ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 32/ मन्त्र 21
भू॒रि॒दा ह्यसि॑ श्रु॒तः पु॑रु॒त्रा शू॑र वृत्रहन्। आ नो॑ भजस्व॒ राध॑सि ॥२१॥
स्वर सहित पद पाठभू॒रि॒ऽदाः । हि । असि॑ । श्रु॒तः । पु॒रु॒ऽत्रा । शू॒र॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । आ । नः॒ । भ॒ज॒स्व॒ । राध॑सि ॥
स्वर रहित मन्त्र
भूरिदा ह्यसि श्रुतः पुरुत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि ॥२१॥
स्वर रहित पद पाठभूरिऽदाः। हि। असि। श्रुतः। पुरुऽत्रा। शूर। वृत्रऽहन्। आ। नः। भजस्व। राधसि ॥२१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 32; मन्त्र » 21
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे शूर वृत्रहन् ! राजँस्त्वं हि भूरिदा असि तस्मात् पुरुत्रा श्रुतोऽसि यतस्त्वं नो राधसि तस्मादस्माना भजस्व ॥२१॥
पदार्थः
(भूरिदाः) बहुप्रदाः (हि) यतः (असि) (श्रुतः) सर्वत्र प्रसिद्धकीर्त्तिः (पुरुत्रा) बहुषु प्रतिष्ठितः (शूर) शत्रुहन्तः (वृत्रहन्) प्राप्तधन (आ) (नः) अस्मान् (भजस्व) सेवस्व (राधसि) संसाध्नोसि ॥२१॥
भावार्थः
योऽत्र जगति बहुदाता भवति स एव सर्वदिक्कीर्तिर्भवति ॥२१॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (शूर) शत्रुओं के नाश करनेवाले (वृत्रहन्) धन को प्राप्त राजन् ! आप (हि) जिससे (भूरिदाः) बहुत देनेवाले (असि) हो इससे (पुरुत्रा) बहुतों में प्रतिष्ठित और (श्रुतः) सब जगह प्रसिद्ध यशवाले हो जिससे आप (नः) हम लोगों को (राधसि) अच्छे प्रकार साधते हैं, इससे हम लोगों को (आ, भजस्व) अच्छे प्रकार सेवो ॥२१॥
भावार्थ
जो इस संसार में बहुत देनेवाला होता है, वही सम्पूर्ण दिशाओं में कीर्तियुक्त होता है ॥२१॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( शूर ) = महाबलवान् प्रभो! हे ( वृत्रहन् ) = अज्ञान नाशक परमेश्वर ! ( हि ) = निश्चय आप ( पुरुत्रा भूरिदा ) = सर्वत्र बहुत देनेवाले ( श्रुतःअसि ) = सुने गये हैं। ( नः ) = हमें ( राधसि ) = धन का ( आ भजस्व ) = सब ओर से भागी बनाओ।
भावार्थ
भावार्थ = हे अज्ञाननाशक महा पराक्रमी प्रभो ! वेदादि सच्छास्त्र और इनके ज्ञाता महानुभाव महात्मा लोग, आपको सदा बहुत देनेवाले बता रहे हैं। यह निश्चित है कि जो-जो पदार्थ आपने हमें दिये हैं और दे रहे हैं वे अनन्त हैं । हम याचक हैं आप महादानी हैं, अतएव हम आपसे वारंवार माँगते हैं। भगवन् ! आप हमें धन दो, बल दो, आयु दो, सुबुद्धि दो, शान्ति दो, सुख दो, मुक्ति दो ।
विषय
ऐश्वर्य के भागी बनें
पदार्थ
[१] हे (शूर) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले प्रभो ! आप (हि) = निश्चय से (भूरिदा:) = अत्यन्त देनेवाले (श्रुतः असि) = प्रसिद्ध हैं। हे (वृत्रहन्) = वासनाओं का संहार करनेवाले प्रभो! आप (पुरुत्रा) = पालन व पूरण करनेवाले के रूप में [पृ पालन-पूरणयोः] तथा रक्षक के रूप में [त्रा] प्रसिद्ध हैं। [२] हे प्रभो! आप (नः) = हमें (राधसि) = कार्यसाधक ऐश्वर्य में (आभजस्व) = भागी बनाइये। हमें आपकी कृपा से वह धन प्राप्त हो, जो कि सब कार्यों को सिद्ध करनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ– हे प्रभो! हम आपके ऐश्वर्य में भागी हों।
