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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 18/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒मा उ॑ त्वा पस्पृधा॒नासो॒ अत्र॑ म॒न्द्रा गिरो॑ देव॒यन्ती॒रुप॑ स्थुः। अ॒र्वाची॑ ते प॒थ्या॑ रा॒य ए॑तु॒ स्याम॑ ते सुम॒तावि॑न्द्र॒ शर्म॑न् ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माः । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । प॒स्पृ॒धा॒नासः॑ । अत्र॑ । म॒न्द्राः । गिरः॑ । दे॒व॒ऽयन्तीः॑ । उप॑ । स्थुः॒ । अ॒र्वाची॑ । ते॒ । प॒थ्या॑ । रा॒यः । ए॒तु॒ । स्याम॑ । ते॒ । सु॒ऽम॒तौ । इ॒न्द्र॒ । शर्म॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा उ त्वा पस्पृधानासो अत्र मन्द्रा गिरो देवयन्तीरुप स्थुः। अर्वाची ते पथ्या राय एतु स्याम ते सुमताविन्द्र शर्मन् ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमाः। ऊँ इति। त्वा। पस्पृधानासः। अत्र। मन्द्राः। गिरः। देवऽयन्तीः। उप। स्थुः। अर्वाची। ते। पथ्या। रायः। एतु। स्याम। ते। सुऽमतौ। इन्द्र। शर्मन् ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 18; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र ! यं त्वा पस्पृधानस इमा देवयन्तीः मन्द्रा गिर उपस्थुस्तेऽर्वाची पथ्या राय एतु तस्य तेऽत्र सुमतौ शर्मन्नु वयं सम्मताः स्याम ॥३॥

    पदार्थः

    (इमाः) प्रजाः (उ) (त्वा) त्वाम् (पस्पृधानासः) स्पर्धमानाः (अत्र) (मन्द्राः) आनन्दप्रदाः (गिरः) वाचः (देवयन्तीः) देवान् विदुषः कामयमानाः (उप) (स्थुः) उपतिष्ठन्तु (अर्वाची) नवीना (ते) तव (पथ्या) पथिषु साध्या (रायः) धनानि (एतु) प्राप्नोतु (स्याम) (ते) तव (सुमतौ) (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजन् (शर्मन्) गृहे ॥३॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यदि भवान् सर्वविद्यायुक्तसुशिक्षिता मधुरा श्लक्ष्णाः सत्याः वाचो दध्यात्तर्हि तव नीतिः सर्वेषां पथ्या स्यात् सर्वाः प्रजा अनुरक्ता भवेयुः ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त राजन् ! जिस (त्वा) आपको (पस्पृधानासः) स्पर्धा करते अर्थात् अति चाहना से चाहते हुए (इमाः) यह प्रजाजन और (देवयन्तीः) विद्वानों की कामना करती हुई (मन्द्राः) आनन्द देनेवाली (गिरः) वाणियाँ (उप, स्धुः) उपस्थित हों और (ते) आपकी (अर्वाची) नवीन (पथ्या) मार्ग में उत्तम नीति (रायः) धनों को (एतु) प्राप्त हो उन (ते) आपके (अत्र) इस (सुमतौ) श्रेष्ठमति और (शर्मन्) घर में (उ) भी हम लोग सम्मत (स्याम) हों ॥३॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! यदि आप सर्वविद्यायुक्त, सुशिक्षित, मधुर, श्लक्ष्ण, सत्यवाणियों को धारण करो तो तुम्हारी नीति सब को पथ्य हो, सब प्रजाजन अनुरागयुक्त होवें ॥३॥

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    विषय

    उसके कर्त्तव्य

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( इमाः गिरः ) ये वाणियां (देवयन्तीः ) विद्वानों को चाहती हुई उनके योग्य ( मन्द्राः ) हर्ष देने वाली ( पस्पृधानासः ) एक दूसरे से बढ़ कर ( त्वा उ) तुझ को ही ( उप स्थुः) प्राप्त हों । ( ते ) तेरी ( अर्वाची) नवीन ( पथ्या ) सन्मार्ग पर चलने वाली सत्-नीति (राये एतु ) हमारे ऐश्वर्य की वृद्धि के लिये हमें प्राप्त हो । हम लोग ( ते सुमतौ ) तेरी उत्तम सम्मति और ( शर्मन् ) तेरी शरण में ( स्याम ) सुख से रहें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १–२१ इन्द्रः । २२ – २५ सुदासः पैजवनस्य दानस्तुतिर्देवता ॥ छन्दः – १, १७, २१ पंक्ति: । २, ४, १२, २२ भुरिक् पंक्तिः । ८, १३, १४ स्वराट् पंक्ति: । ३, ७ विराट् त्रिष्टुप् । ५, ९ , ११, १६, १९, २० निचृत्त्रिष्टुप् । ६, १०, १५, १८, २३, २४, २५ त्रिष्टुप् ॥ । पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    सुमति व सुख

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (इमाः) = ये (पस्पृधानासः) = एक दूसरे से बढ़कर स्तुति की कामनावाली होती हुई, (मन्द्राः) = मोद [हर्ष] की कारणभूत (देवयन्तीः) = देव प्रभु की कामना करती हुईं (गिरः) = वाणियाँ (उ) = निश्चय से (अत्र) = यहाँ इस जीवन में (त्वा उप अस्थ:) = आपको उपासित करती हैं। इन सब वेदवाणियों के द्वारा आपका ही स्तवन होता है। [२] हे प्रभो! (ते) = आपकी (पथ्या) = ऐश्वर्य प्रापक नीति मार्ग राये ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये (अर्वाची एतु) = हमें आभिमुख्येन प्राप्त हो। हे (इन्द्र) = सब ऐश्वर्यों के स्वामिन् प्रभो! (ते सुमतौ) = आपकी कल्याणी मति में चलते हुए हम (शर्मन् स्याम) = सुख में निवास करनेवाले हों। शुभ मार्ग हमें शुभ को प्राप्त करानेवाला हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारी सब स्तुतिवाणियाँ उस प्रभु के लिये हों। प्रभु से उपदिष्ट नीति मार्ग से हम धनार्जन करें और प्रभु की कल्याणी मति में चलते हुए हम सदा सुख में रहें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! जर तू सर्व विद्यायुक्त सुशिक्षित, प्रशंसित मधुर लक्षणांनी युक्त सत्य वाणी धारण केलीस तर तुझी नीती सर्वांसाठी योग्य ठरून सर्व प्रजाजन अनुरागयुक्त होतील. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, glorious ruler, these are the people and our voices of admiration, earnest and joyous, vying with each other in love and reverence on this occasion, which may, we pray, reach you and be accepted. May your modern ethics and policies lead us all to wealth, honour and excellence. May we always abide in peace and prosperity in a happy home under your care and kindness.

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