ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 13
आ ज॑ङ्घन्ति॒ सान्वे॑षां ज॒घनाँ॒ उप॑ जिघ्नते। अश्वा॑जनि॒ प्रचे॑त॒सोऽश्वा॑न्त्स॒मत्सु॑ चोदय ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठआ । ज॒ङ्घ॒न्ति॒ । सानु॑ । ए॒षा॒म् । ज॒घना॑न् । उप॑ । जि॒घ्न॒ते॒ । अश्व॑ऽअजनि । प्रऽचे॑तसः । अश्वा॑न् । स॒मत्ऽसु॑ । चो॒द॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ जङ्घन्ति सान्वेषां जघनाँ उप जिघ्नते। अश्वाजनि प्रचेतसोऽश्वान्त्समत्सु चोदय ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठआ। जङ्घन्ति। सानु। एषाम्। जघनान्। उप। जिघ्नते। अश्वऽअजनि। प्रऽचेतसः। अश्वान्। समत्ऽसु। चोदय ॥१३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 13
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राज्ञी सङ्ग्रामे किं कुर्य्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे अश्वाजनि राज्ञि ! त्वं ये वीरा एषां शत्रूणां सान्वा जङ्घन्ति जघनानुप जिघ्नते तान् प्रचेतसोऽश्वाञ्छूरान् समत्सु चोदय ॥१३॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (जङ्घन्ति) भृशं घ्नन्ति (सानु) अवयवान् (एषाम्) (जघनान्) नीचकर्मकारिणः (उप) (जिघ्नते) घ्नन्ति (अश्वाजनि) अश्वानां प्रक्षेप्त्रि (प्रचेतसः) प्रकृष्टं चेतो विज्ञानं येषां तान् (अश्वान्) महतो बलिष्ठान् (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (चोदय) प्रेरय ॥१३॥
भावार्थः
सङ्ग्रामे राजाभावे राज्ञी सेनापतिः स्याद्यथा राजा योधयितुं वीरान् प्रेरयेद्धर्षयेत्तथैव साऽप्याचरेत् ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर रानी सङ्ग्राम में क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अश्वाजनि) घोड़ों की पटकी देनेवाली रानी ! तू जो वीरजन (एषाम्) इन शत्रुओं के (सानु) अङ्गों को (आ, जङ्घन्ति) सब ओर से निरन्तर काटते हैं तथा (जघनान्) नीचकर्म करनेवालों को (उप, जिघ्नते) उपस्थित होकर मारते हैं उन (प्रचेतसः) उत्तम विज्ञानवाले (अश्वान्) बड़े बड़े बलवान् शूरवीर पुरुषों को (समत्सु) सङ्ग्रामों में (चोदय) प्रेरो ॥१३॥
भावार्थ
सङ्ग्राम में राजा के अभाव में रानी सेनापति हो और जैसे राजा युद्ध कराने को वीरों को प्रेरणा दे, वैसे ही वह भी आचरण करे ॥१३॥
विषय
अश्व चालक कशा का वर्णन।
भावार्थ
हे (अश्वाजनि) अश्वों को चलाने वाली, कशा के समान आज्ञादात्रि विदुषि ! राजसभे! तू ( अश्वान्) अश्वों के समान ( प्र चेतसः ) उत्तम ज्ञानवान्, विद्वान् पुरुषों को ( समत्सु ) संग्रामों और उत्तम आनन्द युक्त अवसरों पर ( चोदय ) सन्मार्ग में चला । जो विद्वान् लोग ( एषां ) इन दुष्ट शत्रु लोगों के ( सानु ) अवयवों पर (आ जङ्ङ्घन्ति) प्रहार करते और (जघनात्) नीच जनों, मारने वाले वा मारने योग्य शत्रु जनों को ( उप जिघ्नते ) मारने में समर्थ होते हैं उनको ( समत्सु चोदय ) संग्रामों में ठीक प्रकार से चला । जिस प्रकार कशा से अश्व को चलाते हैं उसी प्रकार उत्तम जनों को सन्मार्ग से चलाने वाली विदुषी स्त्री ऐसे वीरों को तैयार करे जो शत्रुओं के अंगों पर और अन्य हिंसकजनों को भी मारने में समर्थ हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
प्रतोदः
पदार्थ
[१] हे (अश्वाजनि) = [अश्व+अज्] अश्वों को गति देनेवाली व अश्वों पर फेंके जानेवाली कशे [चावुक] (प्रचेतसः) = प्रकृष्ट ज्ञानवाले समझदार सारथि तेरे द्वारा (एषाम्) = इन घोड़ों के (सानु) = सविथ प्रदेशों को [thigh] (आजङ्घन्ति) = आहत करते हैं। (जघनान्) = जघन प्रदेशों को [the hip and the coins] (उपजिघ्नते) = आहत करते हैं। [२] इस प्रकार हे कशे ! तू (अश्वान्) = इन घोड़ों को (समत्सु) = संग्रामों में (चोदय) = प्रेरित कर तेरे से आहत हुए हुए ये घोड़े तीव्रता से आगे बढ़नेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ- समझदार सारथि कशा के समुचित प्रयोग से घोड़ों को रणांगण में आगे तीव्रगतिवाला करता है।
मराठी (1)
भावार्थ
युद्धात राजा नसेल तर राणीने सेनापती व्हावे व जसा राजा युद्ध करण्याची वीरांना प्रेरणा देतो तसेच तिनेही आचरण करावे. ॥ १३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O inspirer of the brave like a goad, inspire the wise and brave warriors of the earth who break down the forces of these enemies of humanity and strike down the saboteurs and terrorists in the battles of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should a queen do in the battle-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O queen ! you who know how to train horses, urge upon those heroes to fight well in the battles. who sharply whip the organs of these enemies and kill the wicked evil-doers and who are mighty persons endowed with good knowledge.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
In the absence of the king ! let the queen be the Commander-in- Chief of the army in the battles. As a king should urge, encourage and inspire and gladden the heroes to fight, so she should also do.
Foot Notes
(अश्वाजनि) अश्वानां प्रक्षेपित । अज-गतिक्षेपणयोः (भ्वा.) = Trainer of the horses. (जघनान्) नीचकर्मकारिणः । = Evil-doers. (सानु) अवयवान् । = Organs or limbs of the body. (समत्सु) संग्रामेषु । समत्सु इति संग्रामनाम (NG 2, 17 ) = In the battles.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal