ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 12
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
अवि॑ष्टो अ॒स्मान्विश्वा॑सु वि॒क्ष्वद्युं॑ कृणोत॒ शंसं॑ निनि॒त्सोः ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठअवि॑ष्टो॒ इति॑ । अ॒स्मान् । विश्वा॑सु । वि॒क्षु । अद्यु॑म् । कृ॒णो॒त॒ । शंस॑म् । नि॒नि॒त्सोः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अविष्टो अस्मान्विश्वासु विक्ष्वद्युं कृणोत शंसं निनित्सोः ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठअविष्टो इति। अस्मान्। विश्वासु। विक्षु। अद्युम्। कृणोत। शंसम्। निनित्सोः ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजजनाः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे राजजना ! यूयं विश्वासु विक्ष्वस्मान्नविष्टो सततं रक्षत अस्माकं शंसं कृणोत अस्मान्निनित्सोर्व्यवहारमद्युं कृणोत ॥१२॥
पदार्थः
(अविष्टो) दोषेष्वप्रविष्टाः सन्तो रक्षतः (अस्मान्) तदनुकूलान् राज्यादिकारिणः (विश्वासु) अखिलासु (विक्षु) प्रजासु (अद्युम्) प्रकाशरहितं व्यवहारम् (कृणोत) (शंसम्) प्रशंसनम् (निनित्सोः) निन्दितुमिच्छतः ॥१२॥
भावार्थः
राजजनाः प्रजासु वर्त्तमानान् निन्दकान् जनान् निवार्य प्रशंसकान् संरक्ष्य प्रजासु पितृवद्वर्तित्वा अविद्यान्धकारं निवारयन्तु ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजजन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजजनो ! तुम (विश्वासु) समस्त (विक्षु) प्रजाओं में (अस्मान्) उनके अनुकूल राज्याधिकारी हम जनों को (अविष्टो) दोषों में न प्रवेश किये हुए निरन्तर रक्षा करो हमारी (शंसम्) प्रशंसा (कृणोत) करो हम लोगों की (निनित्सोः) निन्दा करना चाहते हुए के (अद्युम्) प्रकाशरहित व्यवहार को प्रकाश करो ॥१२॥
भावार्थ
राजजन प्रजाओं में वर्त्तमान निन्दक जनों का निवारण कर प्रशंसा करनेवालों की रक्षा कर और प्रजाजनों में पिता के समान वर्त्त कर अविद्यान्धकार को निवारण करें ॥१२॥
विषय
विद्वान् जनों के रक्षण आदि कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे विद्वान् जनो ! आप लोग ( अस्मान् ) हमें ( विश्वासु विक्षु ) समस्त प्रजाओं में ( अविष्टो ) रक्षा करो । और ( शंसं कृणोत ) हमें उत्तम उपदेश करो । ( निनित्सोः अद्युं कृणोत ) निन्दा करने वाले के सब काम को अन्धकार युक्त करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
विद्वान् प्रजा का मार्गदर्शन करें -
पदार्थ
पदार्थ- हे विद्वान् जनो! आप (अस्मान्) = हमें (विश्वासुविक्षु) = समस्त प्रजाओं में (अविष्ट) = रक्षा करो और (शंसं कृणोत) = उपदेश करो। (निनित्सोः अघुं कृणोत) = निन्दावाले को अन्धकार युक्त करो।
भावार्थ
भावार्थ- विद्वान् लोग राष्ट्र की प्रजा को उत्तम उपदेश द्वारा सन्मार्गदर्शन करें। इससे प्रजा श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न होकर राष्ट्रोन्नति में सहयोगी बनेगी।
मराठी (1)
भावार्थ
राजजनांनी प्रजेतील निंदक लोकांचे निवारण करून प्रशंसा करणाऱ्यांचे रक्षण करून प्रजेशी पित्याप्रमाणे वागून अविद्या अंधकाराचे निवारण करावे. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Give us safety and security among people of the world, black out the envy and malignity of scandal mongers, and turn criticism into appreciation.
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