ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 12
ऋषिः - पायुर्भारद्वाजः
देवता - इषवः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
ऋजी॑ते॒ परि॑ वृङ्धि॒ नोऽश्मा॑ भवतु नस्त॒नूः। सोमो॒ अधि॑ ब्रवीतु॒ नोऽदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठऋजी॑ते । परि॑ । वृ॒ङ्धि॒ । नः॒ । अश्मा॑ । भ॒व॒तु॒ । नः॒ । त॒नूः । सोमः॑ । अधि॑ । ब्र॒वी॒तु॒ । नः॒ । अदि॑तिः । शर्म॑ । य॒च्छ॒तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋजीते परि वृङ्धि नोऽश्मा भवतु नस्तनूः। सोमो अधि ब्रवीतु नोऽदितिः शर्म यच्छतु ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठऋजीते। परि। वृङ्धि। नः। अश्मा। भवतु। नः। तनूः। सोमः। अधि। ब्रवीतु। नः। अदितिः। शर्म। यच्छतु ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः केन कीदृशानि शरीराणि कर्त्तव्यानीत्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् राजन् ! यो भवानृजीते स नः परि वृङ्धि सोमो यथा नोऽस्माकं तनूरश्मेव भवतु तथाऽधि ब्रवीतु, अदितिर्नः शर्म यच्छतु ॥१२॥
पदार्थः
(ऋजीते) ऋजु गच्छति (परि) सर्वतः (वृङ्धि) वर्धय (नः) अस्मान् (अश्मा) पाषाणवद् दृढम् (भवतु) (नः) अस्माकम् (तनूः) शरीरम् (सोमः) यः सुनोति स विद्वान् (अधि) उपरि (ब्रवीतु) उपदिशतु (नः) अस्मानस्मभ्यं वा (अदितिः) मातेव भूमिः (शर्म) सुखं गृहं वा (यच्छतु) ददातु ॥१२॥
भावार्थः
राजैव प्रयतेत यथा दीर्घब्रह्मचर्य्येण विषयासक्तित्यागेन व्यायामेन च क्षत्रियाणां शरीराणि पाषाणवत्कठिनानि स्युरुपदेशकाश्च सर्वानेवमेवोपदिशेयुर्येन सर्वे दृढशरीरात्मानो भवेयुः ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को किससे कैसे शरीर करने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् राजन् ! जो आप (ऋजीते) सीधे चलते हो वह (नः) हम लोगों को (परि, वृङ्धि) सर्व प्रकार वृद्धि देओ और (सोमः) जो ओषधियों का रस निकालनेवाला विद्वान् जैसे (नः) हम लोगों का (तनूः) शरीर (अश्मा) पत्थर के समान दृढ़ (भवतु) हो वैसा (अधि, ब्रवीतु) ऊपर ऊपर उपदेश करे और (अदितिः) माता के समान भूमि (नः) हम लोगों के लिये (शर्म) सुख वा घर (यच्छतु) देवे ॥१२॥
भावार्थ
राजा ऐसा प्रयत्न करे जैसे दीर्घ ब्रह्मचर्य्य से, विषायसक्ति के त्याग से और व्यायाम से क्षत्रियों के शरीर पाषाण के तुल्य कठिन हों और उपदेशक भी सबको ऐसा ही उपदेश करें, जिससे सब दृढ़ शरीर आत्मावाले हों ॥१२॥
विषय
वाणवत् सरल पुरुष का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( ऋजीते ) सरल, सूत्रे, सत्य न्याय मार्ग में चलने हारे विद्वन् ! सीधे जाने वाले वाण के समान तू ( नः ) हमें ( परि वृङ्धि ) रक्षा कर । ( नः ) हमारा शरीर ( अश्मा ) पत्थर या शिला के समान कठोर ( भवतु ) हो । ( सोमः ) विद्वान्, उत्तम शोस्ता (नः अधि ) हमारे ऊपर रह कर ( ब्रवीतु ) शासन करे । ( अदितिः ) अखण्डशासन और यह अदीन प्रजा वा भूमिमाता ( नः शर्म यच्छतु ) हमें सुख प्रदान करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
सोम-अदिति
पदार्थ
[१] छोड़ा हुआ बाण सीधे मार्ग से सरल रेखा में गतिवाला होता है । हे (ऋजीते) = [ऋजु गच्छति इति] बाण ! (नः परिवृद्धि) = हमें छोड़नेवाला हो, हमारे पर तू न पड़ । (नः तनूः) = हमारा शरीर तो (अश्मा भवतु) = पत्थर के समान हो। पत्थर पर जैसे बाण का प्रभाव नहीं होता, उसी प्रकार हमारे शरीर पर भी इनका प्रभाव न हो। [२] (सोमः) = [सोमो वै ब्राह्मण: तां० २३ | १६/५] सोम का सम्पादन करनेवाला, सोमरक्षण द्वारा अपनी ज्ञानाग्नि को दीप्त करनेवाला ब्राह्मण (नः) = हमारे लिये (अधि ब्रवीतु) = आधिक्येन उपदेश देनेवाला हो । (अदितिः) = [ पृथिवी नाम नि० १ । १] यह पृथिवी हमारे लिये (शर्म यच्छतु) = सुख को देनेवाली हो। ब्राह्मणों से दिये गये ज्ञानोपदेश के अनुसार हम अपने कार्य करेंगे, तो अवश्य यह राष्ट्र हमारे लिये सुखकर होगा, यह भूमि हमारे लिये कल्याण ही कल्याण को करेगी ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे शरीर बाणों के लिये अभेद्य हों। कवच आदि से सुरक्षित होकर हम अपना रक्षण कर पायें। ज्ञानियों के द्वारा दिये गये ज्ञान के अनुसार चलने से यह भूमि हमारे लिये सुखकर हो।
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने असा प्रयत्न करावा की, दीर्घ ब्रह्मचर्य, विषयासक्तीचा संग व व्यायाम करून क्षत्रियांची शरीरे पाषाणाप्रमाणे मजबूत व्हावीत व उपदेशकानेही सर्वांना असा उपदेश करावा की ज्यामुळे सर्वजण दृढ शरीर व आत्मायुक्त व्हावेत. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O ruler, let natural honesty and rectitude protect and promote us. Let our bodies be adamantine strong. Let soma, nectar juice of herbs, inspire us with its message of good health and rejuvenation. Let mother earth bless us with peace and comfort in a happy home.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What kind of bodies should be build by men and how-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O highly learned king! you who are Let the of upright nature drive away straight, disease from us. physician, who extracts the essence of various herbs and plants, give us instructions, as to how can our body become strong like the stone. May the earth, which is like our mother, give us happiness and good abode to live in.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The king should endeavor, in such a manner, that the bodies of the Kshatriyas (warriors) may become strong and firm like the stone, by the observance of Brahmacharya (abstinence) for a long period, renunciation of passions and exercise. The preachers should also give such teachings to all, so that all have strong and firm bodies and souls.
Foot Notes
(ऋजीते) ऋजु गच्छति। = He who goes straight, is a man of upright nature. (सोमः) यः सुनोति स विद्वान्। = One who extracts the essence of herbs and plants-a physician. (अदितिः) मातेव भूमिः। अदितिरदीना देवमातेति (NKT 4, 4,22) अदितिमतेति (Rig. 1, 89, 10 ) । माताभूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या ( Atharveda 12, 1, 10) = The earth which is like our mother.
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