ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 8
र॒थ॒वाह॑नं ह॒विर॑स्य॒ नाम॒ यत्रायु॑धं॒ निहि॑तमस्य॒ वर्म॑। तत्रा॒ रथ॒मुप॑ श॒ग्मं स॑देम वि॒श्वाहा॑ व॒यं सु॑मन॒स्यमा॑नाः ॥८॥
स्वर सहित पद पाठर॒थ॒ऽवाह॑नम् । ह॒विः । अ॒स्य॒ । नाम॑ । यत्र॑ । आयु॑धम् । निऽहि॑तम् । अ॒स्य॒ । वर्म॑ । तत्र॑ । रथ॑म् । उप॑ । श॒ग्मम् । स॒दे॒म॒ । वि॒श्वाहा॑ । व॒यम् । सु॒ऽम॒न॒स्यमा॑नाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
रथवाहनं हविरस्य नाम यत्रायुधं निहितमस्य वर्म। तत्रा रथमुप शग्मं सदेम विश्वाहा वयं सुमनस्यमानाः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठरथऽवाहनम्। हविः। अस्य। नाम। यत्र। आयुधम्। निऽहितम्। अस्य। वर्म। तत्र। रथम्। उप। शग्मम्। सदेम। विश्वाहा। वयम्। सुऽमनस्यमानाः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 8
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः कुत्र स्थित्वा किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यथा सुमनस्यमाना वयं यत्राऽऽयुधं निहितं यत्राऽऽस्य वर्म यस्यास्य हविर्नाम तत्रेमं रथवाहनं शग्मं रथं च विश्वाहोप सदेम ॥८॥
पदार्थः
(रथवाहनम्) रथं वहन्ति येन तम् (हविः) आदातव्यम् (अस्य) (नाम) (यत्र) (आयुधम्) (निहितम्) स्थापितम् (अस्य) (वर्म) (तत्रा) अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (रथम्) रमणीयं यानम् (उप) (शग्मम्) सुखम् (सदेम) प्राप्नुयाम (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (वयम्) (सुमनस्यमानाः) सुष्ठु विचारं कुर्वन्तः ॥८॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं सुविचारेणाग्न्यादिसम्प्रयुक्तेनाऽऽयुधाद्यधिष्ठितेन रथेन सदा शत्रूँस्ताडयत ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य कहाँ ठहर कर क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जैसा (सुमनस्यमानाः) सुन्दर विचार करते हुए (वयम्) हम लोग (यत्र) जहाँ (आयुम्) शस्त्र (निहितम्) स्थापित किया वा जहाँ (अस्य) इसका (वर्म) कवच और जिस (अस्य) इसका (हविः) लेने योग्य (नाम) नाम है (तत्रा) वहाँ इस (रथवाहनम्) जिससे रथ चलाया जाता है उसको वा (शग्मम्) सुख को और (रथम्) रमणीय यान को (विश्वाहा) सब दिनों (उप, सदेम) प्राप्त होवें ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोग अच्छे विचार के साथ अग्नि आदि के सम्प्रयोग से बनाये हुए आयुधों से युक्त उत्तम यान द्वारा सर्वदैव शत्रुओं को ताड़ना देओ ॥८॥
विषय
युद्ध रथ ।
भावार्थ
( यत्र ) जिस में ( अस्य ) इस शूरवीर के ( रथवाहनं ) रथ को संचालित करने वाले यन्त्रादि उपकरण ( हवि:) अन्न और (नाम) शत्रुको नमाने वाले ( आयुधं ) अस्त्रादि और ( अस्य ) इस शूरवीर का ( वर्म ) कवच भी ( निहितम् ) रक्खे हों (तत्र) उस रथवत् राष्ट्र में हम ( सु-मनस्यमानाः ) शुभ चित्त वाले होकर रहें और (विश्वाहा) सब दिनों ( शग्मं ) सुखकारी ( रथम् ) रथ को ( सम ) प्राप्त हों, रथ पर सवारी करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
रथः
पदार्थ
[१] (यत्र) = जहाँ रथ में (अस्य) = इस शूरवीर के (रथवाहनम्) = रथ को संचालित करनेवाले उपकरण, (हविः) = अन्न और नाम (आयुधम्) = शत्रुओं को नमानेवाले अस्त्र (निहितम्) = रखे हैं और (अस्य) = इस योद्धा का (वर्म निहितम्) = कवच रखा है। वस्तुतः रथ का सभी युद्धोपकरणों से युक्त होना आवश्यक ही है। [२] (तत्र) = वहाँ (वयम्) = हम (विश्वाहा) = सदा (सुमनस्यमानाः) = उत्तम मनवाले होते हुए (शग्मं रथम्) = सुखकर रथ में (उपसदेम) = आसीन हों। यह रथ हमारी विजय का साधन बनता हुआ हमारे लिये सदा सुखकर हो ।
भावार्थ
भावार्थ- रथ सब उपकरणों से युक्त हो, आवश्यक भोजनादि सामग्री, आयुध कवच आदि सभी उसमें रखे हों। यह रथ युद्ध में सहायक होकर हमारे लिये सुखकर हो। यह हमें विजयी बनाये।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही सद्विचाराने अग्नी इत्यादींचा संप्रयोग करून आयुधे तयार करा व उत्तम यानांद्वारे सदैव शत्रूंची ताडना करा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Where the chariot war materials of this warrior are collected and deposited, and where his arms and armour which routed the enemy are secured and guarded, there let us find our chariot of peace and well being for all time, planning and designing as we are always for the peace and joy of the mind.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do standing where-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! let us being ever thoughtful or acting with good thoughts, honor that vehicle (aircraft etc.) each day that passes, in which necessary ingredients-canon, shield, bow, arrow, armor and military equipment of this warrior for propelling it are laid.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! ever beat the enemies with good and proper deliberation, and with the vehicles in which fire, electricity etc. have been properly used and which contains weapons etc.
Translator's Notes
Here the third meaning of the verb root has been taken सु+मन-ज्ञाने (दिवा)
Foot Notes
(हविः) आदातव्यम् । हु-दानादनयो: आदाने च (जुहो.) = Things to be taken, food materials etc. (सुमनस्यमानाः) सुष्ठु विचारं कुर्वन्तः = Thinking over well, doing acts after good deal of deliberations.
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