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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 17
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    यथा॑ रु॒द्रस्य॑ सू॒नवो॑ दि॒वो वश॒न्त्यसु॑रस्य वे॒धस॑: । युवा॑न॒स्तथेद॑सत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । रु॒द्रस्य॑ । सू॒नवः॑ । दि॒वः । वश॑न्ति । असु॑रस्य । वे॒धसः॑ । युवा॑नः । तथा॑ । इत् । अ॒स॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा रुद्रस्य सूनवो दिवो वशन्त्यसुरस्य वेधस: । युवानस्तथेदसत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । रुद्रस्य । सूनवः । दिवः । वशन्ति । असुरस्य । वेधसः । युवानः । तथा । इत् । असत् ॥ ८.२०.१७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 17
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 39; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (रुद्रस्य, सूनवः) रुद्रस्य=रुद्राणां भयंकरवीराणाम् “जात्यभिप्रायेणैकवचनम्” पुत्राः (असुरस्य) दुष्टजनस्य (वेधसः) संस्कर्तारः (युवानः) तरुणाः (यथा) येनोपायेन (दिवः) अन्तरिक्षात् पर्वताद्युच्चप्रदेशादपि (वशन्ति) अस्मानिच्छन्ति (तथा, इत्, असत्) तथैव भवतु ॥१७॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्त्तते ।

    पदार्थः

    हे मनुष्याः ! यथा=येन प्रकारेण । रुद्रस्य=ईश्वरस्य । सूनवः=पुत्राः । दिवः=दिव्याः । असुरस्य=भक्तजनस्य । वेधसः=विधातारो रक्षका भवेयुः । तथेत्=तथैव । असत्=यतितव्यम् । ते पुनः कथंभूताः । युवानः । वसन्ति=कामयन्ते । अस्मान्=कामयेरन् तथा यतितव्यम् । सैनिकैर्जनैः सदा युवभिः ईश्वरभक्तैश्च भाव्यम् । ते यथा प्रसन्ना भवेयुस्तथा अन्यैरपि यतितव्यम् ॥१७ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (रुद्रस्य, सूनवः) शत्रुओं को रुलानेवाले वीरों की सन्तान (असुरस्य) दुष्टजनों के (वेधसः) सुधारक (युवानः) युवा वीर (यथा) जिस प्रकार (दिवः) अन्तरिक्ष=पर्वताद्युच्च प्रदेशों में विद्यमान होते हुए भी (वशन्ति) हमको चाहते रहें (तथा, इत्) वही उपाय (असत्) हो ॥१७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि रुद्र=शत्रुओं को रुलानेवाले योद्धाओं की सन्तान भी दुष्टजनों की सुधारक तथा उनको धर्मपथ पर स्थित करनेवाली होती है अर्थात् उक्त वीर पुरुषों की सन्तानें प्रजाजनों में सुधार उत्पन्न करती हुई सम्पूर्ण सुखों की उत्पादक होती हैं ॥१७॥

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    विषय

    पुनः उसी विषय की अनुवृत्ति है ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यों ! वे सैनिकजन (रुद्रस्य सूनवः) परमेश्वर के पुत्र हों अर्थात् ईश्वर के भक्त हों (दिवः) अच्छे स्वभाववाले (असुरस्य) भक्तजनों के (वेधसः) रक्षक हों तथा (युवानः) युवा पुरुष हों (यथा) जिस प्रकार यह कार्य सिद्ध हो (तथा+इत्) वैसा ही (असत्) होना चाहिये ॥१७ ॥

    भावार्थ

    यहाँ रुद्रादि शब्द से सैनिकजनों का लक्षण कहा गया है । प्रथम रुद्रसूनु पद से दिखलाया गया है कि ईश्वर के पुत्र जैसे परोपकारी आदि हो सकते हैं, वैसे ही सैनिकजन हैं और प्रत्येक उत्तम कार्य्य के वे विधायक हैं और युवा हैं । युवक पुरुषों से सेना में जितने कार्य्य सिद्ध हो सकते हैं, उतने वृद्धादिकों से नहीं ॥१७ ॥

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    विषय

    मरुतों अर्थात् वीरों, विद्वानों के कर्तव्य। वायु और जल लाने वाले वायु प्रवाहों के वर्णन।

    भावार्थ

    ( रुद्रस्य सूनवः ) गर्जना करने वाले मेघ के प्रेरक वायुगण जिस प्रकार ( असुरस्य वेधसः ) जलप्रद मेघ को उत्पन्न करते और ( दिवः वशन्ति ) अन्तरिक्ष पर वश करते वा भूमि को कान्तियुक्त करते हैं उसी प्रकार ( रुद्रस्य ) दुष्टों को रुलाने वाले राजा के ( सूनवः ) सञ्चालक और ( असुरस्य ) शत्रु को उखाड़ फेंकने वाले और प्रजाओं को जीवनवृत्ति देने वाले राजा को ( वेधसः ) बनाने वाले विद्वान् और ( युवानः ) बलवान् पुरुष ( दिवः यथा वशन्ति ) भूमि या राजसभा की जैसी वशकारिणी व्यवस्था करते या जैसे कामनाएं या व्यवहार चाहते हैं ( तथा इत् असत्) उसी प्रकार हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'रुद्रस्य सूनवः - युवानः' [मरुतः]

    पदार्थ

    [१] (यथा) = जैसे (रुद्रस्य सूनवः) = रोगों के द्रावयिता के पुत्र, अर्थात् खूब ही रोगों का द्रावण करनेवाले, प्राण (वशन्ति) = चाहते हैं, (इत्) = निश्चय से तथा (असत्) = वैसा ही हो जाता है। अर्थात् शरीर में शासन प्राणों का है। [२] ये प्राण (दिवः) = ज्ञान के प्रकाश के तथा (असुरस्य) = [ असून् एति ] प्राणशक्ति का संचार करनेवाले सोम के (वेधसः) = [विधातारः] कर्ता हैं। इन प्राणों ने ही शक्ति की ऊर्ध्वगति करनी है, तथा उस सुरक्षित सोम को ज्ञानाग्नि का ईंधन बनाकर ज्ञानाग्नि को दीप्त करना है । और इस प्रकार ये प्राण (युवानः) = [यु मिश्रणामिश्रणयोः] सब बुराइयों को पृथक् करनेवाले व सब अच्छाइयों को हमारे साथ मिलानेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- शरीर में प्राण रोगों को दूर भगानेवाले, ज्ञान व सोम के कर्ता तथा सब बुराइयों को दूर करके सब अच्छाइयों को हमारे साथ मिलानेवाले हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    As the Maruts, youthful children of Rudra, cosmic justice, light divine and universal life-giving intelligence, would wish, so may it be with us and all.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    येथे रुद्र शब्दाने सैनिकांचे लक्षण सांगितलेले आहे. प्रथम रुद्रसूनु पदाने हे दर्शविलेले आहे की, ईश्वराचे पुत्र जसे परोपकारी वगैरे असू शकतात, तसेच सैनिक आहेत. प्रत्येक उत्तम कार्याचे ते विधायक व युवा आहेत. युवकांकडून सेनेत जितके कार्य सिद्ध होते तितके वृद्धाकडून नाही. ॥१७॥

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