विषय
राजा सेनापति के प्रति प्रजा की नाना प्रार्थनाएं और और आकाक्षाएं । और राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में आचार्य के कर्त्तव्य । राजा से रक्षा, धन, ज्ञान, न्याय आदि की प्रार्थना ।
भावार्थ
हे (शूर वृत्रहन्) शूरवीर, विनकारी दुष्टों के नाश करने हारे ! तू (भूरिदा हि) बहुत ऐश्वर्यादि देने हारा (श्रुतः असि) प्रसिद्ध है । तू (नः) हमें (राधसि) अपने धन में (आ भजस्व) स्वीकार कर, हमें भी उसमें भागी बना ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १—२२ इन्द्रः । २३, २४ इन्द्राश्वौ देवते ॥ १, ८,९, १०, १४, १६, १८, २२, २३ गायत्री । २, ४, ७ विराङ्गायत्री । ३, ५, ६, १२, १३, १५, १६, २०, २१ निचृद्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री । १७ पादनिचृद्गायत्री । २४ स्वराडार्ची गायत्री ॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या जगात जो दाता असतो त्याची दिगंतरी कीर्ती पसरते. ॥ २१ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, destroyer of want and darkness, for sure you are the giver of immensity. Brave and magnificent, you command universal fame and glory. Come, we pray, bless us, you are the giver of success and glory.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Subject of teacher and preacher is dealt further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O brave ruler! you acquire wealth, and with it you donate freely. This makes you distinguished and famed. Because of this you look after us well. Hence you should look after us continuously.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
One who gives in donation substantially, his fame spreads everywhere.
Foot Notes
(भुरिदा:) बहुप्रदाः । = Giver of plenty. (श्रुतः) सर्वत्र प्रसिद्धकीर्तिं: । = Famed (पुरुत्रा ) बहुषु प्रतिष्ठितः । = Distinguished among many. (शूर) शत्रुहन्तः । = Killer of enemy. (वृत्रहन् ) प्राप्तधन। = One who has acquired wealth. (राधसि) संसाध्नोसि। = Look after well.
बंगाली (1)
পদার্থ
ভূরিদ্রা হ্যাসি শ্রুতঃ পুরুত্রা শূর বৃত্তহন্।
আ নো ভজস্ব রাধসি।। ২০।।
(ঋগ্বেদ ৪।৩২।২১)
পদার্থঃ হে (শূর) সর্বশক্তিমান পরমেশ্বর! হে (বৃত্তহন্) অজ্ঞতানাশকারী পরমেশ্বর! (হি) নিশ্চয়ই তুমি (পুরুত্রা ভূরিদ্রাঃ) সর্বত্র প্রভূত দানশীল (শ্রুতঃ অসি) বলে শুনেছি। (নঃ) আমাদের (রাধসি) ঐশ্বর্যের (আ ভজস্ব) অধিকারী করো ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে অজ্ঞতানাশকারী মহাপরাক্রমী পরমাত্মা! বেদাদি এবং তার জ্ঞাতা মহানুভব মহাত্মা ব্যক্তী তোমাকে সদা প্রভূত দানশীল বলে জানেন। এটা নিশ্চিত যে, যে পদার্থ তুমি আমাদের প্রদান করেছ এবং প্রদান করবে, তা অনন্ত। আমরা যাচক, তুমি মহাদানকারী! অতএব আমরা তোমার কাছে বারবার প্রার্থনা করি। হে ভগবান! তুমি আমাদের ধন দাও, বল দাও, জ্ঞান দাও, আয়ু দাও, সুবুদ্ধি দাও, শান্তি দাও, সুখ দাও, মুক্তি দাও।।২০।।
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