ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 3
आप॑श्चिदस्मै॒ पिन्व॑न्त पृ॒थ्वीर्वृ॒त्रेषु॒ शूरा॒ मंस॑न्त उ॒ग्राः ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआपः॑ । चि॒त् । अ॒स्मै॒ । पिन्व॑न्त । पृ॒थ्वीः । वृ॒त्रेषु॑ । शूराः॑ । मंस॑न्ते । उ॒ग्राः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आपश्चिदस्मै पिन्वन्त पृथ्वीर्वृत्रेषु शूरा मंसन्त उग्राः ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआपः। चित्। अस्मै। पिन्वन्त। पृथ्वीः। वृत्रेषु। शूराः। मंसन्ते। उग्राः ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ताः कीदृशो भवेयुरित्याह ॥
अन्वयः
याः कन्याः पृथ्वीरापश्चिदस्मै पिन्वन्त वृत्रेषु उग्राः शूरा इव मंसन्ते ता विदुष्यो जायन्ते ॥३॥
पदार्थः
(आपः) जलानि (चित्) इव (अस्मै) विद्याव्यवहाराय (पिन्वन्त) सिञ्चन्ति (पृथ्वीः) भूमीः (वृत्रेषु) धनेषु (शूराः) (मंसन्ते) परिणमन्ते (उग्राः) तेजस्विनः ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । याः कन्या जलवत्कोमलत्वादिगुणाः पृथिवीवत्क्षमाशीलाः शूरवदुत्साहिन्यो विद्या गृह्णन्ति ताः सौभाग्यवत्यो जायन्ते ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जो कन्या (पृथ्वीः) भूमि और (आपः) जल (चित्) ही के समान (अस्मै) इस विद्याव्यवहार के लिये (पिन्वन्त) सिंचन करती और (वृत्रेषु) धनों के निमित्त (उग्राः) तेजस्वी (शूराः) शूरवीरों के समान (मंसन्ते) मान करती हैं, वे विदुषी होती हैं ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो कन्या जल के समान कोमलत्वादि गुणयुक्त हैं, पृथिवी के समान सहनशील और शूरों के समान उत्साहिनी विद्याओं को ग्रहण करती हैं, वे सौभाग्यवती होती हैं ॥३॥
विषय
आप्त प्रजाजनों का कृषि आदि कार्य ।
भावार्थ
( वृत्रेषु ) मेघों में (आपः चित्) जलधाराएं जिस प्रकार ( अस्मै ) इस सूर्य के बल से ( पृथ्वीः ) भूमियों को ( पिन्वन्त ) सींचती हैं और ( वृत्रेषु ) मेघों के ऊपर ( उग्रः ) उग्र बल की प्रचण्ड वायुएं ( मंसन्ते ) प्रहार करते हैं ( चित् ) उसी प्रकार (अस्मै ) इस राजा के निमित्त ही ( आपः ) नहरें या आप्त प्रजाजन ( पृथ्वीः पिन्वन्त) भूमियों को सींचते, उस पर कृषि आदि करते और ( शूराः ) शूरवीर पुरुष ( वृत्रेषु ) विघ्नकारी पुरुषों पर और नाना धनों के निमित्त (मंसन्ते) उद्योग करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
आप्तजनों का कृषि आदि कार्य
पदार्थ
पदार्थ- (वृत्रेषु) = मेघों में (आपः चित्) = जलधाराएँ जैसे (अस्मै) = इस सूर्य के बल से (पृथ्वीः) = भूमियों को (पिन्वन्त) = सींचती हैं और वृत्रेषु-मेघों के ऊपर (उग्रः) = प्रचण्ड वायुएँ (मंसन्ते) = प्रहार करते हैं (चित्) = वैसे (अस्मै) = इस राजा के लिये (आपः) नहरें (पृथ्वीः पिन्वन्त) = भूमियों को सीचें और (शूराः) = वीर पुरुष (वृत्रेषु) = विघ्नकारी पुरुषों पर और धनों के लिए (मंसन्ते) = उद्योग करें।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र की प्रजा वेदविद्या से युक्त होकर राष्ट्र को उन्नत बनाने में पुरुषार्थ करे। वैदिक कृषि विद्या के जानकार लोग राष्ट्र में नदियों के व्यर्थ बहनेवाले जल को नहरों द्वारा खेतों तक ले जाकर सिंचाई करें तथा उत्तम बीज द्वारा उन्नत कृषि कार्य से राष्ट्र को समृद्ध बनावें।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या कन्या जलाप्रमाणे कोमल गुणयुक्त असतात, पृथ्वीप्रमाणे सहनशील असून शूराप्रमाणे उत्साही असून विद्या ग्रहण करतात त्या सौभाग्यशाली असतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The showers of rain nourish the earth and her progeny for this Indra, social order of humanity, and in the battles of life the blazing brave bow down in honour to it.
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