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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 10
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - सतःपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    वृ॒ष॒ण॒श्वेन॑ मरुतो॒ वृष॑प्सुना॒ रथे॑न॒ वृष॑नाभिना । आ श्ये॒नासो॒ न प॒क्षिणो॒ वृथा॑ नरो ह॒व्या नो॑ वी॒तये॑ गत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृ॒ष॒ण॒श्वेन॑ । म॒रु॒तः॒ । वृष॑ऽप्सुना । रथे॑न । वृष॑ऽनाभिना । आ । श्ये॒नासः॑ । न । प॒क्षिणः॑ । वृथा॑ । न॒रः॒ । ह॒व्या । नः॒ । वी॒तये॑ ग॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषणश्वेन मरुतो वृषप्सुना रथेन वृषनाभिना । आ श्येनासो न पक्षिणो वृथा नरो हव्या नो वीतये गत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषणश्वेन । मरुतः । वृषऽप्सुना । रथेन । वृषऽनाभिना । आ । श्येनासः । न । पक्षिणः । वृथा । नरः । हव्या । नः । वीतये गत ॥ ८.२०.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 37; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (नरः) हे नेतारः (मरुतः) शूराः (वृषणश्वेन) इष्टगाम्यश्वेन (वृषप्सुना) स्वयमपि कामप्रदरूपेण (वृषनाभिना) समर्थचक्रच्छिद्रेण (रथेन) यानेन (नः) अस्माकम् (हव्या, वीतये) भागसेवनाय (श्येनासः, पक्षिणः, न) श्येनाः पक्षिण इव (आगत) आगच्छत ॥१०॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्त्तते ।

    पदार्थः

    हे नरः=हे जनानां नेतारो मरुतः । नोऽस्माकम् । हव्या=हव्यानि=निखिलवस्तूनि । वृथा=अनायासेन । वीतये=रक्षार्थम् । श्येनासो न पक्षिणः=श्येनाः पक्षिण इव । रथेन । आ+गत=आगच्छत । कीदृशेन रथेन । वृषणाश्वेन= बलिष्ठाश्वयुक्तेन । पुनः । वृषप्सुना=वर्षकरूपयुक्तेन । पुनः । वृषनाभिना=वर्षकनाभियुक्तेन । नाभिश्चक्रच्छिद्रम् ॥१० ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (नरः) हे नेता (मरुतः) शत्रुनाशक वीरो ! आप (वृषणश्वेन) इष्टगामी अश्वयुक्त (वृषप्सुना) कामनाप्रदरूप को धारण करनेवाले (वृषनाभिना) दृढ़नाभि=चक्रछिद्रवाले (रथेन) रथ द्वारा (नः) हमारे (हव्या, वीतये) हव्य=दातव्य भाग को सेवन करने के लिये (श्येनासः, पक्षिणः, न) श्येन पक्षी के समान निर्भीक होकर (आगत) आवें ॥१०॥

    भावार्थ

    हे शत्रुनाशक वीरो ! आप शीघ्रगामी रथों द्वारा अपना दातव्यभाग लेने के लिये शीघ्र आवें और श्येन=वाज के समान प्रतिपक्षियों को अपने आक्रमण से निर्बल करके सम्पूर्ण जनता से दातव्य भाग प्राप्त कर अपना कर्तव्य पालन करें अर्थात् हमारी सब ओर से रक्षा करते हुए हमें सुखसम्पन्न करें ॥१०॥

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    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    (नरः) हे मनुष्यों के नेता (मरुतः) मरुद्गण आप (नः) हमारे (हव्या) निखिल पदार्थों की (वृथा) अनायास (वीतये) रक्षा के लिये (रथेन) रथ पर चढ़कर (आ+गत) आवें । कैसा रथ हो (वृषणाश्वेन) जो बलिष्ठ अश्वों से युक्त हो, जो (वृषप्सुना) धनादिकों की वर्षा करनेवाला हो, पुनः (वृषनाभिना) जिसके मध्यस्थान भी धनादिवर्षक हों । आगमन में दृष्टान्त देते हैं−(न) जैसे (श्येनासः) श्येन नाम के (पक्षिणः) पक्षी बड़े वेग से उड़कर दौड़ते हैं, तद्वत् ॥१० ॥

    भावार्थ

    प्रजा के कार्य में किञ्चित् भी विलम्ब वे न करें और अपने साथ नाना पदार्थ लेकर चलें । जहाँ जैसी आवश्यकता देखें, वहाँ वैसा करें ॥१० ॥

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    विषय

    मरुतों अर्थात् वीरों, विद्वानों के कर्तव्य। वायु और जल लाने वाले वायु प्रवाहों के वर्णन।

    भावार्थ

    हे ( मरुतः ) वीर मनुष्यो ! ( श्येनासः पक्षिणः न ) वाज नाम के पक्षी जिस प्रकार वेग से जाते हैं उसी प्रकार आप लोग ( वृषणश्वेन) बलवान् अश्व वाले (वृष-प्सुना) सुदृढ़ रूप वाले, (वृष-नाभिना) सुदृढ़ चक्रनाभि वाले (रथेन) रथ से ( वृथा) अनायास ही (नः वीतये) हमारी रक्षा के लिये ( हव्या आ गत ) यज्ञों युद्धों में आया जाया करो । अथवा इसी प्रकार ( मरुतः ) वैश्यगण रथों, यानों द्वारा (नः वीतये) हमारे खाने के लिये (हव्या) नाना अन्न (आ गत) लाया करें। इति सप्तत्रिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'वृषणश्व वृषप्सु वृषनाभि' रथ

    पदार्थ

    [१] हे (नरः) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले (मरुतः) = प्राणो! आप (रथेन) = उस शरीर रथ के हेतु से (नः) = हमारे इन (हव्या) = हव्य पदार्थों के (वीतये) = भक्षण के लिये (वृथा) = अनायास ही आगत = प्राप्त होवो । न-जिस प्रकार पक्षिणः- उत्तम पँखोंवाले श्येनासः श्येन [बाज] पक्षी प्राप्त होते हैं। श्येन चिड़िया आदि का शिकार करते हैं और ये प्राण रोगों का । [२] प्राण रोगों को समाप्त करके हमें उस शरीररथ से युक्त करते हैं जो वृषणश्वेन शक्तिशाली इन्द्रियाश्वोंवाला है, वृषप्सुना= - तेजस्वी रूपवाला है तथा वृषनाभिना = शक्तिशाली नाभिवाला है, जिसमें सब नाड़ियों का बन्धन-स्थान बड़ा दृढ़ है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणशक्ति के वर्धन के लिये हव्य पदार्थों का सेवन करने पर हमारा शरीररथ शक्तिशाली इन्द्रियाश्वोंवाला, तेजरूपवाला व शक्तिशाली नाड़ी-बन्धनवाला बनता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, stormy troops of nature and leading warriors of the human nation, come freely like the mighty high flying eagle birds and bring us holy yajnic inputs for development and human progress for our protection and advancement by your strongly built chariot drawn by mighty forces, bearing loads of riches in generous plenty for our spiritual and material well being.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेच्या कार्यात किंचितही विलंब होता कामा नये व आपल्याबरोबर विविध पदार्थ घेऊन जावे. जेथे जशी व्यवस्था असेल तेथे तसे करावे. ॥१०॥

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