Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 75 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 18
    ऋषिः - पायुर्भारद्वाजः देवता - लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः, कवचसोमवरुणाः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मर्मा॑णि ते॒ वर्म॑णा छादयामि॒ सोम॑स्त्वा॒ राजा॒मृते॒नानु॑ वस्ताम्। उ॒रोर्वरी॑यो॒ वरु॑णस्ते कृणोतु॒ जय॑न्तं॒ त्वानु॑ दे॒वा म॑दन्तु ॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मर्मा॑णि । ते॒ । वर्म॑णा । छा॒द॒या॒मि॒ । सोमः॑ । त्वा॒ । राजा॑ । अ॒मृते॑न । अनु॑ । व॒स्ता॒म् । उ॒रोः । वरी॑यः । वरु॑णः । ते॒ । कृ॒णो॒तु॒ । जय॑न्तम् । त्वा॒ । अनु॑ । दे॒वाः । म॒द॒न्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मर्माणि ते वर्मणा छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनानु वस्ताम्। उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तं त्वानु देवा मदन्तु ॥१८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मर्माणि। ते। वर्मणा। छादयामि। सोमः। त्वा। राजा। अमृतेन। अनु। वस्ताम्। उरोः। वरीयः। वरुणः। ते। कृणोतु। जयन्तम्। त्वा। अनु। देवाः। मदन्तु ॥१८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 18
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्योद्धॄन् प्रत्यध्यक्षाः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

    अन्वयः

    हे योद्धृवीराहं ते मर्माणि वर्मणा छादयामि सोमो राजाऽमृतेन त्वाऽनु वस्तां वरुण उरोर्वरीयस्ते कृणोतु जयन्तं त्वा देवा अनु मदन्तु ॥१८॥

    पदार्थः

    (मर्माणि) शरीरस्थाञ्जीवनहेतूनवयवान् (ते) तव योद्धुः (वर्मणा) कवचेन (छादयामि) (सोमः) ऐश्वर्य्यसम्पन्नः (त्वा) त्वाम् (राजा) (अमृतेन) जलादिना (अनु) (वस्ताम्) अनुच्छादयतु (उरोः) बहोः (वरीयः) अतिशयेन वरमन्नादिकम् (वरुणः) सेनापालक उत्तमो विद्वान् (ते) तव (कृणोतु) (जयन्तम्) शत्रून् विजयमानम् (त्वा) त्वाम् (अनु) (देवाः) उपदेशका विद्वांसोऽधिष्ठातारो वा (मदन्तु) हर्षन्तु हर्षयन्तु वा ॥१८॥

    भावार्थः

    सेनाध्यक्षैः सर्वेषां वीराणां शरीरपरित्राणानि कवचानि यथावत्कर्त्तव्यानि सर्वाधीशेन राज्ञाऽमृतात्मकभोगाः सर्वेभ्यो देया वस्त्रशस्त्रादीनि च, युध्यतः सर्वान् सर्वेऽध्यक्षा हर्षयन्तूत्साहयन्तु स्वयं च हर्षन्तूत्सहन्तामेवं कृते सति कुतः पराजयः ॥१८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर योद्धाओं के प्रति अध्यक्ष कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे योद्धा वीर ! मैं (ते) तेरे (मर्माणि) शरीरस्थ जीवनहेतु अङ्गों को (वर्मणा) कवच से (छादयामि) ढाँपता हूँ (सोमः) ऐश्वर्य्यसम्पन्न (राजा) राजा (अमृतेन) जल आदि से (त्वा) तुझे (अनु) अनुकूलता से (वस्ताम्) ढाँपे तथा (वरुणः) सेना की पालना करनेवाला उत्तम विद्वान् (उरोः) बहुत (वरीयः) अत्यन्त श्रेष्ठ अन्न आदि (ते) तेरा (कृणोतु) करे तथा (जयन्तम्) शत्रुओं को जीतते हुए (त्वा) तुझे (देवाः) उपदेशक विद्वान् वा अधिष्ठाता जन (अनु, मदन्तु) अनुकूलता से हर्षित करें वा करावें ॥१८॥

