ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 75/ मन्त्र 2
धन्व॑ना॒ गा धन्व॑ना॒जिं ज॑येम॒ धन्व॑ना ती॒व्राः स॒मदो॑ जयेम। धनुः॒ शत्रो॑रपका॒मं कृ॑णोति॒ धन्व॑ना॒ सर्वाः॑ प्र॒दिशो॑ जयेम ॥२॥
स्वर सहित पद पाठधन्व॑ना । गाः । धन्व॑ना । आ॒जिम् । ज॒ये॒म॒ । धन्व॑ना । ती॒व्राः । स॒ऽमदः॑ । ज॒ये॒म॒ । धनुः॑ । शत्रोः॑ । अ॒प॒ऽका॒मम् । कृ॒णो॒ति॒ । धन्व॑ना । सर्वाः॑ । प्र॒ऽदिशः॑ । ज॒ये॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
धन्वना गा धन्वनाजिं जयेम धन्वना तीव्राः समदो जयेम। धनुः शत्रोरपकामं कृणोति धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम ॥२॥
स्वर रहित पद पाठधन्वना। गाः। धन्वना। आजिम्। जयेम। धन्वना। तीव्राः। सऽमदः। जयेम। धनुः। शत्रोः। अपऽकामम्। कृणोति। धन्वना। सर्वाः। प्रऽदिशः। जयेम ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 75; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्वीराः केन किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे वीरपुरुषा ! यद्धनुः शत्रोरपकामं कृणोति येन धन्वना यथा वयं गा धन्वनाजिं जयेम धन्वना तीव्राः समदो जयेम धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम तथा तेन यूयमप्येताञ्जयत ॥२॥
पदार्थः
(धन्वना) धनुराद्येन शस्त्रास्त्रेण (गाः) भूमीः (धन्वना) (आजिम्) सङ्ग्रामम्। आजिरिति सङ्ग्रामनाम। (निघं०२.१७) (जयेम) (धन्वना) (तीव्राः) कठिनास्तेजस्विनः (समदः) सङ्ग्रामान् (जयेम) (धनुः) शस्त्रास्त्रम् (शत्रोः) (अपकामम्) कामविनाशनम् (कृणोति) करोति (धन्वना) (सर्वाः) (प्रदिशः) दिक्प्रदिक्स्थाञ्छत्रून् (जयेम) ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या धनुर्वेदं पठित्वा पूर्णं शस्त्रास्त्रनिर्माणाभ्यासं कृत्वा प्रयोक्तुं विजानन्ति त एव सर्वत्र विजयिनो भवन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वीर किससे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे वीरपुरुषो ! जो (धनुः) धनुष् (शत्रोः) शत्रु के (अपकामम्) काम का विनाश (कृणोति) करात है जिस (धन्वना) धनुष् से जैसे हम (गाः) भूमियों को (धन्वना) धनुष् से (आजिम्) सङ्ग्राम को (जयेम) जीतें (धन्वना) धनुष् से (तीव्राः) कठिन तेज (समदः) सङ्ग्रामों को (जयेम) जीतें और (धन्वना) धनुष् से (सर्वाः) सब (प्रदिशः) दिशा प्रदिशाओं में स्थित जो शत्रुजन उनको (जयेम) जीतें, वैसे उससे तुम भी उनको जीतो ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य धनुर्वेद को पढ़ के पूरा शस्त्र और अस्त्र बनाने का अभ्यास कर प्रयोग करने को जानते हैं, वे ही सर्वत्र विजयी होते हैं ॥२॥
विषय
धनुष के बल से संग्राम विजय का उपदेश ।
भावार्थ
जो ( धनुः ) धनुषू ( शत्रो: ) शत्रु के (अपकामं ) मन चाहे फल का नाश (कृणोति ) करता है। ऐसे ( धन्वना ) धनुष के बल से हम लोग ( गाः जयेम ) गौओं और भूमियों का विजय करें । उसी ( धन्वना आजि जयेम ) धनुष से हम संग्राम का विजय करें। उसी ( धन्वना तीव्रा: समदः जयेम ) धनुष से हम ही वेग से आने वाली हर्ष या मद से युक्त शत्रु सेनाओं और कठिन संग्रामों को भी जीतें । ( धन्वना ) धनुष के बल से हम ( सर्वाः दिशः जयेम ) समस्त दिशाओं का विजय करें। इस प्रकार दिग्-विजयी हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पायुर्भारद्वाज ऋषिः । देवताः - १ वर्म । १ धनुः । ३ ज्या । ४ आत्नीं । ५ इषुधिः । ६ सारथिः । ६ रश्मयः । ७ अश्वाः । ८ रथः । रथगोपाः । १० लिङ्गोक्ताः । ११, १२, १५, १६ इषवः । १३ प्रतोद । १४ हस्तघ्न: । १७-१९ लिङ्गोक्ता सङ्ग्रामाशिषः ( १७ युद्धभूमिर्ब्रह्मणस्पतिरादितिश्च । १८ कवचसोमवरुणाः । १९ देवाः । ब्रह्म च ) ॥ छन्दः–१, ३, निचृत्त्रिष्टुप् ॥ २, ४, ५, ७, ८, ९, ११, १४, १८ त्रिष्टुप् । ६ जगती । १० विराड् जगती । १२, १९ विराडनुष्टुप् । १५ निचृदनुष्टुप् । १६ अनुष्टुप् । १३ स्वराडुष्णिक् । १७ पंक्तिः ।। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
धनुष द्वारा विजय
पदार्थ
[१] (धन्वना) = धनुष के द्वारा, युद्ध के अस्त्रों के द्वारा (गाः) = हम शत्रुओं से चुरायी गयी गौवों को फिर से जीतनेवाले बनें | (धन्वना) = इस धनुष से (आजिम्) = संग्राम को जयेम जीतें | (धन्वना) = इस धनुष से ही (तीव्रा:) = बड़े उद्धत स्वभाववाले (समदः) = मदयुक्त शत्रुसैन्यों को (जयेम) = जीतनेवाले हों। [२] (धनुः) = यह हमारा धनुष (शत्रोः) = शत्रु की (अपकामं कृणोति) = विजय की कामना को समाप्त कर देता है। हमारे धनुष को देखकर शत्रु लौट जाता है, आक्रमण की इच्छा नहीं करता। (धन्वना) = इस धनुष के द्वारा (सर्वाः प्रदिश:) = सब विस्तृत दिशाओं को, इनमें स्थित व्यक्तियों को जयेम हम जीतें ।
भावार्थ
भावार्थ– धनुष [आयुध] ही हमें युद्ध में विजयी बनाता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे धनुर्वेद शिकून पूर्ण शस्त्रे व अस्त्रे तयार करण्याचा अभ्यास करून प्रयोग करणे जाणतात तीच सर्वत्र विजयी होतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Let us preserve and win lands and cows by the bow and reach our targets by the bow. Let us fight out the fiery passions by the bow and arrow of concentrated meditation. The bow and arrow thwarts the evil designs of enemy forces within and without both. Let us advance in all directions by the bow.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should heroes do with what-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O heroes! with the bow and other arms and missiles, which disappoint the hope of the foes, let us conquer the land, let us be victorious in the battles, let us overcome even our fierce-exulting enemies in battles and let us with the help of the bows and various other weapons subdue all enemies in different directions.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons are victorious everywhere in battles. who study the military science thoroughly (through Dhanurveda etc.), practice the manufacture of the weapons and missiles and know how to apply them.
Translator's Notes
धन्व or bow is the symbol of all weapons and missiles.
Foot Notes
(धन्वना) धनुराद्य ेन शस्त्रास्त्रेण। = By the bow and other weapons and missiles. (गा:) भूमि: । गोरिति पृथिवीनाम (NG 1, 1) = Lands. (समदः) सङ्ग्रामान् । समत्सु इति संग्रामनाम (NG 2,17) = Battles.
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