ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 14
अहि॑रिव भो॒गैः पर्ये॑ति बा॒हुं ज्याया॑ हे॒तिं प॑रि॒बाध॑मानः। ह॒स्त॒ध्नो विश्वा॑ व॒युना॑नि वि॒द्वान्पुमा॒न्पुमां॑सं॒ परि॑ पातु वि॒श्वतः॑ ॥१४॥
स्वर सहित पद पाठअहिः॑ऽइव । भो॒गैः । परि॑ । ए॒ति॒ । बा॒हुम् । ज्यायाः॑ । हे॒तिम् । प॒रि॒ऽबाध॑मानः । ह॒स्त॒ऽघ्नः । विश्वा॑ । व॒युना॑नि । वि॒द्वान् । पुमा॑न् । पुमां॑सम् । परि॑ । पा॒तु॒ । वि॒श्वतः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः। हस्तध्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमांसं परि पातु विश्वतः ॥१४॥
स्वर रहित पद पाठअहिःऽइव। भोगैः। परि। एति। बाहुम्। ज्यायाः। हेतिम्। परिऽबाधमानः। हस्तऽघ्नः। विश्वा। वयुनानि। विद्वान्। पुमान्। पुमांसम्। परि। पातु। विश्वतः ॥१४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 14
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा भृत्याश्च परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! यो हस्तघ्नो ज्याया हेतिं परिबाधमानो विद्वान् पुमान्नहिरिव भोगैः सह बाहुं विश्वा वयुनानि च पर्येति विश्वतः पुमांसं परि पातु तं सर्वदा सत्कुर्याः ॥१४॥
पदार्थः
(अहिरिव) मेघ इव (भोगैः) (परि) (एति) परितः प्राप्नोति (बाहुम्) पत्युर्भुजम् (ज्यायाः) प्रत्यञ्चायाः (हेतिम्) वज्रवद्बाणम् (परिबाधमानः) सर्वतो निरुन्धानः (हस्तघ्नः) यो हस्ताभ्यां हन्ति (विश्वा) सर्वाणि (वयुनानि) ज्ञानानि (विद्वान्) यो वेदितव्यं वेत्ति (पुमान्) पुरुषार्थी (पुमांसम्) पुरुषार्थिनम् (परि) सर्वतः (पातु) रक्षतु (विश्वतः) सर्वतः ॥१४॥
भावार्थः
हे वीरा ! यो राजा सर्वान् मेघवद्भोगवृष्टिं करोति समग्रविद्यायुक्तः सन् सर्वान् सर्वतः प्रीणाति तं सर्वेऽभितः सततं रक्षन्तु ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा और भृत्य परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जो (हस्तघ्नः) हाथों से मारनेवाला (ज्यायाः) प्रत्यञ्चा के सम्बन्धी (हेतिम्) वज्र के समान बाण को (परिबाधमानः) सब ओर से रोकता और (विद्वान्) जानने योग्य को जानता हुआ (पुमान्) पुरुषार्थी जन (अहिरिव) मेघ के समान (भोगैः) भोगों के साथ (बाहुम्) अपने स्वामी की भुजा को और (विश्वा) समस्त (वयुनानि) ज्ञानों को (परि, एति) सब ओर से प्राप्त होता है वा (विश्वतः) सब ओर से (पुमांसम्) पुरुषार्थी की (परि, पातु) अच्छे प्रकार पालना करे, उसका सर्वदा सत्कार करो ॥१४॥
भावार्थ
हे वीरो ! जो राजा समस्त मेघ के समान भोगवृष्टि करता है तथा समग्रविद्यायुक्त होता हुआ सब की सब ओर से तृप्ति करता है, उसकी सब जन सब ओर से निरन्तर रक्षा करें ॥१४॥
विषय
सूर्यवत् हस्तत्राण और वीर पुरुष का वर्णन ।
भावार्थ
( अहिः इव भोगैः बाहुम् परि एति ) सांप जिस प्रकार अपने अंगों से बाहु के इर्द गिर्द लिपट जाता है उसी प्रकार ( हस्त-घ्नः ) हाथ में लगा दस्तबन्द भी (भोगै:) पालक अवयवों से (बाहुं परि एति ) बाहु के इर्द गिर्द रहता है और ( ज्यायाः) डोरी के ( हेतिं ) आघात को ( परि-बाधमानः ) बचाता है। उसी प्रकार ( पुमान् ) वीर पुरुष ( हस्त घ्नः ) अपने सधे हाथ से शत्रुओं को मारने में कुशल वीर (अहिः इव ) मेघ के समान ( भोगः ) प्रजा को पालन करने में समर्थ शस्त्रादि उपायों सहित (बाहुम् परि एति) शत्रु को बाधने वाले सैन्य को प्राप्त होता और (ज्यायाः) प्राणों का नाश करने वाली शत्रु की सेना के ( हेतिं ) शस्त्रबल को ( परि-बाधमानः ) दूर से ही नाश करता हुआ (विश्वा वयुनानि) सब प्रकार के ज्ञानों को जानता हुआ ( विश्वतः ) सब प्रकार से ( पुमांसं परि पातु ) सहयोगी पुरुष की रक्षा करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
