ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 6
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिपाद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्मना॑ स॒मत्सु॑ हि॒नोत॑ य॒ज्ञं दधा॑त के॒तुं जना॑य वी॒रम् ॥६॥
स्वर सहित पद पाठत्मना॑ । स॒मत्ऽसु॑ । हि॒नोत॑ । य॒ज्ञम् । दधा॑त । के॒तुम् । जना॑य । वी॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्मना समत्सु हिनोत यज्ञं दधात केतुं जनाय वीरम् ॥६॥
स्वर रहित पद पाठत्मना। समत्ऽसु। हिनोत। यज्ञम्। दधात। केतुम्। जनाय। वीरम् ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः कन्या विद्याप्राप्तिव्यवहारं वर्धयन्त्वित्याह ॥
अन्वयः
हे कन्या ! यथा जनाय समत्सु वीरं प्रेरयन्ति तथा त्मना केतुं दधात यज्ञं हिनोत ॥६॥
पदार्थः
(त्मना) आत्मना (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (हिनोत) वर्धयत (यज्ञम्) सङ्गन्तव्यं विद्याबोधम् (दधात) (केतुम्) प्रज्ञाम् (जनाय) राज्ञे (वीरम्) दोग्धारम् ॥६॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा शूरवीरा धीमन्तो राजपुरुषाः प्रयत्नेन संग्रामान् विजयन्ते तथा कन्याभिरिन्द्रियाणि जित्वा विद्याः प्राप्य विजयो विभावनीयः ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर कन्या विद्याप्राप्ति व्यवहार को बढ़ावें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे कन्याओ ! जैसे (जनाय) राजा के लिये (समत्सु) संग्रामों में (वीरम्) पूरा करनेवाले जन को प्रेरणा देते हैं, वैसे (त्मना) अपने से (केतुम्) बुद्धि को (दधात) धारण करो और (यज्ञम्) सङ्ग करने योग्य विद्याबोध को (हिनोत) बढ़ाओ ॥६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे शूरवीर धीमान् बुद्धिमान् राजा पुरुष उत्तम यत्न से संग्रामों को विशेषता से जीतते हैं, वैसे कन्याओं को इन्द्रियाँ जीत और विद्याओं को पाकर विजय की विशेष भावना करनी चाहिये ॥६॥
विषय
ध्वजावत् वीर का स्थापन । स्त्रियों को ज्ञानवान् उत्तम पुत्रधारण का उपदेश ।
भावार्थ
हे वीर पुरुषो ! आप लोग ( समत्सु ) संग्राम के अवसरों में ( त्मना ) अपने सामर्थ्य से ( यज्ञं) पूज्य नायक को ( हिनोत ) बढ़ाओ । ( जनाय) साधारण प्रजाजन के हितार्थ (केतुं ) ध्वजा के समान सबके आज्ञापक (वीरम् ) वीर और नाना विद्योपदेष्टा पुरुष को ( दधात) स्थापित करो । उसको पुष्ट करो । ( २ ) हे स्त्रीजनो ! ( समत्सु ) हर्षयुक्त अवसरों में ( त्मना ) अपनी देह से ( यज्ञं ) संगतियोग्य गृह्य कार्य वा पति को ( हिनोत ) बढ़ाओ । और (जनाय) पुत्रोत्पादन के लिये ( केतं वीरं दधात) विद्वान्, रोगरहित, वीर्यवान् पुरुष को धारण करो तथा ( जनाय ) अपने पति के लिये ( वीरं केतं दधात ) ज्ञानवान् पुत्र को धारण करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
ध्वजावत् वीर का स्थापन
पदार्थ
पदार्थ- हे वीर पुरुषो! आप लोग (समत्सु) = संग्राम के समय (त्मना) = अपने सामर्थ्य से (यज्ञं) = पूज्य नायक को (हिनोत) = बढ़ाओ । (जनाय) = साधारण प्रजाजन के हितार्थ (केतुं ध्वजा) = तुल्य सबके आज्ञापरक (वीरम्) = वीर और विद्योपदेष्टा पुरुष को (दधात) = स्थापित करो।
भावार्थ
भावार्थ- जिस प्रकार सेना अपने विजय अभियान में आगे बढ़ती हुई राष्ट्र की ध्वजा को फहराती चलती है। इस ध्वजा से उस सेना के नायक की शक्ति प्रदर्शित होती है। उसी प्रकार गृहस्थी स्त्री-पुरुष उत्तम संस्कार युक्त वीर पुत्र को उत्पन्न करें। इससे उस गृहस्थी की प्रतिष्ठा स्थापित होती है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे शूरवीर बुद्धिमान राजपुरुष प्रयत्नपूर्वक युद्ध जिंकतात, तसे कन्यांनी इंद्रियांना जिंकून विद्या प्राप्त करून विजय मिळवावा. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Advance the yajna in the battles of life conscientiously and keep the flag of victory flying high in the service of humanity.
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