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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 12
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - पादनिचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    त उ॒ग्रासो॒ वृष॑ण उ॒ग्रबा॑हवो॒ नकि॑ष्ट॒नूषु॑ येतिरे । स्थि॒रा धन्वा॒न्यायु॑धा॒ रथे॑षु॒ वोऽनी॑के॒ष्वधि॒ श्रिय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । उ॒ग्रासः॑ । वृष॑णः । उ॒ग्रऽबा॑हवः । नकिः॑ । त॒नूषु॑ । ये॒ति॒रे॒ । स्थि॒रा । धन्वा॑नि । आऽयु॑धा । रथे॑षु । वः॒ । अनी॑केषु । अधि॑ । श्रियः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त उग्रासो वृषण उग्रबाहवो नकिष्टनूषु येतिरे । स्थिरा धन्वान्यायुधा रथेषु वोऽनीकेष्वधि श्रिय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । उग्रासः । वृषणः । उग्रऽबाहवः । नकिः । तनूषु । येतिरे । स्थिरा । धन्वानि । आऽयुधा । रथेषु । वः । अनीकेषु । अधि । श्रियः ॥ ८.२०.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 38; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (उग्रासः) बलीयांसः (वृषणः) रक्षणस्य वर्षितारः (उग्रवाहवः) कठोरभुजाः (ते) ते मरुतः (तनूषु) स्वकीयतनूषु (नकिः) नहि (येतिरे) प्रयतन्ते परविरोधेन, हे शूराः (वः) युष्माकं (रथेषु) यानेषु (धन्वानि) धनूंषि (आयुधा) आयोधनकरणानि च (स्थिरा) दृढानि सन्ति अतः (अनीकेषु) सेनासु (श्रियः) जयश्रियः (अधि) अधिकं भवन्ति ॥१२॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्त्तते ।

    पदार्थः

    उग्रासः=उद्गूर्णाः=निखिलकार्य्येषु उद्यताः । पुनः । वृषणः=शान्तिरक्षादीनां वर्षितारः । पुनः । उग्रबाहवः ते मरुद्गणाः । तनूषु=स्वकीयेषु शरीरेषु । नकिः=न कदापि । येतिरे=यतन्ताम् । स्वशरीरस्य भरणपोषणचिन्तां ते न कुर्वन्तीत्यर्थः । हे मरुतः । वः=युष्माकं रथेषु । धन्वानि=धनूंषि । आयुधा=आयुधानि आयोधनानि वाणादीनि । स्थिरा=स्थिराणि दृढानि । सन्तु । येन । अनीकेषु अधिसेनासु । सदा । श्रिय=विजयश्रियो भवेयुः ॥१२ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (उग्रासः) बल से भरे हुए (वृषणः) रक्षाओं की वर्षा करनेवाले (उग्रवाहवः) कठोर भुजावाले (ते) वे सब योद्धा दूसरों के विरोध से (तनूषु) अपने शरीरों के (नकिः, येतिरे) भरण-पोषण का प्रयत्न नहीं करते, हे वीरो (वः) आपके (रथेषु) रथों में (धन्वानि) धनुष्=प्रक्षेपण साधन और (आयुधा) संप्रहारसाधन अस्त्र-शस्त्र (स्थिरा) दृढ रहते हैं, इससे (अनीकेषु) सेनाओं में (श्रियः) जयलक्ष्मी (अधि) अधिक होती है ॥१२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि बल से पूर्ण योद्धा जिनके वृषभ समान स्कन्ध, विशाल बाहु, कम्बुसमान ग्रीवा तथा धनुर्विद्याप्रधान योद्धाओं के अस्त्र-शस्त्रों में राजलक्ष्मी सदा निवास करती है ॥१२॥

