ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 54/ मन्त्र 19
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
दे॒वानां॑ दू॒तः पु॑रु॒ध प्रसू॒तोऽना॑गान्नो वोचतु स॒र्वता॑ता। शृ॒णोतु॑ नः पृथि॒वी द्यौरु॒तापः॒ सूर्यो॒ नक्ष॑त्रैरु॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षम्॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वाना॑म् । दू॒तः । पु॒रु॒ध । प्रऽसू॑तः । अना॑गान् । नः॒ । वो॒च॒तु॒ । स॒र्वऽता॑ता । शृ॒णोतु॑ । नः॒ । पृ॒थि॒वी । द्यौः । उ॒त । आपः॑ । सूर्यः॑ । नक्ष॑त्रैः । उ॒रु । अ॒न्तरि॑क्षम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
देवानां दूतः पुरुध प्रसूतोऽनागान्नो वोचतु सर्वताता। शृणोतु नः पृथिवी द्यौरुतापः सूर्यो नक्षत्रैरुर्व१न्तरिक्षम्॥
स्वर रहित पद पाठदेवानाम्। दूतः। पुरुध। प्रऽसूतः। अनागान्। नः। वोचतु। सर्वऽताता। शृणोतु। नः। पृथिवी। द्यौः। उत। आपः। सूर्यः। नक्षत्रैः। उरु। अन्तरिक्षम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 54; मन्त्र » 19
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे पुरुध देवानां दूतः प्रसूतो भवान्त्सर्वताता नागान्नः पृथिव्यादिविद्या वोचतु। नक्षत्रैस्सहोर्वन्तरिक्षं सूर्य्यः पृथिवी द्यौरुतापो नः प्राप्नोतु अस्माकं वचांसि शृणोतु ॥१९॥
पदार्थः
(देवानाम्) विदुषाम् (दूतः) सत्याऽसत्यसमाचारदाता (पुरुध) यः पुरून् दधाति तत्सम्बुद्धौ (प्रसूतः) उत्पन्नः (अनागान्) अनपराधिनः (नः) अस्मान् (वोचतु) उपदिशतु (सर्वताता) सर्वानेव (शृणोतु) (नः) अस्मान् (पृथिवी) भूमिरिव क्षमा (द्यौः) विद्युदिव विद्या (उत) (आपः) जलानीव शान्तिः (सूर्य्यः) सवितेव विद्याप्रकाशः (नक्षत्रैः) कारणरूपेणाविनश्वरैः (उरु) व्यापकम् (अन्तरिक्षम्) आकाशमिवाऽक्षोभता ॥१९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये धर्मसभाऽधिकृतानां प्रेष्या उपदेशका सर्वान्त्सत्याऽसत्ये उपदिश्य धर्मात्मनः सम्पादयन्तु तेषां प्रश्नाञ्छ्रुत्वा समादधतु पृथिव्यादीनां सकाशात् क्षमादिगुणान् गृहीत्वाऽन्यान् ग्राहयित्वा पाखण्डं विनाश्य धर्मं प्रापय्य सर्वाञ्छिष्टान् कुर्वन्तु ॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (पुरुध) बहुतों को धारण करनेवाले (देवानाम्) विद्वानों के (दूतः) सत्य और असत्य समाचार के देनेवाले (प्रसूतः) उत्पन्न आप (सर्वताता) सबको ही (अनागान्) अपराध से रहित (नः) हम लोगों को भूमि आदि की विद्याओं का (वोचतु) उपदेश दीजिये और (नक्षत्रैः) कारणरूप से नहीं नाश होनेवालों के साथ (उरु) व्यापक (अन्तरिक्षम्) आकाश के सदृश नहीं हिलना (सूर्य्यः) सूर्य्य के समान विद्या का प्रकाश (पृथिवी) भूमि के सदृश क्षमा और (द्यौः) बिजुली के सदृश विद्या (उत) और (आपः) जलों के सदृश शान्ति (नः) हम लोगों को प्राप्त हो और हम लोगों के वचनों को (शृणोतु) सुनो ॥१९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। धर्म्मसभा के अधिकृत लोगों के आधीन में वर्त्तमान उपदेश देनेवाले सबको सत्य और असत्य का उपदेश देकर धर्मात्मा करें और उनके प्रश्नों को सुनके समाधान करें और पृथिवी आदिकों के समीप से क्षमा आदि गुणों का ग्रहण करके अन्यों को ग्रहण करा पाखण्ड का नाश और धर्म को प्राप्त कराके सबको श्रेष्ठ करें ॥१९॥
विषय
निष्पाप जीवन
पदार्थ
[१] (देवानां दूत:) = देवों का सन्देशवाहक वह प्रभु, देवों के लिए सन्देश को प्राप्त करानेवाला वह प्रभु (पुरुध) = अनेक प्रकार से (प्रसूत:) = हृदयों में प्रेरणा देनेवाला [प्रकृतं सूतं यस्य] है। वह (न:) = हमें (सर्वताता) = सब शक्तियों के विस्तार के निमित्त (अनागान् वोचतु) = इस प्रकार उपदेश करें कि हमारा जीवन निष्पाप बने । [२] (पृथिवी) = यह पृथिवी, (द्यौः) = द्युलोक (उत) = और (आपः) = जल, (सूर्यः) = सूर्य, (नक्षत्रैः) = नक्षत्रों के साथ (उरु अन्तरिक्षम्) = यह विशाल अन्तरिक्ष (नः) = हमारी (शृणोतु) = इस प्रार्थना को सुनें। सारा संसार हमारे लिए इस प्रकार अनुकूल हो कि हम प्रभु - प्रेरणा को सुनते हुए जीवन को निष्पाप बना पाएँ। इस निष्पाप जीवन में पृथिवी की तरह हम दृढ़ शरीरवाले बनें, द्युलोक की तरह दीप्त मस्तिष्कवाले हों, जलों की तरह रसमयी वाणीवाले हों, सूर्य की तरह ('पश्य सूर्यस्य श्रोमाणं यो न तन्द्रयते चरन्') आलस्यशून्य गतिवाले होकर चमकें, नक्षत्रों की तरह अपने मार्ग पर आक्रमण करनेवाले हों और अन्ततः इस विशाल अन्तरिक्ष की तरह अपने हृदयान्तरिक्ष को विशाल बनाएँ ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु प्रेरणा को सुनते हुए जीवनों को निष्पाप बनाने का प्रयत्न करें।
