ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 18
स॒हस्रा॑ ते श॒ता व॒यं गवा॒मा च्या॑वयामसि। अ॒स्म॒त्रा राध॑ एतु ते ॥१८॥
स्वर सहित पद पाठस॒हस्रा॑ । ते॒ । श॒ता । व॒यम् । गवा॑म् । आ । च्या॒व॒या॒म॒सि॒ । अ॒स्म॒ऽत्रा । राधः॑ । ए॒तु॒ । ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्रा ते शता वयं गवामा च्यावयामसि। अस्मत्रा राध एतु ते ॥१८॥
स्वर रहित पद पाठसहस्रा। ते। शता। वयम्। गवाम्। आ। च्यावयामसि। अस्मऽत्रा। राधः। एतु। ते ॥१८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 18
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे धनेश ! ते राधोऽस्मत्रैतु ते तव गवां सहस्रा शता वयमाच्यावयामसि ॥१८॥
पदार्थः
(सहस्रा) सहस्राणि (ते) तव (शता) शतानि (वयम्) (गवाम्) (आ) (च्यावयामसि) प्रापयामः (अस्मत्रा) अस्मासु (राधः) धनम् (एतु) प्राप्नोतु (ते) तव ॥१८॥
भावार्थः
हे धनाढ्य ! तव सकाशाद्वयं गवादीन् प्राप्याऽन्येभ्यो दद्मः। अस्माकं धनं भवन्तं प्राप्नोतु ॥१८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे धन के ईश (ते) आप का (राधः) धन (अस्मत्रा) हम लोगों में (एतु) प्राप्त हो और (ते) आपकी (गवाम्) गौ के (सहस्रा) हजारों और (शता) सैकड़ों समूह को (वयम्) हम लोग (आ, च्यावयामसि) प्राप्त कराते हैं ॥१८॥
भावार्थ
हे धनाढ्य ! आपके समीप से हम लोग गौ आदि पदार्थों को प्राप्त होकर औरों के लिये देते हैं और हम लोगों का धन आपको प्राप्त हो ॥१८॥
विषय
ज्ञानैश्वर्य की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे प्रभो ! गतमन्त्र के अनुसार सोम का रक्षण करके, उस सोम से ज्ञानाग्नि की दीप्ति द्वारा (वयम्) = हम (ते) = आपकी (गवाम्) = वेदवाणियों के (शता सहस्त्रा) = सैंकड़ों व हजारों को (आच्यावयामसि) = अपने अन्दर प्राप्त करते हैं। सुरक्षित सोम से बुद्धि की तीव्रता प्राप्त होती है। इस तीव्र बुद्धि से हम ज्ञानवाणियों को प्राप्त करते हैं । [२] हे प्रभो ! (ते राधः) = आपका यह ज्ञानैश्वर्य (अस्मत्रा एतु) = हमारे जीवन में प्राप्त हो । इस ज्ञानैश्वर्य द्वारा ही हम अपने जीवनों को पवित्र व सफल बना पाएँगे।
भावार्थ
भावार्थ- हम शतशः ज्ञानवाणियों को प्राप्त करें। प्रभु का ज्ञानैश्वर्य हमारे जीवन की सफलता का साधन बने।
विषय
राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे राजन् ! धनाधिपते ! (ते) तेरी (सहस्रा शता गवाम्) हज़ारों, सैकड़ों गौओं, भूमियों और वाणियों को (वयम्) हम लोग (आ च्यावयामसि) प्राप्त करें । (ते) तेरा (राधः) ऐश्वर्य (अस्मत्रा एतु) हमें प्राप्त हो । हमारे ऊपर तेरा ऐश्वर्य निर्भर हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे धनाढ्य लोकांनो! तुमच्याकडून आम्ही गाई वगैरे पदार्थ प्राप्त करून इतरांना देतो व आमचे धन तुम्हाला मिळते. ॥ १८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of excellence and beneficence, we activate and accelerate a hundred and thousand schemes of development of research and extension of knowledge, enrichment and fertility of lands and improvement of cows, other cattle wealth and milk products, and hope that the wealth and prosperity of your social order would benefit us all.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Again the subject of teachers and preachers is brought in.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O master of wealth! let us get plenty of wealth from you. In fact, it is we, who get you cattle wealth in large numbers.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O master of wealth! we get from you cattle wealth and other forms of wealth resources. In return, we are inclined to give you our wealth of wisdom.
Foot Notes
(सहस्त्रा शता) सहस्त्राणि शतानि । = In hundred and thousand. (गवाम्) गौआदि पशूनाम् । = Cattle wealth. (आच्यावयामसि ) प्रापयामः । = Get. The teachers and preachers receive wealth in cash and kind from the rich persons, and in return they should give good teachings and preachings to them. Here addressing a wealthy man in the mantra is thus related to the subject referred to in the intro of the mantra.
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