ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 14
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
अवी॑न्नो अ॒ग्निर्ह॒व्यान्नमो॑भिः॒ प्रेष्ठो॑ अस्मा अधायि॒ स्तोमः॑ ॥१४॥
स्वर सहित पद पाठअवी॑त् । नः॒ । अ॒ग्निः । ह॒व्य॒ऽअत् । नमः॑ऽभिः । प्रेष्ठः॑ । अ॒स्मै॒ । अ॒धा॒यि॒ । स्तोमः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अवीन्नो अग्निर्हव्यान्नमोभिः प्रेष्ठो अस्मा अधायि स्तोमः ॥१४॥
स्वर रहित पद पाठअवीत्। नः। अग्निः। हव्यऽअत्। नमःऽभिः। प्रेष्ठः। अस्मै। अधायि। स्तोमः ॥१४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 14
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
येन राज्ञाऽस्मै राष्ट्राय प्रेष्ठः स्तोमोऽधायि यो हव्यादाग्निरिव राजा नमोभिर्नोऽस्मान् अवीत् स एवास्माभिः सत्कर्तव्योऽस्ति ॥१४॥
पदार्थः
(अवीत्) रक्षेत् (नः) अस्मान् (अग्निः) पावक इव (हव्यात्) यो हव्यान्यत्ति सः (नमोभिः) अन्नादिभिः (प्रेष्ठः) अतिशयेन प्रियः (अस्मै) (अधायि) ध्रियते (स्तोमः) प्रशंसाव्यवहारः ॥१४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यस्स्वप्रकाशेन सर्वान्रक्षति तथा राजा न्यायप्रकाशेन सर्वाः प्रजा रक्षेत् ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जिस राजा ने (अस्मै) इस राज्य के लिये (प्रेष्ठः) अतीव प्रिय (स्तोमः) प्रशंसा व्यवहार (अधायि) धारण किया गया जो (हव्यात्) होम करने योग्य अन्न भोजन करनेवाले (अग्निः) अग्नि के समान वर्त्तमान राजा (नमोभिः) अन्नादि पदार्थों से (नः) हम लोगों की (अवीत्) रक्षा करे, वही हम लोगों को सत्कार करने योग्य है ॥१४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे सूर्य स्वप्रकाश से सब की रक्षा करता है, वैसे राजा न्याय के प्रकाश से सब प्रजा की रक्षा करे ॥१४॥
विषय
नायक कैसा हो ।
भावार्थ
(अग्निः) ज्ञानवन्, अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ( नमोभिः) अन्नादि पदार्थों से तथा शस्त्रों से ( नः ) हमारी रक्षा करे । वह (हव्यात्) ग्राह्य, भक्ष्य पदार्थों को खाने वाला, ( प्रेष्ठः ) सर्व प्रिय हो । ( अस्मै ) उसके लिये ( स्तोमः ) स्तुति योग्य व्यवहार ( अधायि ) किया जावे। और वह भी इस राष्ट्र के वासी प्रजा जन के लिये उत्तम व्यवहार करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
सर्वप्रिय राष्ट्र नायक
पदार्थ
पदार्थ- (अग्निः) = अग्नि-तुल्य तेजस्वी पुरुष (नमोभिः) = अन्नादि पदार्थों तथा शस्त्रों से (न:) = हमारी (अवीत्) = रक्षा करे। वह (हव्यात्) = भक्ष्य पदार्थों को खानेवाला, (प्रेष्ठः) = सर्व प्रिय हो । (अस्मै) = उसके लिये (स्तोमः स्तुति) = योग्य व्यवहार (अधायि) = किया जावे।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र का नायक प्रजा का पालन एवं रक्षण अन्नादि भोज्य पदार्थ तथा शस्त्रों द्वारा करे। ऐसे राष्ट्र नायक सर्वजन प्रिय होते हैं। वह भी अपनी प्रजा को प्रेम करे।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य स्वप्रकाशाने सर्वांचे रक्षण करतो तसे राजाने न्याय प्रकाशाने सर्व प्रजेचे रक्षण करावे. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Agni, light of life, dearest ruler, consume and eliminate negativities, protect and preserve us with good food and health care, and accept our song of praise and prayer in appreciation.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal