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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 22
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृदार्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ता नो॑ रासन्राति॒षाचो॒ वसू॒न्या रोद॑सी वरुणा॒नी शृ॑णोतु। वरू॑त्रीभिः सुशर॒णो नो॑ अस्तु॒ त्वष्टा॑ सु॒दत्रो॒ वि द॑धातु॒ रायः॑ ॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । नः॒ । रा॒स॒न् । रा॒ति॒ऽसाचः॑ । वसू॒नि । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । व॒रु॒णा॒नी । शृ॒णो॒तु॒ । वरू॑त्रीभिः । सु॒ऽश॒र॒णः । नः॒ । अ॒स्तु॒ । त्वष्टा॑ । सु॒ऽदत्रः॑ । वि । द॒धा॒तु॒ । रायः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता नो रासन्रातिषाचो वसून्या रोदसी वरुणानी शृणोतु। वरूत्रीभिः सुशरणो नो अस्तु त्वष्टा सुदत्रो वि दधातु रायः ॥२२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता। नः। रासन्। रातिऽसाचः। वसूनि। आ। रोदसी इति। वरुणानी। शृणोतु। वरूत्रीभिः। सुऽशरणः। नः। अस्तु। त्वष्टा। सुऽदत्रः। वि। दधातु। रायः ॥२२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 22
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते राजादयः प्रजासु कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! भवन्तो वरूत्रीभिर्वरुणानी रोदसी इव रातिषाचः सन्तो नस्ता वसून्या रासन् हे राजन् ! सुदत्रस्त्वष्टा सुशरणो भवान् नो रक्षकोऽस्तु नो रायो विदधातु अस्माकं वार्ताः शृणोतु ॥२२॥

    पदार्थः

    (ता) तानि (नः) अस्मभ्यम् (रासन्) प्रदद्युः (रातिषाचः) ये रातिं सचन्ते सम्बध्नन्ति ते (वसूनि) धनानि (आ) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (वरुणानी) जलादिपदार्थयुक्ते (शृणोतु) (वरूत्रीभिः) वरणीयाभिर्विद्याभिः (सुशरणः) शोभनं शरणमाश्रयो यस्य सः (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (त्वष्टा) दुःखविच्छेदकः (सुदत्रः) सुष्ठुदानः (वि, दधातु) (रायः) धनानि ॥२२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये राजपुरुषाः सूर्यभूमिवत् प्रजाः धनयन्ति तासां न्यायकरणाय वार्ताः शृण्वन्ति यथावत्पुरुषार्थेन श्रीमतीः प्रकुर्वन्ति त एवात्रालंसुखा भवन्ति ॥२२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे राजादि प्रजाजनों में कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! आप (वरूत्रीभिः) वरुणसम्बन्धी विद्याओं से (वरुणानी) जलादि पदार्थयुक्त (रोदसी) प्रकाश और पृथिवी के समान (रातिषाचः) दान सम्बन्ध करते हुए (नः) हम लोगों के लिये (ता) उन (वसूनि) धनों को (आ, रासन्) अच्छे प्रकार देवें। हे राजन् ! (सुदत्रः) अच्छे दानयुक्त (त्वष्टा) दुःखविच्छेदक (सुशरणः) सुन्दर आश्रम जिनका वह आप (नः) हमारे रक्षक (अस्तु) हों हमारे लिये (रायः) धनों को (वि, दधातु) विधान कीजिये। हमारी वार्ता (शृणोतु) सुनिये ॥२२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो राजपुरुष सूर्य और भूमि के तुल्य प्रजाजनों को धनी करते, उनके न्याय करने को बातें सुनते और यथावत् पुरुषार्थ से लक्ष्मीवान् करते हैं, वे ही पूर्ण सुखवाले होते हैं ॥२२॥

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    विषय

    धनवानों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    ( राति षाचः ) दानयोग्य वृत्ति या भृति को लक्ष्य कर, वा उसके द्वारा सहस्रों जनों को अपने साथ बांधने वाले धनाढ्य राजा लोग ( नः ) हमें ( ता ) वे नाना प्रकार के ( वसूनि ) ऐश्वर्य ( रासन् ) प्रदान करें । ( रोदसी ) दुष्टों को रुलाने वाली न्यायसभा तथा पुलिस, और ( वरुणानी ) स्वयं वृत श्रेष्ठ राजा की पालक शासन सभा भी ( नः आ शृणोतु ) हमारी सब बातें सुने। (त्वष्टा) तेजस्वी पुरुष (वरूत्रीभिः ) उत्तम, दुःखवारक सेनाओं और नीतियों से ( नः ) हमारा ( सु-शरण: ) उत्तम शरण (अस्तु ) हो । वह ( सु-दत्रः ) उत्तम दानशील पुरुष ( रायः वि दधातु ) नाना ऐश्वर्य प्रदान करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १-१५, १८-२५ विश्वे देवाः। १६ अहिः। १७ र्बुध्न्यो देवता। छन्दः— १, २, ५, १२, १३, १४, १६, १९, २० भुरिगर्चीगायत्री। ३,४,१७ आर्ची गायत्री । ६,७,८,९,१०,११,१५,१८,२१ निचृत्त्रिपादगायत्री। २२,२४ निचृदार्षी त्रिष्टुप् । २३ आर्षी त्रिष्टुप् । २५ विराडार्षी त्रिष्टुप् च ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    ऐश्वर्यशाली राजा

    पदार्थ

    पदार्थ- (राति-षाचः) = दानयोग्य वृत्ति को लक्ष्य कर धनाढ्य लोग (नः) = हमें (ता) = वे नाना प्रकार के (वसूनि) = ऐश्वर्य (रासन्) = दें। (रोदसी) = दुष्टों को रुलानेवाली न्यायसभा तथा पुलिस और (वरुणानी) = स्वयं वृत राजा की शासनसभा भी (नः आ शृणोतु) = हमारी बातें सुने। त्वष्टा तेजस्वी पुरुष (वरूत्रीभिः) = दुःखवारक नीतियों से (नः) = हमारा (सु-शरणः) = उत्तम शरण (अस्तु) = हो। वह (सु-दत्रः) उत्तम दानशील पुरुष (रायः वि दधातु) = नाना ऐश्वर्य दे।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा दानशील वृत्तिवाला प्रजाहितैषी होवे। उसकी न्याय सभा, विधानसभा तथा कार्यकालिका जनहितकारी कार्य करे। राजपुरुष- आरक्षी पुरुष प्रजा को पीड़ित न करें। ऐसा कुशल नेता प्रजा का प्रिय होकर विराजता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे राजपुरुष सूर्य व भूमीप्रमाणे प्रजाजनांना धनवान करतात, न्यायी बनण्यासाठी वार्ता ऐकतात व यथायोग्य पुरुषार्थाने श्रीमंत होतात तेच पूर्ण सुख प्राप्त करतात. ॥ २२ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the heaven and earth, generous and judicious givers of gifts, overflowing with liquid wealth and energy, listen to our prayer and give us peace and comfort in a settled state of life. May Tvashta, creator and maker of forms, with all modes of protection and promotion be our shelter home, and may he, generous giver of the best things of life, bring us wealth, honour and excellence.

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