ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 18/ मन्त्र 21
प्र ये गृ॒हादम॑मदुस्त्वा॒या प॑राश॒रः श॒तया॑तु॒र्वसि॑ष्ठः। न ते॑ भो॒जस्य॑ स॒ख्यं मृ॑ष॒न्ताधा॑ सू॒रिभ्यः॑ सु॒दिना॒ व्यु॑च्छान् ॥२१॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ये । गृ॒हात् । अम॑मदुः । त्वा॒ऽया । प॒रा॒ऽश॒रः । श॒तऽया॑तुः । वसि॑ष्ठः । न । ते॒ । भो॒जस्य॑ । स॒ख्यम् । मृ॒ष॒न्त॒ । अध॑ । सू॒रिऽभ्यः॑ । सु॒ऽदिना॑ । वि । उ॒च्छा॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ये गृहादममदुस्त्वाया पराशरः शतयातुर्वसिष्ठः। न ते भोजस्य सख्यं मृषन्ताधा सूरिभ्यः सुदिना व्युच्छान् ॥२१॥
स्वर रहित पद पाठप्र। ये। गृहात्। अममदुः। त्वाऽया। पराऽशरः। शतऽयातुः। वसिष्ठः। न। ते। भोजस्य। सख्यम्। मृषन्त। अध। सूरिऽभ्यः। सुऽदिना। वि। उच्छान् ॥२१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 18; मन्त्र » 21
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजसहायेन प्रजाः किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! ये त्वाया गृहादममदुः शतयातुर्वसिष्ठः पराशर आनन्देत्ते भोजस्य सख्यं न प्र मृषन्ताऽध ये सूरिभ्यः सुदिना व्युच्छाँस्ते त्वया सत्कर्त्तव्याः सन्ति ॥२१॥
पदार्थः
(प्र) (ये) (गृहात्) (अममदुः) हर्षन्ति (त्वाया) तव नीत्या (पराशरः) दुष्टानां हिंसकः (शतयातुः) यः शतैः सह याति (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुः (न) निषेधे (ते) (भोजस्य) पालनस्य भोजनस्य वा (सख्यम्) मित्रत्वम् (मृषन्त) सहन्ते (अध) आनन्तर्ये। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सूरिभ्यः) विद्वद्भ्यः (सुदिना) सुखयुक्तानि दिनानि (वि) (उच्छान्) निवसेयुः ॥२१॥
भावार्थः
यस्य विद्याविनयसुशीलताभिः सर्वे गृहस्थादयो मनुष्या आनन्देयुर्ये चान्योत्कर्षं दृष्ट्वा परितपन्ति ये हि विद्वद्भ्यः सदा सुशिक्षां गृह्णन्ति ते सर्वाणि सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥२१॥
हिन्दी (3)
विषय
फि राजा के सहाय से प्रजाजन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् (ये) जो (त्वाया) तुम्हारी नीति के साथ (गृहात्) घर से (अममदुः) आनन्दित होते हैं वा (शतयातुः) जो सैकड़ों के साथ जाता है जो (वसिष्ठः) अतीव वसनेवाला और जो (पराशरः) दुष्टों का हिंसक आनन्दित होता है (ते) वे (भोजस्य) भोगने और पालन करने की (सख्यम्) मित्रता को (न) नहीं (प्र, मृषन्त) सहते हैं (अध) इसके अनन्तर जो (सूरिभ्यः) विद्वानों से (सुदिना) सुखयुक्त दिनों में (व्युच्छान्) निरन्तर वसें, वे तुमको सदा सत्कार करने योग्य हैं ॥२१॥
भावार्थ
जिसकी विद्या, विनय और सुशीलता से सब गृहस्थ आदि मनुष्य आनन्दित हों और जो औरों का उत्कर्ष देखकर पीड़ित होते हैं और जो विद्वानों से सर्वदैव सुन्दर शिक्षा लेते हैं, वे सब सुख पाते हैं ॥२१॥
विषय
प्रजाओं के कर्तव्य ।
भावार्थ
( ये ) जो लोग (त्वाया) तेरी कामना वा नीति से (गृहात्) गृह से निकल कर भी ( अममदुः ) बराबर प्रसन्न रहते हैं और ( पराशरः ) दुष्टों का नाशक ( शत-यातुः ) सैकड़ों वीरों को साथ लेकर चलने वाला वा सैकड़ों दुष्टों को दण्डित करने वाला ( वसिष्ठ: ) सर्वश्रेष्ठ जन, अर्थात् प्रमुख प्रजाजन ये सब और ( ये ) जो ( ते भोजस्य ) तुझ पालक राष्ट्र भोक्ता के ( सख्यं ) मित्र भाव को ( न मृषन्त ) नहीं भूलते या सहन नहीं करते और उन ( सूरिभ्यः ) विद्वानों के तू ( सुदिना ) शुभ दिन ( वि उच्छान् ) प्रकट कर जिससे वे और अधिक हर्षित हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १–२१ इन्द्रः । २२ – २५ सुदासः पैजवनस्य दानस्तुतिर्देवता ॥ छन्दः – १, १७, २१ पंक्ति: । २, ४, १२, २२ भुरिक् पंक्तिः । ८, १३, १४ स्वराट् पंक्ति: । ३, ७ विराट् त्रिष्टुप् । ५, ९ , ११, १६, १९, २० निचृत्त्रिष्टुप् । ६, १०, १५, १८, २३, २४, २५ त्रिष्टुप् ॥ । पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ।।
विषय
पराशरः-शतयातुः-वसिष्ठः
पदार्थ
[१] (ये) = जो (गृहात्) = [गृहं प्राप्य सा० ] इस शरीररूप गृह को प्राप्त करके, इस शरीर के द्वारा, (त्वाया) = आपकी प्राप्ति की कामना से (प्र अममदुः) = प्रकर्षेण आपका स्तवन करते हैं। वे (पराशरः) = शत्रुओं को सुदूर शीर्ण करनेवाले बनते हैं, (शतयातुः) = शतवर्षपर्यन्त जीवन के मार्ग पर गमनवाले होते हैं, तथा (वसिष्ठः) = उत्तम निवासवाले होते हैं। प्रभु-स्तवन इन्हें शत्रुओं को शीर्ण करने में समर्थ करता है। शत्रुशीर्णता इनके दीर्घ व उत्तम जीवन का कारण बनती है। [२] (ते) = वे व्यक्ति भोजस्य सबका पालन करनेवाले आपके (सख्यम्) = मित्रभाव को (न मृषन्त) = नहीं विस्मृत करते हैं। ये सदा प्रभु का स्मरण करते हुए चलते हैं। (अधा) = अब इन (सूरिभ्यः) = ज्ञानी स्तोताओं के लिये सुदिना उत्तम दिन व्युच्छान् उदित होते हैं, प्राप्त होते हैं [उपगच्छन्ति सा० ] ।
भावार्थ
भावार्थ- इस शरीर को प्राप्त करके हम प्रभु का स्तवन करें। इससे हम शत्रुओं को शीर्ण करके दीर्घ उत्तम जीवन को प्राप्त करेंगे। प्रभु की मित्रता को कभी न भूलें। इस प्रकार हमारे लिये सदा सुदिन सुलभ होंगे।
मराठी (1)
भावार्थ
ज्याच्या विद्या, विनय व सुशीलतेने सर्व माणसे आनंदित होतात, इतर लोक उत्कर्ष पाहून दुःखी होतात व जे विद्वानांकडून सदैव चांगले शिक्षण घेतात ते सर्व सुख प्राप्त करतात. ॥ २१ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
By virtue of your blazing glory and showers of generosity, the sage who dispels evils, the warrior who goes forward with a hundred and faces many hundreds, and the host who provides the best shelter and hospitality like mother earth, all who rejoice in the home as well as outside, would never neglect, forget or forsake the kindness and friendship of yours who are the ruler and protector of the world community. And we pray may happy days ever shine upon these brave, learned and generous people.
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