व्यवहार करने में समर्थ वा हित और रमणीय वचनों को प्रस्तुत करने वाली वाणी से युक्त ही (सविता) शिष्य पुत्रादि का उत्पादक विद्वान् आचार्य और पिता हो जो (सुजिह्वः) उत्तम वाणी वाला होकर (दिवः विदथे) ज्ञान प्रकाश के लाभ करने में (त्रिः) तीनों प्रकार से या ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ तीनों कालों में वा बाल, युवा, वार्धक्य तीनों दशाओं में (पत्यमानः) पति अर्थात् पालक के समान आचरण करता हो। (२) इसी प्रकार सविता पुत्रोत्पादक पिता या पुरुष भी स्त्री का पति होता हुआ धन धान्यवान्, उत्तम मधुर वाक्, दिन में तीन वार यज्ञ में विराजे। प्रातः सायं और मध्याह्न में बलिवैश्वदेव यज्ञ में वेद का अभ्यास करे और सब सुखप्रद पदार्थ लावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्दः– १ निचृत्पंक्तिः। भुरिक् पंक्तिः। १२ स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ६, ८, १०, ११, १३, १४ त्रिष्टुप्। ४, ७, १५, १६, १८, २०, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। १९, २२ विराट्त्रिष्टुप्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य गोलांचा अधिष्ठाता आहे तसेच विद्वानाने सर्वांचे अध्यक्ष बनावे. ॥ ११ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Savita, creator and giver of light and life, lord with the golden arms of sunrays and a noble tongue of fire, descends from the heavens thrice, protecting, sustaining and advancing us in our yajnic programmes of life. O lord of light, Savita, hear our song of celebration and exaltation, diffuse the light, sweetness and fragrance among the nobilities of humanity over earth and divinities of nature in space, and create and then bring us all round prosperity and well being.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a highly learned person are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O great scholar ! you give the great wealth of wisdom, are honey-tongued, acting like a master of knowledge of energy, earth and other objects, and like the resplendent sun (lit. the sun who has splendor like the hand). Give us good speech and grant all our noble desires. Give us knowledge thrice a day.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the sun is the Lord of all planets under its circle, in the same manner, a highly learned person should be the leader of all.

    Foot Notes

    (हिरण्यपाणिः) पाणिरिव हिरण्यं तेजो यस्य सः । तेजो वे हिरणयम् (तैत्तिरीये) स० 5, 1, 105 तैतिरीय सं० 1, 11, 8. काण्व स० 11, 4, 8)=The resplendent sun who has splendor like his hands. (दिवः) विद्युतादे: = Of electricity and other objects. (विदथे ) विज्ञाने । विद् ज्ञाने (अदा० ) = In the knowledge. The lesson should be repeated thrice in order to ingrain it in the mind or thrice a day, morning afternoon and night.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top