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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 13
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वि॒द्युद्र॑था म॒रुत॑ ऋष्टि॒मन्तो॑ दि॒वो मर्या॑ ऋ॒तजा॑ता अ॒यासः॑। सर॑स्वती शृणवन्य॒ज्ञिया॑सो॒ धाता॑ र॒यिं स॒हवी॑रं तुरासः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्युत्ऽर॑थाः । म॒रुतः॑ । ऋ॒ष्टि॒ऽमन्तः॑ । दि॒वः । मर्याः॑ । ऋ॒तऽजा॑ताः । अ॒यासः॑ । सर॑स्वती । शृ॒ण॒व॒न् । य॒ज्ञिया॑सः । धात॑ । र॒यिम् । स॒हऽवी॑रम् । तु॒रा॒सः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्युद्रथा मरुत ऋष्टिमन्तो दिवो मर्या ऋतजाता अयासः। सरस्वती शृणवन्यज्ञियासो धाता रयिं सहवीरं तुरासः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्युत्ऽरथाः। मरुतः। ऋष्टिऽमन्तः। दिवः। मर्याः। ऋतऽजाताः। अयासः। सरस्वती। शृणवन्। यज्ञियासः। धात। रयिम्। सहऽवीरम्। तुरासः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 13
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    सरस्वती विदुषी स्त्री यं सहवीरं रयिं विद्युद्रथा मरुत ऋष्टिमन्तो दिवो मर्य्या ऋतजाता अयासो यज्ञियासस्तुरासो विद्वांसः शृणवन् धात तथैतं शृणुयाद्दध्याच्च ॥१३॥

    पदार्थः

    (विद्युद्रथाः) विद्युद्युक्ता रथा यानानि येषान्ते (मरुतः) मरणधर्माणः (ऋष्टिमन्तः) बह्व्य ऋष्टयो गतयो विद्यन्ते येषान्ते (दिवः) कामयमानस्य (मर्याः) मनुष्याः (ऋतजाताः) ऋतेन सत्येन प्रसिद्धाः (अयासः) प्राप्तविद्याः (सरस्वती) सकलविद्यायुक्ता वाणी (शृणवन्) शृण्वन्तु (यज्ञियासः) शिल्पव्यवहारकर्त्तारः (धात)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (रयिम्) धनम् (सहवीरम्) वीरैः सह वर्त्तमानम् (तुरासः) सद्यः कर्त्तारः ॥१३॥

    भावार्थः

    यथा पुरुषा विद्याभ्यासं कुर्य्युस्तथैव स्त्रियोऽपि कृत्वा श्रीमत्यो भवन्तु उभये आलस्यं विहाय शिल्पविषयाणि सर्वाणि कर्माणि साध्नुवन्तु ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    (सरस्वती) विद्यायुक्त स्त्री जिस (सहवीरम्) वीर पुरुषों के सहित वर्त्तमान (रयिम्) धन को (विद्युद्रथाः) बिजुली से युक्त हैं वाहन जिनके वे (मरुतः) मरण धर्मवाले (ऋष्टिमन्तः) बहुत गतियों से युक्त (दिवस्य) कामना करते हुए के सम्बन्धी (मर्य्याः) मनुष्य (ऋतजाताः) सत्य से प्रसिद्ध (अयासः) विद्याओं को प्राप्त (यज्ञियासः) शिल्प व्यवहार के करनेवाले (तुरासः) शीघ्रकर्त्ता विद्वान् लोग (शृणवत्) सुनो और (धात) धारण करो, वैसे इसको सुने और धारण करे ॥१३॥

    भावार्थ

    जैसे पुरुष लोग विद्या का अभ्यास करें, वैसे ही स्त्रियाँ भी करके लक्ष्मीयुक्त हों। दोनों स्त्री और पुरुष आलस्य का त्याग करके शिल्पविषयक संपूर्ण कर्मों को सिद्ध करो ॥१३॥

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    विषय

    विद्युद्रथ बनना

    पदार्थ

    [१] (विद्युद्रथा:) = देदीप्यमान शरीररूप रथवाले, (ॠष्टिमन्तः) = 'इन्द्रिय, मन व बुद्धिरूप' उत्तम आयुधोंवाले, (मरुतः) = प्राणसाधना करनेवाले, (दिवः मर्याः) = [दीव्यति इति] ज्ञान से दीप्त और अतएव शत्रुओं को मारनेवाले [शत्रूणां मारयितारः], (ऋतजाताः) = ॠत द्वारा अपना विकास करनेवाले अथवा अपने जीवन में ऋत का विकास करनेवाले, (अयास:) = गतिशील, (सरस्वती) = ज्ञान के पुञ्ज [सरस्वती का रूप धारण करनेवाले] (यज्ञियासः) = यज्ञशील लोग (शृणवन्) = [गतमन्त्र में उल्लिखित] वेदज्ञान को सुनते हैं। वस्तुत: वेदज्ञान को सुननेवाले ऐसे बनते हैं। जो ऐसे बने, उन्होंने ही समझो वेदज्ञान को सुना। [२] प्रभु कहते हैं कि हे वेद ज्ञान को सुननेवाले (तुरास:) = [तुर्वी हिंसायाम्] काम-क्रोध आदि शत्रुओं का हिंसन करनेवाले लोगो ! (सहवीरं रयिम्) = वीरसन्तानों से युक्त धन को तुम धात धारण करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- वेदज्ञान के अनुकूल जीवन बनाने पर हम 'विद्युद्रथ' आदि विशेषणों से विशिष्ट जीवनवाले बनेंगे। उस समय हम वीरसन्तानों को प्राप्त करेंगे और ऐश्वर्य सम्पन्न भी होंगे।

