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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 7
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - ककुबुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स्व॒धामनु॒ श्रियं॒ नरो॒ महि॑ त्वे॒षा अम॑वन्तो॒ वृष॑प्सवः । वह॑न्ते॒ अह्रु॑तप्सवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒धाम् । अनु॑ । श्रिय॑म् । नरः॑ । महि॑ । त्वे॒षाः । अम॑ऽवन्तः । वृष॑ऽप्सवः । वह॑न्ते । अह्रु॑तऽप्सवः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वधामनु श्रियं नरो महि त्वेषा अमवन्तो वृषप्सवः । वहन्ते अह्रुतप्सवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वधाम् । अनु । श्रियम् । नरः । महि । त्वेषाः । अमऽवन्तः । वृषऽप्सवः । वहन्ते । अह्रुतऽप्सवः ॥ ८.२०.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 37; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (नरः) नेतारः (त्वेषाः) दीप्तिमन्तः (अमवन्तः) बलवन्तः (वृषप्सवः) इष्टवर्षणरूपाः (अहुतप्सवः) सरलरूपाः ते (स्वधाम्, अनु) उपभोगार्हपदार्थमुद्दिश्य (महि, श्रियम्) महतीं शोभाम् (वहन्ते) दधति ॥७॥

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    विषयः

    पुनः सेनाः कीदृश्यो भवेयुरिति दर्शयति ।

    पदार्थः

    इमे नरः=नेतारो मरुतः । स्वधाम्+अनु=स्वधा=स्वभावः स्वेषां धारणं वा । स्वकीयदेशादिधारणमनुलक्ष्य । महि=महतीम् । श्रियम्=शोभाम् । वहन्ते । यदा एते स्वदेशादिकं रक्षन्ति तदैवैषां शोभा जायत इत्यर्थः । कीदृशा एते । त्वेषाः=दीप्ताः । पुनः । अमवन्तः=बलवन्तः । पुनः । वृषप्सवः=वर्षणशीलरूपाः । पुनः । अह्रुतप्सवः=अकुटिलरूपाश्च ॥७ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (नरः) नेता (त्वेषाः) दीप्तिमान् (अमवन्तः) बलवाले (वृषप्सवः) कामनाप्रदरूपवाले (अहुतप्सवः) अकुटिल रूपवाले शूर लोग (स्वधाम्, अनु) उपभोग्य पदार्थों के उद्देश्य से (महि, श्रियम्) महती शोभा को (वहन्ते) धारण करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि जो शूरवीर नेतागण प्रजा के हितार्थ स्वधर्मपालन तथा राज्यलक्ष्मी की रक्षा के लिये युद्ध करते हैं, उनकी शोभा=कीर्ति भूमण्डल में चहुँदिक् फैल जाती है और वे श्रीसम्पन्न होकर अत्यन्त शोभायमान होते हैं, अतएव स्वधर्म, स्वजाति तथा स्वदेश के लिये जो नेतागण युद्धस्थल में पदार्पण करते हैं, वे अपने धर्म का पालन करने के कारण महती कीर्ति तथा महदैश्वर्य्य को प्राप्त होकर देश को सुरक्षित रखते हैं ॥७॥

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    विषय

    पुनः सेनाएँ कैसी होवें, यह दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (नरः) ये जगन्नेता मरुद्गण (स्वधाम्+अनु) जब देश की रक्षा करते हैं, तब (महि) अतिशय (श्रियम्) शोभा को (वहन्ते) धारण करते हैं, वे कैसे हैं (त्वेषाः) अत्यन्त प्रकाशित, पुनः (अमवन्तः) परम बलिष्ठ, पुनः (वृषप्सवः) जिनके रूप से करुणत्व टपक रहा हो, पुनः (अह्रुतप्सवः) अकुटिलरूप अर्थात् जिनकी गति कुटिलता से युक्त न हो ॥७ ॥

    भावार्थ

    सेना को उचित है कि वह अपने देश की सर्व प्रकार से रक्षा करे, वे स्वयं अपने आचरण से दीप्तिमान् और करुणानन्द हों और उनके प्रत्येक कार्य्य सरल हों ॥७ ॥

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    विषय

    मरुतों अर्थात् वीरों, विद्वानों के कर्तव्य। वायु और जल लाने वाले वायु प्रवाहों के वर्णन।

    भावार्थ

    वे ( नरः ) नायक वीर जन ( त्वेषाः ) तीक्ष्ण कान्तियुक्त अमवन्तः ) बलवान्, ( वृषप्सवः ) वृषभ के समान हृष्ट पुष्ट शरीर वाले और ( अद्भुतप्सवः ) सरल सूधी प्रकृति वाले, निष्कपट होकर ( स्वधाम् अनु ) अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार (महि श्रियम् वहन्ते ) बड़ी भारी राजलक्ष्मी को धारण करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    वृषप्सवः - अह्रुतप्सवः

    पदार्थ

    [१] (त्वेषाः नरः) = ये दीप्त अग्रगामी सैनिक (स्वधां अनु) = आत्मधारण शक्ति के अनुसार (महि) = महान् (श्रियम्) = शोभा को वहन्ते धारण करते हैं। ये अपने धारण के लिये किसी दूसरे पर आश्रित नहीं होते। ये औरों का, सारे राष्ट्र का धारण करते हैं । [२] ये सैनिक (अमवन्तः) = बल सम्पन्न होते हैं। (वृषप्सवः) = शक्ति सिक्त रूपवाले होते हैं, बड़े तेजस्वी प्रतीत होते हैं। (अह्नुतप्सवः) = अकुटिलरूप होते हैं, छल-छिद्र की भावना से रहित होते हुए शुद्ध हृदय से देश के रक्षक होते हैं। अपने स्वार्थ के लिये कभी देश-द्रोह नहीं करते है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सैनिकों की शोभा अद्भुत ही होती है। ये बलवान् तेजस्वी व निश्छल वृत्ति से देश की सेवा करनेवाले होते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    These mighty heroes, blazing bright in magnificence, commanding force and power of excellence, generous with moral rectitude, far from crookedness and unshakably upright in conduct, wear and express the grace of culture and behaviour in keeping with their innate merit and dedication to the defence of mother earth and her children.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सेनेने आपल्या देशाचे सर्व प्रकारे रक्षण करावे. सैनिक स्वत: आपल्या आचरणाने तेजस्वी व करुणामय असावेत व त्यांचे प्रत्येक काम सरळ असावे. ॥७॥

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