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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 9
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भि त्वा॒ गोत॑मा गि॒रानू॑षत॒ प्र दा॒वने॑। इन्द्र॒ वाजा॑य॒ घृष्व॑ये ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । त्वा॒ । गोत॑माः । गि॒रा । अनू॑षत । प्र । दा॒वने॑ । इन्द्र॑ । वाजा॑य । घृष्व॑ये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि त्वा गोतमा गिरानूषत प्र दावने। इन्द्र वाजाय घृष्वये ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। त्वा। गोतमाः। गिरा। अनूषत। प्र। दावने। इन्द्र। वाजाय। घृष्वये ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! ये गोतमा गिरा त्वाभ्यनूषत वाजाय घृष्वये दावने प्राऽनूषत तांस्त्वं प्रशंस ॥९॥

    पदार्थः

    (अभि) (त्वा) त्वाम् (गोतमाः) प्रशस्ता गोर्वाग्विद्यते येषान्ते। गौरिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (गिरा) वाण्या (अनूषत) स्तुवन्तु (प्र) (दावने) दात्रे (इन्द्र) राजन् (वाजाय) विज्ञानाऽन्नाद्याय (घृष्वये) घर्षिताय शुद्धाय ॥९॥

    भावार्थः

    यस्य प्रशंसां विद्वांसः कुर्वन्ति स एव प्रशंसितो मन्तव्यः ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) राजन् ! (गोतमाः) श्रेष्ठ वाणी से युक्त जन (गिरा) वाणी से (त्वा) आपकी (अभि, अनूषत) सब ओर से स्तुति करें (वाजाय) विज्ञान और अन्न आदि के (घृष्वये) घिसे अर्थात् शुद्ध और (दावने) देनेवाले के लिये (प्र) उत्तम प्रकार स्तुति करें, उनकी आप प्रशंसा करो ॥९॥

    भावार्थ

    जिसकी प्रशंसा विद्वान् जन करते हैं, वही प्रशंसित मानने के योग्य है ॥९॥

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    विषय

    गोतम द्वारा प्रभुस्तवन

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (गोतमाः) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाले पुरुष (गिरा) = इन ज्ञानवाणियों द्वारा (प्रदावने) = ज्ञानैश्वर्य के प्रकृष्ट दान के निमित्त (त्वा अभि) = आपका लक्ष्य करके (अनूषत) = स्तवन करते हैं। आपके स्तवन से ही वस्तुतः इस ज्ञानैश्वर्य की प्राप्ति होती है । [२] ये गोतम आपका स्तवन (वाजाय) = शक्तिप्राप्ति के लिए करते हैं और (घृष्वये) = शत्रुओं के घर्षण के लिए करते हैं। प्रभुस्तवन से यह स्तोता [=गोतम=प्रशस्तेन्द्रिय पुरुष] प्रभु की शक्ति से अपने को शक्तिसम्पन्न करता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं को कुचलनेवाला बनता है।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्रशस्तेन्द्रिय पुरुष प्रभु का स्तवन करके [क] ज्ञानैश्वर्य को प्राप्त करते हैं, [ख] शक्ति-सम्पन्न बनते हैं [ग] और काम-क्रोध आदि शत्रुओं को कुचलनेवाले होते हैं।

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    विषय

    राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यप्रद ! राजन् ! विद्वन् ! (घृष्वये वाजाय) अति घर्षण को प्राप्त, वादविवादादि से परिष्कृत, (वाजाय) वेग, बल, विद्युतादि शक्ति, प्रदीप्त धन और शुद्ध ज्ञान और अन्न के प्राप्त करने के लिये (गोतमाः) उत्तम भूमि के स्वामी, वाणी के ज्ञाता और विद्वान् पुरुष एवं बैलों वाले कृषक जन (दावने) दान प्राप्त करने के लिये (गिरा) वाणी से (त्वा अभि) तुझे लक्ष्य करके ( प्र अनूषत) खूब स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्याची प्रशंसा विद्वान लोक करतात तोच प्रशंसित मानण्यायोग्य आहे. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, lord ruler of the world and its wealth and power, the most enlightened scholars and celebrants praise and pray to you in the holiest words for the gift of food and energy, power and progress beyond challenge.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More about the teachers and preachers is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O ruler! the masters of excellent speech praise you everywhere. He does it for the sake of food grains and specialized knowledge which is not perishable. A philanthropist is very well admired and you should also emulate it.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Foot Notes

    (गोतमाः) प्रशस्ता गौर्वाग्विद्यते येषान्ते । गोरितिवाङ्नाम (NG 1, 11) = Those who are masters of nice speech and languages. (अनुषत) स्तुवन्तु। = Admire. (दावने ) दात्रे । = For a philanthropist. (घृष्वये ) घर्षितायशुद्धाय। = Not perishable or pure.

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