ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
उ॒तो हि वां॑ पू॒र्व्या आ॑विवि॒द्र ऋता॑वरी रोदसी सत्य॒वाचः॑। नर॑श्चिद्वां समि॒थे शूर॑सातौ ववन्दि॒रे पृ॑थिवि॒ वेवि॑दानाः॥
स्वर सहित पद पाठउ॒तो इति॑ । हि । वा॒म् । पू॒र्व्याः । आ॒ऽवि॒वि॒द्रे । ऋत॑वरी॒ इत्यृत॑ऽवरी । रो॒द॒सी॒ इति॑ । स॒त्य॒ऽवाचः॑ । नरः॑ । चि॒त् । वा॒म् । स॒म्ऽइ॒थे । शूर॑ऽसातौ । व॒व॒न्दि॒रे । पृ॒थि॒वि॒ । वेवि॑दानाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उतो हि वां पूर्व्या आविविद्र ऋतावरी रोदसी सत्यवाचः। नरश्चिद्वां समिथे शूरसातौ ववन्दिरे पृथिवि वेविदानाः॥
स्वर रहित पद पाठउतो इति। हि। वाम्। पूर्व्याः। आऽविविद्रे। ऋतवरी इत्यृतऽवरी। रोदसी इति। सत्यऽवाचः। नरः। चित्। वाम्। सम्ऽइथे। शूरऽसातौ। ववन्दिरे। पृथिवि। वेविदानाः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे पृथिविवद्वर्त्तमाने राज्ञि ! ये सत्यवाचो वेविदानास्त्वां ववन्दिरे त्वा तव पतिं च वां शूरसातौ समिथे नरश्चिदिव ववन्दिरे उतो ऋतावरी रोदसीव पूर्व्या वां ह्याविविद्रे सा त्वं तांस्तञ्च सत्कुरु ॥४॥
पदार्थः
(उतो) अपि (हि) (वाम्) युवाम् (पूर्व्याः) पूर्वेषु कुशलाः (आविविद्रे) समन्ताल्लभन्ते (ऋतावरी) सत्यप्रापिकोषा (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव (सत्यवाचः) सत्या यथार्था वाग् येषान्ते (नरः) नायकाः (चित्) इव (वाम्) युवाम् (समिथे) सङ्ग्रामे (शूरसातौ) शूराणां विभागे (ववन्दिरे) आन्दन्तु (पृथिवि) भूमिवत्क्षमाशीले (वेविदानाः) भृशं प्रतिजानन्तः ॥४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। त एव राज्यं कर्त्तुमर्हन्ति ये सत्यमानाः सत्याचाराः सत्यवाचो जितेन्द्रिया विद्वांसः स्युस्ता एव राज्ञो भवितुमर्हन्ति याः पतिसदृश्यः स्युः ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (पृथिवि) भूमि के सदृश क्षमायुक्त राज्ञि ! जो (सत्यवाचः) यथार्थ वाणीवाले (वेविदानाः) अत्यन्त जानते हुए आपको (ववन्दिरे) प्रणाम करें और आप आपके स्वामी को (वाम्) आप दोनों (शूरसातौ) शूरवीर पुरुषों के विभाग और (समिथे) संग्राम में (नरः) अग्रणी पुरुषों के (चित्) सदृश प्रणाम करो और (उतो) भी (ऋतावरी) सत्य को प्राप्त करानेवाली स्त्री (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथिवी के सदृश (पूर्व्याः) प्राचीन जनों में चतुर पुरुष आप दोनों को (हि) और (आ, विविद्रे) सब प्रकार प्राप्त होते हैं वह स्त्री और आप उनका और उसका सत्कार करो ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वे ही लोग राज्य करने के योग्य हैं कि जो सत्य मानने, सत्य आचरण करने, सत्यवाणी बोलने और इन्द्रियों के जीतनेवाले विद्वान् जन होवें और वे ही रानी योग्य स्त्रियाँ हैं कि जो उक्त प्रकार के पति के सदृश होवें ॥४॥
विषय
स्वस्थ शरीर व ज्ञानदीप्त-मस्तिष्क का महत्व
पदार्थ
[१] (उतो) = और हे (ऋतावरी रोदसी) = ऋत व सत्यवाले द्यावापृथिवि ! (पूर्व्याः) = अपना पालन व पूरण करने में उत्तम (सत्यवाचः) = सत्यवाणीवाले लोग (हि) = निश्चय से (वां आविविद्रे) = आप से ही उस उस आपेक्षित अर्थ को प्राप्त करते हैं। सब अपेक्षित लाभ स्वस्थ शरीर व ज्ञानदीप्त मस्तिष्क से ही प्राप्य हैं । ऋत द्वारा नियमित्त आचरण द्वारा शरीर स्वस्थ होता है तो सत्य द्वारा मस्तिष्क ज्ञानदीप्त बनता है। ऐसा होने पर वस्तुतः हमारी सब सत्य कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। [२] (नरः) = उन्नतिपथ पर आगे बढ़नेवाले लोग (चित्) = निश्चय से (वेविदाना:) = द्यावापृथिवी का महत्त्व समझते हुए हे पृथिवि द्यावापृथिवि ! (शूरसातौ) = शूरों के लाभ के निमित्तभूत (समिथे) = संग्राम में (वां ववन्दिरे) = आप दोनों की वन्दना करते हैं। द्यावापृथिवी की वन्दना इन्हें स्वाध्याय व युक्ताहारविहार द्वारा दीप्त व स्वस्थ बनाना ही है। इस जीवनसंग्राम में इनका महत्त्व स्पष्ट है। जीवन संग्राम में शूरवीर ही विजयी बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - जीवन संग्राम में स्वस्थ शरीर व ज्ञानदीप्त मस्तिष्क का महत्त्व समझते हुए लोग इन्हें ऐसा बनाने का ही प्रयत्न करते हैं ।