    भावार्थ

    सेनाध्यक्षों को चाहिये कि सब वीरों के शरीरों की रक्षा करनेवाले कवचों को यथावत् करें और सर्वाधीश राजा अमृतात्मक अर्थात् अमृत के समान भोग सब सबके लिये देवे तथा वस्त्र और शस्त्र आदि पदार्थ भी देवे और युद्ध करते हुए सब को सब अध्यक्ष हर्ष देवें और उत्साहित करें तथा आप भी हर्ष पावें और उत्साह करें, ऐसा करने पर क्योंकर हार हो ॥१८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वीर का कवच धारण ।

    भावार्थ

    हे वीर योद्धः ! हे नायक ! (ते) तेरे (मर्माणि ) मर्मस्थलों को ( वर्मणा ) कवच से ( छादयामि ) ढकता हूं । ( राजा सोमः) राजा, तेजस्वी, ‘सोम’ ऐश्वर्यवान् पुरुष ( त्वा ) तुझे ( अमृतेन ) अन्नादि से ( अनु वस्ताम् ) और भी सुरक्षित करें। (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ, प्रधान (ते) तेरे लिये (उरोः वरीयः कृणोतु ) बहुत २ धन प्रदान करे। (जयन्तं त्वा अनु) विजय करते तेरे पीछे २ ( देवाः ) अन्य सब उत्तम मनुष्य (मदन्तु) हर्षित हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वर्म-सोम-वरुण

    पदार्थ

    [१] जिन स्थानों पर विद्ध होकर शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होता है उन्हें 'मर्म' कहते हैं। (ते मर्माणि) = तेरे मर्मस्थलों को (वर्मणा) = कवच के द्वारा (छादयामि) = आच्छादित करता हूँ। कवच से छादित मर्मस्थल शत्रुशरों से विद्ध नहीं होते। यह (राजा) = जीवन को दीप्त करनेवाला (सोमः) = सोम [वीर्य] (त्वा) = तुझे (अमृतेन) = नीरोगता से (अनुवस्ताम्) = आच्छादित करे। अर्थात् सोम का रक्षण तुझे नीरोग बनाये। [२] (वरुण:) = द्वेष निवारण की देवता (ते) = तेरे लिये (उरो: वरीय:) = विशाल से भी विशालतर सुख को (कृणोतु) = करनेवाली हो । (जयन्तम्) = राग-द्वेष आदि सब शत्रुओं को पराजित करते हुए (त्वा) = तुझे (देव:) = सब देव, सब दिव्य भाव अनुमदन्तु अनुकूलता से हर्षित करनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- कवच हमारे मर्मों का रक्षण करे। सुरक्षित सोम हमें नीरोगता प्रदान करे। निद्वेषता की देवता हमें आनन्दित करनेवाली हो ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    सेनाध्यक्षाने सर्व वीरांना रक्षण करणारे कवच उपलब्ध करून द्यावे व सर्वाधीश राजाने सर्वांना अमृताप्रमाणे भोगपदार्थ द्यावेत. वस्रे व शस्त्रेही द्यावीत. युद्ध करताना अध्यक्षाने सैन्य हर्षित व उत्साहित व्हावे असे वागल्यास पराजय कसा होईल? ॥ १८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O warrior of the bow, I cover the vital limbs of your body with armour for protection. Let the ruler Soma, immortal spirit of life’s vitality, give you close cover against death and mortality. Let the wise and judicious commander of the forces provide you the best and most abundant food and maintenance, and let the excellencies of the nation rejoice with you when you win the battle.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should the chiefs of the army deal with the warriors-is Author told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O valiant warrior ! I cover your vital parts with armor. May this prosperous king cover or protect you with good water and may the good commander of the army, who is a highly learned person, provide you with very good food etc. May the enlightened preachers or superintendents feel delighted in your triumph over the wicked and may also keep you delighted, to discharge your duty.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The Commanders of the army should make ready armors for all brave warriors to protect their bodies. The king, who is the master of all, should give all enjoyable good objects and arms etc., to all warriors. The chiefs or superintendents should encourage and gladden the warriors, being themselves delighted and full of zeal. By doing all this how can there be defeat of the army?

    Foot Notes

    (सोमः) ऐश्वर्य्यसंपन्नः। षु-[रसवैश्वययोः (भ्वा.) अत्रैश्वर्यार्य: । = Prosperous, wealthy. (वरीयः) अतिशयेन वरमन्नादिकम्। = Very good food. (वरुण:) सेनापालक उत्तमो विद्वान् । वरुणे दक्षः (S. Br. 4, 1, 4, 1 ) वृज्-वरणे (स्वा.) वरणीयः - उत्तम: = A good and learned commander of the army.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top