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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 16
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पु॒रो॒ळाशं॑ च नो॒ घसो॑ जो॒षया॑से॒ गिर॑श्च नः। व॒धू॒युरि॑व॒ योष॑णाम् ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रो॒ळास॑म् । च॒ । नः॒ । घसः॑ । जो॒षया॑से । गिरः॑ । च॒ । नः॒ । व॒धू॒युःऽइ॑व । योष॑णाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरोळाशं च नो घसो जोषयासे गिरश्च नः। वधूयुरिव योषणाम् ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरोळाशम्। च। नः। घसः। जोषयासे। गिरः। च। नः। वधूयुःऽइव। योषणाम् ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 16
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे वैद्यराज ! यो नो घसोऽस्ति तं पुरोळाशं च जोषयासे योषणां वधूयुरिव नो गिरश्च जोषयासे ॥१६॥

    पदार्थः

    (पुरोळाशम्) सुसंस्कृतान्नविशेषम् (च) (नः) अस्मभ्यम् (घसः) भोगः (जोषयासे) सेवय (गिरः) वाणीः (च) (नः) अस्माकम् (वधूयुरिव) (योषणाम्) भार्याम् ॥१६॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यो राजा स्त्रियं कामयमानः पतिरिव प्रजावाचः श्रुत्वा न्यायं करोत्यैश्वर्यञ्च दधाति स राष्ट्रे पूज्यो भवति ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे वैद्यराज ! जो (नः) हम लोगों के लिये (घसः) भोग है उसकी (पुरोळाशम्, च) और उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्नविशेष की (जोषयासे) सेवा कराओ और (योषणाम्) स्त्री को (वधूयुरिव) वधूयु अर्थात् अपने को वधू की चाहना करनेवाली के सदृश (नः) हम लोगों को (गिरः) वाणियों की (च) भी सेवा कराओ ॥१६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो राजा स्त्री की कामना करते हुए पति के सदृश प्रजा की वाणियों को सुन के न्याय करता और ऐश्वर्य को धारण करता है, वह राज्य में पूज्य होता है ॥१६॥

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    विषय

    यज्ञशेष का सेवन करें, ज्ञान में रुचिवाले हों -

    पदार्थ

    [१] प्रभु गतमन्त्र में की गई 'अर्वाग् आवर्तया हरी' इस प्रार्थना का उत्तर देते हुए कहते हैं कि हे जीव! तू (न:) = हमारे (पुरोडाशम्) = पुरोडाश को (च) = ही (घसः) = खानेवाला हो । 'पुरोडाश' वह भोजन है, जिसको कि प्रथम [पुर:] यज्ञ के लिए देकर [दाश्] यज्ञशेष के रूप में सेवन किया गया है। एवं पुरोडाश का सेवन करनेवाला व्यक्ति यज्ञशील होता है और सदा यज्ञशेष को खानेवाला होता है। इसकी कर्मेन्द्रियाँ यज्ञों में प्रवृत्त रहती हैं । [२] (च) = और हे जीव! तू (नः) = हमारी (गिरः) = इन वेदवाणियों का (जोषयासे) = प्रेमपूर्वक सेवन करनेवाला हो । तेरी ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञानप्राप्ति के पवित्र कार्य में लगी रहें। उसी प्रकार ज्ञान के प्रति ये प्रेमवाली हों, (इव) = जैसे कि (वधूयुः) = पत्नी की कामनावाला एक व्यक्ति (योषणाम्) = पत्नी को चाहता है। हम पति हों वेदवाणी को पत्नी के रूप में प्राप्त करें 'परीमे गामनेषत पर्यग्निमर्रुषत' । [३] वस्तुतः यज्ञादि कर्मों में लगी हुई कर्मेन्द्रियाँ ही सशक्त व पवित्र बनी रहती हैं और इसी प्रकार ज्ञानप्राप्ति में लगी हुई ज्ञानेन्द्रियाँ पवित्र रहती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सदा यज्ञशील बनकर यज्ञशेष का ही सेवन करें और ज्ञान की वाणियों में प्रीतिवाले हों।

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    विषय

    राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! तू (नः) हमारे (पुरोळाशं) आदर सत्कारपूर्वक दिये और उत्तम रीति से बनाये अन्न को (घसः) उपभोग कर । और (वधूयुः इव) वधू प्राप्त करने की कामना वाला पुरुष जिस प्रकार (योषणाम्) प्रेम युक्त स्त्री को प्रेम से स्वीकार करता है उसी प्रकार तू भी (नः) हमारी (गिरः च) वाणियों को भी (जोषयासे) स्वीकार कर । इत्येकोनत्रिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो राजा पत्नीची कामना करणाऱ्या पतीप्रमाणे प्रजेची वाणी ऐकून न्याय करतो व ऐश्वर्य देतो तो राज्यात पूजनीय ठरतो. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    And then taste the delicious sweets of our yajnic hospitality and enjoy the music of our song like a lover cherishing the company of his beloved.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    For a good ruler proper, utilization of teachers and preachers is stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    o doctor! you get us ideally hygienically and nutritiously prepared meals for our consumption. As a chaste wife is devoted to her husband, and he accepts her sincerely. Same way you listen attentively to our advice or petitions.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    A chaste wife is devoted to her loving husband and he accepts her advice or saying attentively. A good ruler also listens to the people's verdict and decides all the issues with justice. Such a king gets prosperous and is respected.

    Foot Notes

    (पुरोडाशम् ) सुसंस्कृतान्नविशेषम्। = Ideally and hygienically and nutritiously prepared meals. (घस:) भोग:। = Consumption. (जोषयासे) सेवय । = Get. (गिरः) वाणीः । = Verdict and petition. (वधूयुरिव ) प्रतिगुक्तम् धर्त्तारमिव = Like loving husband. (योषणाम् ) भार्याम् । = A chaste wife. The intro indicates the subject related to teachers and preachers. It may look superficially inconstant, when Swami Dayanand translates it as doctor. In fact a doctor is also a teacher and preacher, because he imparts education in healthcare and Medicare.

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