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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 6
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - पादनिचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अमा॑य वो मरुतो॒ यात॑वे॒ द्यौर्जिही॑त॒ उत्त॑रा बृ॒हत् । यत्रा॒ नरो॒ देदि॑शते त॒नूष्वा त्वक्षां॑सि बा॒ह्वो॑जसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अमा॑य । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । यात॑वे । द्यौः । जिही॑ते । उत्ऽत॑रा । बृ॒हत् । यत्र॑ । नरः॑ । देदि॑शते । त॒नूषु॑ । आ । त्वक्षां॑सि ब॒हुऽओ॑जसः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अमाय वो मरुतो यातवे द्यौर्जिहीत उत्तरा बृहत् । यत्रा नरो देदिशते तनूष्वा त्वक्षांसि बाह्वोजसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अमाय । वः । मरुतः । यातवे । द्यौः । जिहीते । उत्ऽतरा । बृहत् । यत्र । नरः । देदिशते । तनूषु । आ । त्वक्षांसि बहुऽओजसः ॥ ८.२०.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 37; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (मरुतः) हे शूराः ! (वः, अमाय, यातवे) युष्माकं बलस्य यानाय (उत्तरा, द्यौः) उत्कृष्टतरो द्युलोकोऽपि (बृहत्) अन्तरिक्षम् (जिहीते) त्यक्त्वा गच्छति (यत्र) यस्मिन् काले (बाह्वोजसः, नरः) बाहुपराक्रमा नेतारो भवन्तः (तनूषु) स्वशरीरेषु (त्वक्षांसि) युद्धाभरणानि (आदेदिशते) परिदधते ॥६॥

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    विषयः

    पुनस्तदनुवर्त्तते ।

    पदार्थः

    हे मरुतः=दुष्टनिग्राहकाः सेनाजनाः । दुष्टान् मारयन्तीति मरुतः । वः=युष्माकम् । अमाय=बलाय । यातवे=यातुं गन्तुम् । द्यौरन्यो विजिगीयुः । बृहत्=बृहत्स्थानं विहाय । उत्तरा=उद्गततरा सती । जिहीते=गच्छति । हाङ् गतौ । यत्र । नरः=नेतारो जनानाम् । पुनः । बाह्वोजसः=बाह्वोर्भुजयोरोजो बलं येषां ते । मरुतः । तनूषु=शरीरेषु । त्वक्षांसि=आयुधानि । आ+देदिशते=धारयन्ति ॥६ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (मरुतः) हे शत्रुसंहार करनेवाले योद्धाओ ! (वः, अमाय, यातवे) आपके बल को जानने के लिये (उत्तरा, द्यौः) उत्कृष्टतर द्युलोक भी (बृहत्) अन्तरिक्ष को (जिहीते) छोड़ देता है (यत्र) जब (बाह्वोजसः) बाहुपराक्रमवाले (नरः) नेता आप (तनूषु) स्वकीय शरीरों में (त्वक्षांसि) दीप्त संग्रामयोग्य आभरणों को (आदेदिशते) धारण करने लगते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र का भाव यह है कि शत्रुओं का संहार करनेवाले विजयी योद्धा जब युद्ध के आभूषणों को धारण करते हैं, तब मानो द्युलोक अन्तरिक्ष लोक से नीचे आकर अपने तेज का प्रकाश करने लगता है अर्थात् योद्धाओं के युद्धसूचक चिह्न द्युलोक के समान प्रकाशवाले होते हैं, या यों कहो कि दिव्य शक्तियों को धारण किये हुए योद्धा सूर्य्यसमान दीप्तिमान् प्रतीत होते हैं ॥६॥

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    विषय

    पुनः उसी विषय का वर्णन आ रहा है ।

    पदार्थ

    (मरुतः) हे मरुद्गण सैन्यनायको दुष्टजनशासको ! (वः) आप लोगों के (अमाय+यातवे) बल के कारण स्वच्छन्दपूर्वक गमन के लिये (द्यौः) अन्यान्य जिगीषु वीरपुरुष (बृहत्) बहुत स्थान आपके लिये छोड़कर (उत्तरा+जिहीते) आगे बढ़ जाते हैं (यत्र) जिसके निमित्त (नरः) जननेता और (बाह्वोजसः) भुजबलधारी आप (तनूषु) शरीरों में (त्वक्षांसि) आयुध (देदिशते) लगाते हैं ॥६ ॥

    भावार्थ

    जो अच्छे सैनिक पुरुष होते हैं, उनसे सब डरते हैं, क्योंकि वे निःस्वार्थ और देशहित के लिये समर करते हैं ॥६ ॥

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    विषय

    मरुतों अर्थात् वीरों, विद्वानों के कर्तव्य। वायु और जल लाने वाले वायु प्रवाहों के वर्णन।

    भावार्थ

    जिस प्रकार वायुओं के ( अमाय यातवे ) बलपूर्वक जाने के लिये ( द्यौः उत्तरा बृहत् जिहीते ) ऊपर का आकाश बीच के बड़े भारी अन्तरिक्ष को त्याग देता है, इसी प्रकार हे ( मरुतः ) शत्रुओं को मारने में पुणवीर पुरुषो ! (वः अमाय) आप लोगों के बल प्रयोग या व्यायामाभ्यास के लिये और ( यातवे ) युद्धार्थ प्रयाण करने के लिये ( उत्तरा द्यौ: ) सर्वोपरि शासक शक्ति, ( बृहत् ) बहुत बड़ा स्थान वा पद ( जिहीते) दे, ( यत्र ) जिस पर स्थित होकर ( बाह्वोजसः ) बाहुओं में बल पराक्रम धारण करने वाले ( नराः ) नायक लोग ( तनूषु ) अपने शरीरों पर ( रक्षांसि ) जरा-वक्तर वा दीप्तियुक्त पदक आभूषण आदि ( आ देदिशते ) धारण करते हैं। अथवा ( तनूषु त्वक्षांसि आ देदिशते) शत्रुओं के शरीरों वा विस्तृत सैन्यों पर तीक्ष्ण शस्त्रों का रुख करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सैनिकों के लिये द्युलोक भी मार्ग छोड़ देता है

    पदार्थ

    [१] हे (मरुतः) = सैनिको ! (वः) = तुम्हारे (अमाय) = बल के लिये व (यातवे) = गति के लिये (द्यौ:) = यह द्युलोक (बृहत्) = खूब ही (उत्तरा) = उद्गततर होकर (जिहीते) = गतिवाला होता है। मानो लोक भी इन सैनिकों के लिये मार्ग छोड़ देता है। [२] यह वहाँ होता है, (यत्रा) = जहाँ कि (बाह्वोजसः) = बाहुओं में बलवाले, सबल भुजाओंवाले, (नरः) = आगे और आगे बढ़नेवाले ये सैनिक (तनुषू) = अपने शरीरों पर (त्वक्षांसि) = दीप्त आयुधों को आदेदिशते आदिष्ट करते हैं, धारण करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - अस्त्रों से सुसज्जित वीरों की सेना के चलने पर द्युलोक भी मानो उनके लिये मार्ग को छोड़ देता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, for the expansion of your force and power on the march, the vast skies give way farther and farther as the heroes of mighty arm put on and display their armour on their person.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे चांगले सैनिक असतात त्यांना सर्वजण घाबरतात. कारण ते नि:स्वार्थी व देशहितासाठी युद्ध करतात. ॥६॥

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