हस्तघ्नः
पदार्थ
[१] (हस्त) = समीपवर्ती प्रकोष्ठ में स्थित हुआ हुआ यह डोरी के आघात से आहत होता है, सो इसे 'हस्तघ्न' कहते हैं। यह (हस्तघ्नः) = हस्तघ्न (बाहुं पर्येति) = बाहु को इस प्रकार परिवेष्टित कर लेता है (इव) = जैसे कि (अहिः) = साँप (भोगैः) = अपने शरीरावयवों से किसी की बाहु को घेर लेता है। इस प्रकार यह (ज्याया:) = धनुष की डोरी के (हेतिम्) = आघात को (परिबाधमानः) = रोकनेवाला होता है। हस्तघ्न हमें डोरी के आघात से बचाता है। [२] इस 'हस्तघ्न' द्वारा ज्या की हेति से अपना बचाव करता हुआ, (विश्वा वयुनानि) = सब प्रज्ञानों को (विद्वान्) = जानता हुआ, युद्ध की सब नीतियों को समझता हुआ, (पुमान्) = वीर पुरुष (पुमांसम्) = वीर सैनिकों का (विश्वतः परिपातु) = सर्वतः रक्षण करे, वीर सेनानी वीर सैनिकों का रक्षण करनेवाला हो, अनीति से उन्हें यों ही रणाग्नि में न झोंक दे ।
भावार्थ
भावार्थ- हस्तघ्न हमें धनुष की डोरी के आघात से बचाये । हस्तघ्न को धारण करनेवाला वीर सेनानी युद्ध नीति को समझता हुआ वीर सैनिकों की व्यर्थ में हत्या न होने दे।
मराठी (1)
भावार्थ
हे वीरांनो ! जो राजा संपूर्ण मेघाप्रमाणे भोगवृष्टी करतो व विद्यायुक्त करतो, सर्वांना सर्व दृष्टीने तृप्त करतो त्याचे सर्वांनी सर्व तऱ्हेचे रक्षण करावे. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Wrapped round the arm of a warring man of action like the coils of a snake, like an arm guard protecting the shooting arm against the strike back of the bow string after the shot of an arrow, or against the recoil of a gun, the man of knowledge well versed in all the ways of life and the world should protect the man of bold action all round.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the king and his attendants deal with one another-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! honor that learned person well, who discharging arrows from the bow-string and protecting the arms of his master and extirpating the opposing foe from all sides, rains all with enjoyable objects, like the cloud and guards all industrious persons, knowing his duties properly.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O heroes! you should protect from all sides, that king, who rain all enjoyable objects like the cloud and being endowed with the knowledge of all sciences, pleases and satisfies all by all means.
Foot Notes
(अहिरिव) मेघ इव । अहिरिति मेघनाम (NG 1, 10) = Like the cloud. (बयुनानि) ज्ञानानि । वयुनम् इति प्रज्ञानाम (NG 3,9) = Knowledge.
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