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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    भृमि॑श्चिद्घासि॒ तूतु॑जि॒रा चि॑त्र चि॒त्रिणी॒ष्वा। चि॒त्रं कृ॑णोष्यू॒तये॑ ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भृमिः॑ । चि॒त् । घ॒ । अ॒सि॒ । तूतु॑जिः । आ । चि॒त्र॒ । चि॒त्रिणी॑षु । आ । चि॒त्रम् । कृ॒णो॒षि॒ । ऊ॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भृमिश्चिद्घासि तूतुजिरा चित्र चित्रिणीष्वा। चित्रं कृणोष्यूतये ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भृमिः। चित्। घ। असि। तूतुजिः। आ। चित्र। चित्रिणीषु। आ। चित्रम्। कृणोषि। ऊतये ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 2
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे चित्र ! तूतुजिर्भृमिस्त्वमूतये चित्रिणीषु चित्रमाकृणोषि चिदाघासि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥२॥

    पदार्थः

    (भृमिः) भ्रमणशीलः (चित्) अपि (घ) (असि) अभीष्टकारी भवसि (तूतुजिः) शीघ्रकारी (आ) (चित्र) आश्चर्यगुणकर्मस्वभाव (चित्रिणीषु) अद्भुतासु सेनासु (आ) (चित्रम्) अद्भुतम् (कृणोषि) (ऊतये) रक्षाद्याय ॥२॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यदि भवान्त्सर्वत्र भ्रमित्वा सद्यो न्यायं कृत्वा सर्वस्य रक्षां कुर्यात्तर्हि भवत आश्चर्याः प्रजा अद्भुतमैश्वर्यमुन्नयेयुः ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (चित्र) आश्चर्य्यवान् गुण, कर्म स्वभावयुक्त (तूतुजिः) शीघ्रकारी (भृमिः) घूमनेवाले आप (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (चित्रिणीषु) अद्भुत सेनाओं में (चित्रम्) अद्भुत व्यवहार को (आ, कृणोषि) करते हो (चित्) और (आ, घ, असि) अभीष्टकारी होते हो, इससे सत्कार करने योग्य हो ॥२॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जो आप सब जगह घूमके शीघ्र न्याय करके सब की रक्षा करें तो आपकी आश्चर्यजनक प्रजा अद्भुत ऐश्वर्य की उन्नति करे ॥२॥

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    विषय

    भूमि+तूतुजि

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! आप (चित् घ) = निश्चय से (भृमि:) = गलत मार्ग पर जा रहे सोम्य व्यक्तियों के मुख को मोड़कर उन्हें ठीक मार्ग पर ले चलनेवाले (असि) = हैं ['सोम्यानां भृमिरसि'] इस प्रकार ठीक मार्ग पर चलनेवाले इन सोम्य पुरुषों के (तूतुजि:) = वासनात्मक शत्रुओं का संहार करनेवाले हैं। [२] (आ) = और [आकारस्वार्थे सा०] चित्र हे [चित्र] सब ज्ञानों के देनेवाले प्रभो ! (चित्रिणीषु) = इन ज्ञानपूर्वक उत्तम कर्म करनेवाली प्रजाओं में (ऊतये) = रक्षण के लिए (चित्रम्) = चायनीय, पूजनीय, प्रशस्त, सुपथार्जित धन को (आकृणोषि) = सर्वथा करते हैं । इस धन द्वारा वे अपनी जीवनयात्रा को ठीक से पूरा कर पाती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- वे प्रभु मार्गदर्शक हैं, वासनाओं का संहार करनेवाले हैं। कर्मशील प्रजाओं को कार्यसाधक धन देते हैं ।

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    विषय

    राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे (चित्र) पूजनीय ! हे अद्भुत गुण-कर्म-स्वभाव ! तू (भृमिः) भ्रमणशील (चित्) होकर भी (चित्रिणीषु) आश्चर्यजनक कार्य करने वाली वा चित्र विचित्र, विविध सेनाओं और प्रजाओं में (तू-तुजिः) सबका पालक होकर (उतये) रज्ञा, गमन, कान्ति, स्वामित्व, धन प्राप्ति, दान, प्रजा वृद्धि आदि कार्यों के लिये (चित्र) विविध प्रकार का धन ज्ञान और बल (दधासि) धारण कर और (चित्रं कृणोषि) अद्भुत कार्य भी कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा! जर तू सर्व स्थानी फिरून तात्काळ न्याय करून सर्वांचे रक्षण केलेस तर तुझी प्रजा आश्चर्यकारक अद्भुत ऐश्वर्य वाढवील. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    You are ever on the move, harbinger of good, instant promoter, wondrous great in the fighting forces of awful power, and you do wonders in matters of protection and all round human progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The relationship between the ruler and his subjects are extensively described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O ruler! you are endowed with peculiar qualities actions and temperament. In order to ensure security of your kingdom, you move from pillar to post among your army formations and behave in a peculiar way. Because you fulfil our desires, hence you are worthy of honor or respect.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king! if you succeed in protecting your subjects by arranging mobile courts to administer justice quickly, then your people will certainly achieve miraculous progress.

    Foot Notes

    (भूमिः) भ्रमणशील: = Mobile, moving from place to place. (तूतुजि:) शीघ्रकारी। = Fast. (चित्रिणीषु) अद्भुतासु सेनासु । = Among the special army formations. (चित्रम्) अद्भुतम् । = Peculiar or strange.

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