ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 14
अ॒र्वा॒ची॒नो व॑सो भवा॒स्मे सु म॒त्स्वान्ध॑सः। सोमा॑नामिन्द्र सोमपाः ॥१४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्वा॒ची॒नः । व॒सो॒ इति॑ । भ॒व॒ । अ॒स्मे इति॑ । सु । म॒त्स्व॒ । अन्ध॑सः । सोमा॑नाम् । इ॒न्द्र॒ । सो॒म॒ऽपाः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्वाचीनो वसो भवास्मे सु मत्स्वान्धसः। सोमानामिन्द्र सोमपाः ॥१४॥
स्वर रहित पद पाठअर्वाचीनः। वसो इति। भव। अस्मे इति। सु। मत्स्व। अन्धसः। सोमानाम्। इन्द्र। सोमऽपाः ॥१४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 14
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे वसो इन्द्र ! अर्वाचीनः सोमपास्त्वमस्मेऽन्धसः सोमानां रक्षको भव सु मत्स्व ॥१४॥
पदार्थः
(अर्वाचीनः) इदानीन्तनः (वसो) वासकर्त्तः (भव) (अस्मे) अस्मासु (सु) (मत्स्व) आनन्द (अन्धसः) अन्नादेः (सोमानाम्) पदार्थानाम् (इन्द्र) राजन् (सोमपाः) यः सोममैश्वर्य्यं पाति सः ॥१४॥
भावार्थः
यो राजा प्रजापदार्थानां यथावद्रक्षां कुर्यात् स उत्तरकाले वृद्धसुखः स्यात् ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वसो) वास करनेवाले (इन्द्र) राजन् ! (अर्वाचीनः) इस काल में वर्त्तमान (सोमपाः) ऐश्वर्य्य की रक्षा करनेवाले आप (अस्मे) हम लोगों में (अन्धसः) अन्न आदि और (सोमानाम्) अन्य पदार्थों के रक्षक (भव) हूजिये और (सु, मत्स्व) उत्तम प्रकार आनन्द कीजिये ॥१४॥
भावार्थ
जो राजा प्रजा के पदार्थों की यथायोग्य रक्षा करे, वह आगे के समय में सुख की वृद्धियुक्त होवे ॥१४॥
विषय
'सोमानां सोमपाः'
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप ही (सोमानां सोमपा:) = इन सोमों के सर्वोत्कृष्ट पान करनेवाले हैं। शरीर में सोम का [वीर्य का] रक्षण आपके स्तवन द्वारा ही होता है। आपका स्तवन हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाता है और इस प्रकार सोम शरीर में सुरक्षित रहता है । [२] इसलिए हे (वसो) = हमारे निवास को उत्तम बनानेवाले प्रभो! आप (अस्मे) = हमारे लिए (अर्वाचीन: भव) = अभिमुख होइये हमें आभिमुख्येन प्राप्त होइये। और (अन्धसः) = इस सोम द्वारा (सुमत्स्व) = अत्यन्त आनन्दित करिए। सोमरक्षण से शरीर में नीरोगता, मन में निर्मलता व मस्तिष्क में ज्ञानदीप्ति को प्राप्त कराके आप हमें आनन्द प्राप्त कराइये ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु सोमरक्षण करनेवाले हैं। सोमरक्षण द्वारा वे हमारे जीवन को आनन्दित करते हैं। इस सोमरक्षण से ही तो हमारा निवास उत्तम होता है ।
विषय
राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (वसो) राष्ट्र में समस्त प्रजागण को बसाने हारे राजन् ! हे शिष्यों को अपने अधीन बसाने वाले आचार्य ! हे देह में वसने हारे आत्मन् ! (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे द्रष्टः ! तू (सोमपाः) अन्नादि ओषधि के तुल्य समस्त ऐश्वर्यों का पान, उपभोग करने हारा, सोमवत् प्रजाओं वा शिष्यों का पालक है । तू (अर्वाचीनः) हमें प्राप्त होकर (अस्मे) हमारे (अन्धसः) अन्न और (सोमानाम्) ऐश्वर्यो के उपभोग से (सु मत्स्व) अच्छी प्रकार आनन्द लाभ कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो राजा प्रजेच्या पदार्थांचे यथायोग्य रक्षण करतो तो पुढे सुखाची वृद्धी करणारा असतो. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, ancient, eternal and latest and immediate power and presence, haven and home for all, turn to us with divine favours, rejoice with us as guardian of the honour and excellence of humanity, giver and augmenter of food and freshness of energy and the creator and protector of the joy of life and ecstasy of living.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The ideal nature of teachers and preachers is described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O ruler! you abide in the minds of all your subjects. You guard our present prosperity and provide us complete security in respect of our food grains, clothes and ornaments etc. Obviously such actions delight you well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A king who guards and protects the life and property of the public, he ensures the prosperity of his kingdom very well and soon.
Foot Notes
(अर्वाचीनः) इदानीन्तनः। = Contemporary, pertaining to present times. (सोमपाः ) य: सोममैश्वर्यं पाति सः । = Sentinel or guard of the life and property. (अन्धस:) अन्नादे:। = Of the crops and food grains. (सुम्त्स्व) आनन्द। = Delight well.
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