विषय
(उत्तम) ज्ञान के वक्ता दुर्लभ हैं।
भावार्थ
हे (ऋतावरी) सदा सत्य ज्ञान, सत्याचरण और धनैश्वर्य के स्वामी (रोदसी) दुष्टों को रुलाने वाले वा प्रजाजनों को धारा को तटों के समान व्यवस्था में रखने वाले और सत्योपदेश करने वाले विद्वान् स्त्री पुरुषो ! (उतो हि) निश्चय से (पूर्व्याः) पूर्व के विद्वानों में कुशल (सत्यवाचः) सत्य वाणी वाले ऋषि लोग (वां) आप दोनों को (आविविद्रे) आदरपूर्वक प्राप्त करें। हे (पृथिवि) सबके आश्रय और उत्पादक पृथिवी के समान पूज्य देवि ! और (शूरसातौ) शूरवीर पुरुषों के प्राप्त करने योग्य (समिथे) संग्राम में (नरः चित्) सभी उत्तम नेता लोग (वां वेविदानाः) आप दोनों को प्राप्त करते हुए सदा (ववन्दिरे) स्तुति और अभिवादन करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्दः– १ निचृत्पंक्तिः। भुरिक् पंक्तिः। १२ स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ६, ८, १०, ११, १३, १४ त्रिष्टुप्। ४, ७, १५, १६, १८, २०, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। १९, २२ विराट्त्रिष्टुप्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. तेच लोक राज्य करण्यायोग्य असतात जे सत्यमानी, सत्याचरणी, सत्यवाणी, जितेन्द्रिय व विद्वान असतात व त्याच स्त्रिया राणी बनण्यायोग्य असतात, ज्या वरील प्रकारच्या पतीसारख्या असतात. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O heaven and earth, abiding in and by the universal law of existence, veteran sages of knowledge and voice of truth know you and obtain the fruit of their desire. O mother earth, the pioneers and leaders of humanity too, knowing both of you, in the battles of the brave and struggle for life’s prizes, achieve the jewels of their heart’s desire.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of duties of the administrators is emphasized.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O queen! you are like the earth (have forgiveness) honor those truthful and learned persons who bow before you and your husband and gladden you both in the battle-field. The brave leaders, experts in ancient sciences, show their velour, and attain your victory like the dawn touching the earth and heaven.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons are worthy of ruling over their subjects, who are truthful in thought, words and deeds and are self controlled. Only those ladies are capable queens who are noble like their husbands.
Foot Notes
(आविविद्र ) समन्ताल्लभन्ते । = Attain from all sides. (ऋतावरी ) सत्यप्रापिकोपा = Dawn which leads to truth (through meditation etc.) (समिथे ) । सङ्ग्रामे । समिथे इति संग्रामनाम (NG 2.17) In the battle field. (पृथिवि) भूमिवत्क्षमाशीले । = Of forgiving nature like the earth. (वेविदाना:) भृशं प्रतिजानन्तः । = Knowing much, highly learned.
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