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    विषय

    पुनः वही विषय आ रहा है ।

    पदार्थ

    पुनः सेनाजन कैसे हों सो कहते हैं−(ते) वे सेनाजन (उग्रासः) सर्व कार्य्यों में परमोद्योगी हों, पुनः (वृषणः) शान्ति, रक्षा, धन आदि की वर्षिता हों, पुनः (उग्रवाहवः) बाहुबल के कारण उग्र हों अथवा जिनके बाहु सदा सर्वकार्य में उद्यत हों, किन्तु (तनूषु) निज शरीर के भरण-पोषण के लिये (नकिः) कदापि भी (येतिरे) चेष्टा न करें, क्योंकि उनके शरीर के पोषण की चिन्ता प्रजाएँ किया करें । तथा हे मरुद्गण ! (वः) आपके (रथेषु) रथों के ऊपर (धन्वानि) धनुष् और (आयुधा) वाण आदि आयुध (स्थिरा) दृढ़ हों, जिससे (अनीकेषु+अधि) सेनाओं में (श्रियः) विजयलक्ष्मी को प्राप्त हों ॥१२ ॥

    भावार्थ

    सैनिक पुरुष परमोद्योगी हों, अपने शरीर की चिन्ता न करें । वे अच्छे-२ अस्त्रों से सुभूषित हों ॥१२ ॥

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    विषय

    मरुतों अर्थात् वीरों, विद्वानों के कर्तव्य। वायु और जल लाने वाले वायु प्रवाहों के वर्णन।

    भावार्थ

    ( ते ) वे ( उग्रासः ) भयानक, ( वृषण: ) बलवान्, ( उग्र-बाहवः ) प्रचण्ड बाहुबल वाले, वीर पुरुष ( तनूषु ) अपने शरीरों के निमित्त ( नकिः येतिरे ) कोई श्रम न करें। इनको आजीविकोपार्जन के लिये अन्य यत्न की आवश्यकता नहीं। उनका कर्त्तव्य है कि ( रथेषु ) उनके रथों पर ( धन्वानि आयुधा ) धनुष आदि हथियार ( स्थिरा ) स्थिर हों। हे वीर पुरुषो ! ( नः अनीकेषु अधि ) आप लोगों की सेनाओं के आधार पर ही ( श्रियः ) राष्ट्र की लक्ष्मियां स्थिर हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    वीर सैनिक व देश की श्री का वर्धन

    पदार्थ

    [१] (ते) = वे युद्धभूमि में प्राणों को त्यागनेवाले सैनिक (उग्रासः) = बड़े उद्गूर्ण बलवाले, बढ़े हुए बलवाले हैं। (वृषणः) = शक्तिशाली हैं। (उग्रबाहवः) = बड़ी तेजस्वी भुजाओंवाले हैं। ये (तानूषु) = अपने शरीरों के रक्षक के विषय में (नकिः येतिरे) = कभी प्रयत्न नहीं करते। अपने सबल शरीरों को देश के लिये आहुत करने के लिये ये तैयार पर तैयार होते हैं। [२] इनके (रथेषु) = रथों पर (स्थिरा धन्वानि) = दृढ़ धनुष व (आयुध) = अन्य युद्ध के अस्त्र होते हैं। वस्तुतः हे सैनिको ! (वः) = आपके (अनीकेषु अधि) = सेनाओं के अग्रभागों में ही (श्रियः) = राष्ट्र की सब सम्पत्तियों का निवास है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- तेजस्वी सैनिक देशरक्षा के लिये प्राणत्याग करते हुए भयभीत नहीं होते। अस्त्र- शस्त्र से सुसज्जित रथों पर आरूढ़ होकर शत्रु-विजय करते हुए ये देश की 'श्री' की अभिवृद्धि का कारण बनते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Bold and fearsome are they, vigorous and generous, strong of arm, so that they don’t have to exert to defend their bodies and battle formations. Their arms and ammunitions are safe and strong, ready in position in their chariots, and in their battles they come out victorious with credit and admiration.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सैनिक लोक परम उद्योगी असावेत. आपल्या शरीराची चिंता करू नये. ते चांगल्या अस्त्रांनी सुभूषित असावेत. ॥१२॥

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