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    विषय

    वीरों के कार्य।

    भावार्थ

    (विद्युत् रथाः) विद्युत् शक्ति से युक्त रथ वाले वा विद्युत् के समान वेग से जाने वाले, (मरुतः) वायुवत् बलवान् (ऋष्टिमन्तः) नाना ज्ञान, गतियों वा शत्रुहिंसक शस्त्रों को धारण करने वाले, (दिवः मर्या) तेजस्वी सूर्य के समान नायक सेनापति एवं कामनावान् पुरुष अधीन मनुष्य, शत्रुमारक (ऋतजाताः) ज्ञान और धनादि से प्रसिद्ध, (अयासः) ज्ञानवान्, निरन्तर चलने वाले, (यज्ञियासः) परस्पर सत्संग मैत्री आदि करके रहने वाले (तुरासः) वेगवान् पुरुष और (सरस्वती) उत्तम ज्ञान वाली स्त्री और वेगवती सेना ये सभी (शृणवन्) सुनें, ज्ञान ग्रहण किया करें और (सहवीरं रयिम्) वीर पुरुषों एवं पुत्रादि से युक्त ऐश्वर्य को (धात) धारण करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्दः– १ निचृत्पंक्तिः। भुरिक् पंक्तिः। १२ स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ६, ८, १०, ११, १३, १४ त्रिष्टुप्। ४, ७, १५, १६, १८, २०, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। १९, २२ विराट्त्रिष्टुप्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे पुरुष विद्येचा अभ्यास करतात तसाच स्त्रियांनीही करावा व श्रीमंत व्हावे. स्त्री-पुरुष दोघांनीही आळस सोडून शिल्पविषयक संपूर्ण कर्म सिद्ध करावे. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Stormy troops of Marut commandos riding electric chariots, strongly armed, brilliant, mortal fighters, truly disciplined, prompt and powerful, worthy of honour and reverence, lightning smart, and mother Sarasvati, mother of knowledge and language of command, may, we pray, listen and bring us wealth alongwith brave progeny.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of disciples are highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    May a learned lady listen to the wealth accompanied by good issues. They possess it like the brave men who have energy-driven cars, have various kinds of military movements and are renowned for their truthfulness, are highly learned, performers of the Yajnas and are good and prompt artists.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Like men the women also should study and possess good wealth. Both should give up laziness and accomplish technological or industrial schemes.

    Translator's Notes

    The use of the word विद्युद्रथा adjective for मरुत: (brave warriors) clearly refers to the vehicles driven by energy. Prof. Wilson assuming the Maruts are storm gods, translated it as the Maruts whose car are the lightning. Griffith's translation as "Borne on their flashing car", is a bit better. ऋष्टिमन्तः is from (तुदा०). So Rishi Dayananda Sarasvati has interpreted it here as बहु व्ययः ऋष्टयः -गतयों विद्यन्ते येषां ते । Because ॠष्टि also means spear and other arms, Prof. Wilson and Griffith have translated ऋष्टिमन्तः as “armed with spears" (Wilson) or "The spear-armed Maruts (Griffith). Rishi Dayananda Sarasvati has given that meaning in his commentary on Rig. 1.88.1. He writes on ॠष्टिमद्भिः कला भ्रामणार्थं यष्टि शस्त्रास्त्रादियुक्तैः। = Possessed of various kinds of arms and missiles. It however, means that Maruts are brave warriors ready to lay down their lives for defending their country and not storm gods as erroneously supposed by Prof. Maxmuller, Wilson, Griffith and other Western scholars.

    Foot Notes

    (विद्युद्रथाः) विद्युद्युक्ता रथा यानानि येषान्ते । Possessing cars in which electricity is used. (ऋष्टिमन्तः) यह्वयः ऋष्टयो गतयो विद्यन्ते येषान्ते = Who have various kinds of movements. (अयासः) प्राप्तविद्या:। = He who have acquired much knowledge, highly learned.. (यज्ञियासः) शिल्पव्यवहारकर्त्तारः। = Good artists.

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