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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 21
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिपाद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्रति॑ नः॒ स्तोमं॒ त्वष्टा॑ जुषेत॒ स्याद॒स्मे अ॒रम॑तिर्वसू॒युः ॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । नः॒ । स्तोम॑म् । त्वष्टा॑ । जु॒षे॒त॒ । स्यात् । अ॒स्मे इति॑ । अ॒रम॑तिः । व॒सु॒ऽयुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रति नः स्तोमं त्वष्टा जुषेत स्यादस्मे अरमतिर्वसूयुः ॥२१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति। नः। स्तोमम्। त्वष्टा। जुषेत। स्यात्। अस्मे इति। अरमतिः। वसुऽयुः ॥२१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 21
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते राजामात्यादयः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नत्यिाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यथा वयं राजानं प्रीत्या सेवेमहि तथाऽरमतिर्वसूयुस्त्वष्टा राजा नोऽस्मान् प्रति जुषेत यथाऽयं राजा नः स्तोमं जुषेत तथा वयमस्य कीर्तिं सेवेमहि यथाऽयमस्मे प्रीतः स्यात् तथा वयमप्यस्मिन् प्रीताः स्याम ॥२१॥

    पदार्थः

    (प्रति) (नः) अस्मान्नस्माकं वा (स्तोमम्) प्रशंसाम् (त्वष्टा) दुःखविच्छेदको राजा (जुषेत) प्रीत्या सेवेत (स्यात्) भवेत् (अस्मे) अस्मासु (अरमतिः) अरं अलं मतिः प्रज्ञा यस्य सः (वसूयुः) वसूनि धनानि कामयमानः ॥२१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यत्र राजामात्यभृत्यप्रजाजना अन्योऽन्येषामुन्नतिं चिकीर्षन्ति तत्र सर्वमैश्वर्यं सुखं वर्धनं च प्रजायते ॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे राजा और मन्त्री आदि परस्पर कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जैसे हम लोग राजा की प्रीति से सेवा करें, वैसे (अरमतिः) पूर्ण मति है जिस की (वसूयुः) धनों की कामना करता हुआ (त्वष्टा) दुःखविच्छेद करनेवाला राजा (नः) हम लोगों को (प्रति, जुषेत) प्रीति से सेवे जैसे यह राजा हमारी (स्तोमम्) प्रशंसा को सेवे, वैसे हम लोग इसकी कीर्ति को सेवें जैसे यह (अस्मे) हम लोगों में प्रसन्न (स्यात्) हो, वैसे हम लोग भी इस में प्रसन्न हों ॥२१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जहाँ राजा अमात्यभृत्य और प्रजाजन एक-दूसरे की उन्नति को करना चाहते हैं, वहाँ समस्त ऐश्वर्य, सुख और वृद्धि होती है ॥२१॥

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    विषय

    धनवानों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    ( अरमतिः ) अति बुद्धिमान् ( वसूयुः ) प्रजा और ऐश्वर्यों का स्वामी, ( त्वष्टा ) तेजस्वी राजा ( नः ) हमारे ( स्तोमं ) स्तुति वचन, और स्तुत्य कार्य के ( प्रति ) प्रति ( जुषेत ) प्रेम करे और वह ( अस्मे स्यात् ) हमारे हितार्थ प्रीतिमान् हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्रजा प्रिया शासक

    पदार्थ

    पदार्थ- (अरमतिः) = बुद्धिमान् (वसूयुः) = प्रजा और ऐश्वर्यों का स्वामी, (त्वष्टा) = राजा (नः) = हमारे (स्तोमं स्तुति) = वचन के प्रति (प्रति जुषेत) = प्रेम करे और वह (अस्मे स्यात्) = हमारे हितार्थ प्रीतिमान् हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा विद्वान् तथा बुद्धिमान् होवे। प्रजाजनों के उत्तम कर्मों तथा उत्तम विचारों को जानकर उन्हें प्रोत्साहित करे। इससे राजा प्रजा का प्रिय बन जाता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेथे राजा, अमात्य भृत्य वा प्रजा एकमेकांची उन्नती इच्छितात तेथे संपूर्ण ऐश्वर्य, सुख व सर्व प्रकारे वृद्धी होते. ॥ २१ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Tvashta, creator and ruler of world forms and institutions, accept our praise and prayer and, lord of vision and intelligence as he is, may he be the giver of wealth, honour and excellence for us.

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