ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 15
अ॒स्माकं॑ त्वा मती॒नामा स्तोम॑ इन्द्र यच्छतु। अ॒र्वागा व॑र्तया॒ हरी॑ ॥१५॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्माक॑म् । त्वा॒ । म॒ती॒नाम् । आ । स्तोमः॑ । इ॒न्द्र॒ । य॒च्छ॒तु॒ । अ॒र्वाक् । आ । व॒र्त॒य॒ । हरी॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्माकं त्वा मतीनामा स्तोम इन्द्र यच्छतु। अर्वागा वर्तया हरी ॥१५॥
स्वर रहित पद पाठअस्माकम्। त्वा। मतीनाम्। आ। स्तोमः। इन्द्र। यच्छतु। अर्वाक्। आ। वर्तय। हरी इति ॥१५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 15
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! अस्माकं मतीनां स्तोमो यं त्वा आ यच्छतु स त्वमर्वाग्धरी आवर्त्तय ॥१५॥
पदार्थः
(अस्माकम्) (त्वा) त्वाम् (मतीनाम्) मननशीलानां मनुष्याणाम् (आ) (स्तोमः) स्तुतिः (इन्द्र) (यच्छतु) निगृह्णातु (अर्वाक्) पुनः (आ) (वर्त्तय) अत्र संहितायामिति दीर्घः । (हरी) अग्निजले अश्वौ वा ॥१५॥
भावार्थः
यं विद्याविनययुक्तं राजानं सर्वतः प्रशंसा प्राप्नुयात् स एव प्रजा नियन्तुं शक्नुयात् ॥१५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) राजन् ! (अस्माकम्) हम (मतीनाम्) विचारशील मनुष्यों की (स्तोमः) स्तुति जिन (त्वा) आपको (आ, यच्छतु) प्राप्त होवे वह आप (अर्वाक्) फिर (हरी) अग्नि जल वा घोड़ों को (आ, वर्त्तय) अच्छे प्रकार वर्त्ताइये ॥१५॥
भावार्थ
जिस विद्या और विनय से युक्त राजा को सब प्रकार प्रशंसा प्राप्त होवे, वही प्रजा को नियमयुक्त कर सके ॥१५॥
विषय
स्तवन व इन्द्रियों का प्रत्याहरण
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (मतीनाम्) = मननपूर्वक स्तवन करनेवाले (अस्माकम्) = हमारा (स्तोमः) = स्तुतिसमूह (त्वा आयच्छतु) = आपको हमारे में स्थापित करनेवाला हो, अर्थात् आपकी स्तुति द्वारा हम अपने हृदयों को आपका अधिष्ठान बना सकें। [२] आप (हरी) = ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप अश्वों को (अर्वाग् आवर्तय) = अन्तर्मुख वृत्तिवाला करिए। आपके स्तवन से हमारी इन्द्रियाँ बहिर्मुखी वृत्तिवाली न रहें। विषयव्यावृत्त होकर ये प्रत्याहत हों अन्दर ही स्थापित हों ।
भावार्थ
भावार्थ- मनन पूर्वक प्रभु का स्तवन हमारे हृदयों को प्रभु का अधिष्ठान बनाए । हमारी इन्द्रियाँ विषयव्यावृत्त होकर अन्तर्मुख यात्रावाली हों ।
विषय
राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! (मतीनां) मननशील, मतिमान् (अस्माकं) हम लोगों के वा हम में से मतिमान् पुरुषों का (स्तोमः) समूह वा उनका स्तुतियुक्त उत्तम वचन (त्वा) तुझे (यच्छतु) नियम में बांधे । तू (हरी) राष्ट्र स्त्री-पुरुष दोनों वर्गों को रथ में लगे अश्वों के तुल्य (अर्वाग् आ वर्त्तय) मर्यादा में चला ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या विद्या विनययुक्त राजाची सर्व प्रकारे प्रशंसा होते तोच प्रजेचे नियमन करू शकतो. ॥ १५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, may the song of praise and prayer composed by our wise poets rise and reach you, and then, we pray, turn the horses of your chariot hitherward to us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of teachers and preachers are further dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! the cheerings or applauses which we thoughtful persons offer to you may enable you to treat energy and water or train the horse-power well again and again.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
A king who is well skilled and humble, earns appreciation and admiration of every kind. Only such a ruler can discipline his subjects.
Foot Notes
(मतीनाम् ) मननशीलानां मनुष्याणाम् । = Of thoughtful persons. (स्तोम:) स्तुतिः = Cheerings. (वर्त्तय) अत्र सन्हितायामिति दीर्घ:। = Treat or train, (हरी) अग्निजले अश्वौ वा। = Energy and water or horses (or horse-power).
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