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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 75 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 1
    ऋषिः - पायुर्भारद्वाजः देवता - वर्म छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    जी॒मूत॑स्येव भवति॒ प्रती॑कं॒ यद्व॒र्मी याति॑ स॒मदा॑मु॒पस्थे॑। अना॑विद्धया त॒न्वा॑ जय॒ त्वं स त्वा॒ वर्म॑णो महि॒मा पि॑पर्तु ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जी॒मूत॑स्यऽइव । भ॒व॒ति॒ । प्रती॑कम् । यत् । व॒र्मी । याति॑ । स॒ऽमदा॑म् । उ॒पऽस्थे॑ । अना॑विद्धया । त॒न्वा॑ । ज॒य॒ । त्वम् । सः । त्वा॒ । वर्म॑णः । म॒हि॒मा । पि॒प॒र्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जीमूतस्येव भवति प्रतीकं यद्वर्मी याति समदामुपस्थे। अनाविद्धया तन्वा जय त्वं स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्तु ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जीमूतस्यऽइव। भवति। प्रतीकम्। यत्। वर्मी। याति। सऽमदाम्। उपऽस्थे। अनाविद्धया। तन्वा। जय। त्वम्। सः। त्वा। वर्मणः। महिमा। पिपर्तु ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ शूरवीराः किं धृत्वा किं किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वीर ! यज्जीमतूस्येव प्रतीकं वर्म भवति तेन वर्मी भूत्वा समदामुपस्थे याति अनाविद्धया तन्वा त्वं शत्रूञ्जय स वर्मणो महिमा त्वा पिपर्त्तु ॥१॥

    पदार्थः

    (जीमूतस्येव) मेघस्येव (भवति) (प्रतीकम्) प्रतीतिकरम् (यत्) यः (वर्मी) कवचधारी (याति) गच्छति (समदाम्) मदैस्सह वर्त्तन्ते येषु तेषां सङ्ग्रामाणाम् (उपस्थे) समीपे (अनाविद्धया) शस्त्रास्त्ररहितया (तन्वा) शरीरेण (जयः) (त्वम्) (सः) (त्वा) त्वाम् (वर्मणः) कवचस्य (महिमा) महत्त्वम् (पिपर्तु) पालयतु ॥१॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये मेघवत्सुन्दराणि कवचानि धृत्वा युद्धं कुर्वन्ति तेऽक्षतशरीराः शत्रूञ्जेतुं शक्नुवन्ति येन येन प्रकारेण शरीरे शल्यानि न प्राप्नुयुस्तं तमुपायं वीराः सदानुतिष्ठन्तु ॥१॥

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    हिन्दी (1)

    विषय

    अब उन्नीस ऋचावाले पचहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में शूरवीर किसे धारण कर क्या-क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे वीर ! (यत्) जो (जीमूतस्येव) मेघ के समान (प्रतीकम्) प्रतीति करनेवाला वर्म (भवति) होता है, उससे (वर्मी) कवचधारी होकर (समदाम्) अहङ्कारों के साथ वर्त्तमान सङ्ग्रामों के (उपस्थे) समीप (याति) जाता है तथा (अनाविद्धया) शस्त्रास्त्ररहित अर्थात् अनविधे (तन्वा) शरीर से (त्वम्) तुम शत्रुओं को (जय) जीतो (सः) सो (वर्मणः) कवच का (महिमा) महत्त्व (त्वा) तुम्हें (पिपर्तु) पाले ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मेघ के समान सुन्दर कवचों को धारण कर युद्ध करते हैं, वे घाव से रहित शरीरवाले हुए वैरियों को जीत सकते हैं, जिस-जिस प्रकार से शरीर में घाव करनेवाले नोकदार शस्त्र न प्राप्त हों, उन-उन उपायों का वीरजन सदैव आश्रय करें ॥१॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात कवच इत्यादीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे मेघांप्रमाणे सुंदर कवच धारण करून युद्ध करतात ते दृढ शरीर असणाऱ्या वैऱ्यांना जिंकू शकतात. शरीरावर घाव करणारी टोकदार शस्त्रे प्राप्त होणार नाहीत अशा उपायांचा वीरांनी सदैव आश्रय घ्यावा. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When a warrior in armour advances to the battle front of war he looks like a mighty rain cloud. Go forward with your body unhurt, win the battle, and may the grandeur of your armour protect and defend you in war and peace.

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