विषय
व्यवस्थापक न्यायाध्यक्ष के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(देवानां) देव, ज्ञानों का प्रकाश करने और ऐश्वर्यो के दान करने और तेजस्वी प्रकाशमान् पदार्थों के बीच में (दूतः) प्रतापी ज्ञानवान् (पुरुध) बहुत से ज्ञानों, धनों को धारण करने वाला, (प्रसूतः) उत्तम ऐश्वर्यवान्, उत्तम ज्ञानादि से अभिषिक्त होकर (अनागान् नः) अपराधों से रहित हम लोगों को (सर्वताता) सब प्रकार से (वोचतु) उपदेश करे। (पृथिवी) पृथिवी के समान माता, (द्यौः) आकाश के समान पिता, (सूर्यः) सूर्य के समान विद्वान् पुरुष, (नक्षत्रैः) नक्षत्रों सहित (उरु) विशाल (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष के समान नित्य गुणों से विराजमान प्रभु (उत आपः) और जलों के समान शान्त स्वभाव के आप्तजन ये सब (नः) हमारी बात (शृणोतु) श्रवण करें। अथवा पृथिवी के समान सर्वाश्रय सर्वोत्पादक, आकाश के समान महान्, जलों के समान शान्तिदायक, सर्वव्यापक सूर्य के समान तेजस्वी, नक्षत्रों सहित अन्तरिक्ष के तुल्य अल्प-वीर्य जीवों वा व्यापक नित्य गुणों सहित सर्वान्तर्यामी परमेश्वर वा नक्षत्रवत् अधीन भृत्यों वा प्रदीप्त गुणों सहित राजा वा न्यायाध्यक्ष हमारे कार्य-व्यवहार श्रवण किया करे और न्याय किया करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः॥ विश्वे देवा देवताः॥ छन्दः– १ निचृत्पंक्तिः। भुरिक् पंक्तिः। १२ स्वराट् पंक्तिः । २, ३, ६, ८, १०, ११, १३, १४ त्रिष्टुप्। ४, ७, १५, १६, १८, २०, २१ निचृत्त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। १९, २२ विराट्त्रिष्टुप्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. धर्मसभेच्या अधिकृत लोकांच्या अधीन असलेल्या उपदेशकांनी सर्वांना सत्य व असत्याचा उपदेश करून धर्मात्मा करावे व त्यांचे प्रश्न ऐकून समाधान करावे. पृथ्वीपासून क्षमा वगैरे गुण ग्रहण करावेत. इतरांनाही ग्रहण करण्यास लावावे. पाखंडाचा नाश करावा. धर्माचे पालन करावयास लावून सर्वांना श्रेष्ठ करावे. ॥ १९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, messenger of the devas, i.e., vibrations of the forces of nature and voice of the visionary teachers of the wisest of humanity, arisen many ways and bearing all-round knowledge, may speak to us in our state of open, uncoloured and unvitiated mind and bring us the tolerance and forgiveness of the earth, enlightenment of heaven, peace and coolness of waters, light and life giving vitality of the sun, and the vastness of expansive space with stars and planets. And may all these forces and personalities listen and perceive our signals and be in contact with us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of the enlightened persons are highlighted.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O upholder or sustainer of many ! you are the messenger of the enlightened persons and tell the story of truth and untruth with the consequences and morals. Give instructions to us who are sinless, about the science of the earth and other objects. Along with constellations which are imperishable in their causal form, let us attain forgiveness like the earth, vidya (knowledge) shining like the electricity, freedom from restlessness like the firmament, the light of knowledge like the sun and peace like water. Listen to our words of prayer.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of the preachers appointed by the authorities of the Dharma Sabha to make all persons righteous by preaching what is truth and untruth. They should solve their problems after hearing them properly. Let them take forgiveness and other virtues from the earth and prompt others to do likewise, destroying all sort of hypocrisy, leading men to Dharma (righteousness) and thus make all happy.
Foot Notes
(पृथिवी:) भूमिरिव क्षमा = Forgiveness like the earth. (द्यो :) विद्युदिव विद्या = Knowledge which is like electricity. (आपः ) जलानीव शान्तिः = Waters like the peace. (सूर्य्य:) सवितेव विद्याप्रकाश: = The light of knowledge.
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