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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 25
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यत्सिन्धौ॒ यदसि॑क्न्यां॒ यत्स॑मु॒द्रेषु॑ मरुतः सुबर्हिषः । यत्पर्व॑तेषु भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । सिन्धौ॑ । यत् । असि॑क्न्याम् । यत् । स॒मु॒द्रेषु॑ । म॒रु॒तः॒ । सु॒ऽब॒र्हि॒षः॒ । यत् । पर्व॑तेषु । भे॒ष॒जम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्सिन्धौ यदसिक्न्यां यत्समुद्रेषु मरुतः सुबर्हिषः । यत्पर्वतेषु भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । सिन्धौ । यत् । असिक्न्याम् । यत् । समुद्रेषु । मरुतः । सुऽबर्हिषः । यत् । पर्वतेषु । भेषजम् ॥ ८.२०.२५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 25
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 40; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (मरुतः) हे योद्धारः ! (सुबर्हिषः) शोभनासनाः (यत्, सिन्धौ) यत्स्यन्दनशीले नदे (यत्, असिक्न्याम्) यत् तमसावृते देशे (यत्, समुद्रेषु) यच्च उदधिषु (यत्, पर्वतेषु) यत् पर्वतभूमिषु (भेषजम्) औषधमस्ति विश्वं पश्यन्त इत्युत्तरर्चासम्बन्धः ॥२५॥

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    विषयः

    पुनस्तमर्थमाह ।

    पदार्थः

    हे सुबर्हिषः=शोभनयज्ञाः । मरुतः । सिन्धौ=स्यन्दनशीले जलाशये । यद्भेषजं विद्यते । असिक्याम्=नद्याम् । यद् भेषजम् । समुद्रेषु पर्वतेषु च । यद् भेषजम् । तद्+आहरत ॥२५ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (सुबर्हिषः, मरुतः) हे सुन्दर आसनवाले योद्धाओ ! (यत्, सिन्धौ) जो नदियों में (यत्, असिक्न्याम्) जो अन्धकारयुक्त अगम्य देश में (यत्, समुद्रेषु) जो समुद्रों में (यत्, पर्वतेषु) जो पहाड़ों में (भेषजम्) औषध हैं। “इस ऋचा का उत्तर ऋचा के साथ सम्बन्ध है” ॥२५॥

    भावार्थ

    हे वीर योद्धाओ ! जो नदियों में, वनों में, पर्वतों की कन्दराओं में तथा अगम्य प्रदेशों में जो-२ औषध तथा गुप्त पदार्थ हैं, उन सबको आप भले प्रकार जानकर उपयोग में लाते हैं ॥२५॥

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    विषय

    पुनः उसी विषय को कहते हैं ।

    पदार्थ

    सैनिकजनों के लिये अन्यान्य कर्त्तव्य का उपदेश देते हैं । (सुबर्हिषः) रक्षारूप महायज्ञ करनेवाले (मरुतः) सैनिक जनों ! (सिन्धौ) बहनेवाले जलाशयों में (यद्) जो (भेषजम्) औषध विद्यमान है, (समुद्रेषु) समुद्रों में (यत्) जो औषध विद्यमान है और (पर्वतेषु) पर्वतों पर (यत्) जो औषध है, उसको प्रजाहितार्थ लाया कीजिये ॥२५ ॥

    भावार्थ

    औषधों का भी संग्रह करना सैनिकजनों का कर्त्तव्य है ॥२५ ॥

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    विषय

    देह में मरुद्गण प्राणगण।

    भावार्थ

    हे ( सु-बर्हिषः ) उत्तम यज्ञ वाले और औषधियों वाले ( मरुतः ) विद्वान् पुरुषो ! ( यत् ) जो ( भेषजम् ) रोगनाशक पदार्थ ( सिन्धौ ) नदी प्रवाह में और यत् ( असिक्न्यां ) रात्रि काल में, ( यत् समुद्रेषु ) जो समुद्रों में, और ( यत् पर्वतेषु ) जो पर्वतों में रोगनाशक ओषधि हैं उनको ( आवहत ) प्राप्त कराओ। उत्तम औषधि को जानने वाले विद्वान् सुबर्हिष् मरुत् कहाते हैं। इसी प्रकार देह में रक्त नाड़ियां सिन्धु हैं, नीली असिक्नी हैं, हृदय फुस्फुसादि समुद्र और अस्थिपर्व पर्वत हैं । उनमें प्राप्त रोगनाशक तत्व पापों के बलपर कर्म करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'सिन्धु, असिक्री, समुद्र व पर्वतों' का स्वास्थ्य

    पदार्थ

    [१] (सिन्धौ) = रक्त-रुधिर की प्रवाहिका नाड़ियों के विषय में (यत्) = जो (भेषजम्) = औषध है, (असिक्न्याम्) = नीलरक्तवाहिनी नाड़ियों के विषय में (यत्) = जो [ भेषजम् = ] औषध है। (समुद्रेषु) = रक्त के सरोवर भूत हृदय - फुफ्फुस आदि के विषय में (यत्) = जो औषध है। और (यत्) = जो औषध (पर्वतेषु) = अस्थि पर्वरूप पर्वतों के विषय में है। वह सब औषध इस सुबर्हिषः = रोगों का खूब ही उद्बर्हण करनेवाले (मरुतः) = प्राणों का है ['मरुतः ' षष्ठी लेनी है] । [२] 'सिन्धु, असिह्नी, समुद्र व पर्वतों' के दोषों को प्राण ही दूर कर पाते हैं। इनके लिये औषध इतने प्रभावजनक नहीं होते। प्राणसाधना के होने पर उभयविध नाड़ियों के, हृदय व फुष्फुस के तथा मेरुदण्ड आदि पर्वतों के दोष दूर हो जाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना के होने पर नाड़ियां, फुफ्फुस व मेरुदण्ड आदि सब स्वस्थ रहते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, who sit on the holy seat of yajna, bring us the sanatives and medicaments that are in the rivers and the seas, in the darkness of caves, in the oceans and on the mountains.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जलाशय, नद्या, समुद्र, पर्वत येथे जी औषधी विद्यमान आहे त्यांचा संग्रह करणे सैनिकांचे काम आहे. ॥२५॥

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