ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 16
यस्य॑ वा यू॒यं प्रति॑ वा॒जिनो॑ नर॒ आ ह॒व्या वी॒तये॑ ग॒थ । अ॒भि ष द्यु॒म्नैरु॒त वाज॑सातिभिः सु॒म्ना वो॑ धूतयो नशत् ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । वा॒ । यू॒यम् । प्रति॑ । वा॒जिनः॑ । न॒रः॒ । आ । ह॒व्या । वी॒तये॑ । ग॒थ । अ॒भि । सः । द्यु॒म्नैः । उ॒त । वाज॑सातिऽभिः । सु॒म्ना । वः॒ । धू॒त॒यः॒ । न॒श॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य वा यूयं प्रति वाजिनो नर आ हव्या वीतये गथ । अभि ष द्युम्नैरुत वाजसातिभिः सुम्ना वो धूतयो नशत् ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । वा । यूयम् । प्रति । वाजिनः । नरः । आ । हव्या । वीतये । गथ । अभि । सः । द्युम्नैः । उत । वाजसातिऽभिः । सुम्ना । वः । धूतयः । नशत् ॥ ८.२०.१६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 16
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 39; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 39; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(नरः) हे नेतारः ! (यस्य, वा) अथवा यस्य (हव्या, प्रति) हव्यानि प्रति (वाजिनः, यूयम्) बलवन्तो यूयम् (वीतये) उपभोगाय (आगथ) आगच्छथ (धूतयः) हे कम्पयितारः ! (सः) स जनः (द्युम्नैः) द्योतमानधनैः (उत) अथ (वाजसातिभिः) बलभागैः (अभि) अभियुक्तः सन् (वः) युष्माकम् (सुम्ना) सुखानि (नशत्) व्याप्नोति ॥१६॥
विषयः
पुनस्तदनुवर्त्तते ।
पदार्थः
नरः=हे नेतारो मरुतः । यूयम् । यस्य वा=यस्य च । वाजिनः=हविष्मतो यजमानस्य । हव्या=हव्यानि हवींषि । प्रति=उद्दिश्य । वीतये=रक्षणाय । आ गथ=आगच्छथ । स यजमानः । धूतयः=हे कम्पयितारो मरुतः । द्युम्नैः । द्योतमानैरन्नैर्यशोभिर्वा । उत=अपि च । वाजसातिभिः=वाजानां संभजनैश्च । वः=युष्माकम् । सुम्ना=सुम्नानि=सुखानि । अभिनशत्=अभितो व्याप्नोति । सेनाभिर्यत्नेन प्रजाधनानि रक्षितव्यानि ॥१६ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(नरः) हे नेता योद्धाओ ! (यस्य, वा) अथवा जिसके (हव्या, प्रति) स्वभोग्य पदार्थों के प्रति (वाजिनः, यूयम्) बलिष्ठ आप (वीतये) उपभोगार्थ (आगथ) आते हैं (धूतयः) हे शत्रुओं को कंपानेवाले ! (सः) वह मनुष्य (द्युम्नैः) दिव्य धन से (उत) और (वाजसातिभिः) अनेकविध बलों से (अभि) अभियुक्त होकर (वः) आपके (सुम्ना) सुखों से (नशत्) व्याप्त होता है ॥१६॥
भावार्थ
हे शत्रुओं को तपानेवाले शूरवीर योद्धाओ ! वह पुरुष धन-धामादि अनेकविध सुखों से युक्त होता है, जिसके यहाँ आप उपभोगार्थ जाते हैं, या यों कहो कि वह पुरुष अनन्त प्रकार के भोगों तथा अभ्युदय को प्राप्त होता है, जो आपकी आज्ञापालन करता तथा विविध प्रकार के पदार्थों से आपकी सेवा करता है ॥१६॥
विषय
पुनः वही विषय आ रहा है ।
पदार्थ
(नरः) हे नेता सेनाओ ! आप (यस्य+वा) जिस (वाजिनः) यजमान अर्थात् सेवकजन के (हव्या) धनों के (प्रति) प्रति (वीतये) रक्षा के लिये (आगथ) आते-जाते रहते हैं (धूतयः) हे दुष्टों को कम्पानेवाली सेनाओ ! (सः) वह (द्युम्नैः) विविध धनों से वा यशों से (उत) और (वाजसातिभिः) अन्नों के दानों से युक्त होता है और (वः) आप लोगों से सुरक्षित होकर वह जन सदा (सुम्ना) विविध प्रकार के धनों को (अभिनशत्) अच्छी तरह से प्राप्त करता है ॥१६ ॥
भावार्थ
सेनाओं को उचित है कि वे प्रजाओं के धनों और सुखों को पालें और बचावें ॥१६ ॥
विषय
मरुतों अर्थात् वीरों, विद्वानों के कर्तव्य। वायु और जल लाने वाले वायु प्रवाहों के वर्णन।
भावार्थ
हे ( नरः ) वीर नायक जनो ! (वा) और ( यस्य वाजिनः ) बलवान्, ज्ञानवान् और ऐश्वर्यवान् राष्ट्र के ( वीतये ) रक्षा के लिये ( यूयं ) आप लोग ( वाजिनः ) स्वयं बलशाली होकर ( हव्या प्रति आ गथ ) अन्नों को और यज्ञ, युद्धोपयोगी दोनों पदों और हथियारों को प्राप्त करते हो, हे ( धूतयः ) शत्रुकंपक वीरो ! और हे अज्ञान, मोह, रागादि के त्यागने वाले विद्वानो ! ( सः ) वह ( द्युम्नै: ) नाना ऐश्वर्यों और ( वाज-सातिभिः ) ज्ञान, बलादि की वाणियों सहित ( वः सुम्नानि अभिनशत् ) आप लोगों के सुखों को प्राप्त करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥
विषय
द्युम्न-वाज-सुम्न
पदार्थ
[१] हे (वाजिनः) = शक्तिशाली (नरः) = उन्नतिपथ पर हमें ले चलनेवाले प्राणो ! (यस्य) = जिस भी मनुष्य के (न) = निश्चय से (हव्य) = हव्य पदार्थों को ही (वीतये) = खाने के लिये (यूयम्) = आप प्रति (आगथ) = प्रतिदिन प्राप्त होते हो। अर्थात् जो मनुष्य सात्त्विक अन्नों का ही सेवन करता हुआ आपका वर्धन करता है (सः) = वह (वा) = आपकी (द्युम्नैः) = ज्ञान - ज्योतियों से (अभिनशत्) = व्याप्त होता है। [२] (उत) = और वह पुरुष (वाजसातिभिः) = शक्तियों के सम्भजन से युक्त होता है। हे (धूतयः) = शत्रुओं से कम्पित करनेवाले प्राणो ! रोगों व वासनाओं को नष्ट करनेवाले प्राणो ! यह व्यक्ति (वः) = आपके (सुम्ना) = सब सुखों व रक्षणों को (नशत्) = प्राप्त होता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्राणसाधना के साथ सात्त्विक भोजन को अपनायें, तो ज्ञान शक्ति व सब सुखों को प्राप्त करेंगे।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts, leading lights of life, movers and shakers of negativities and opposition, whoever the man with yajnic gift when you approach to protect and partake of his offerings, is blest with peace and comfort and he prospers with honour and fame and wins victories in the battles for food, energy and wealth with prestige.
मराठी (1)
भावार्थ
सेनेने प्रजेचे धन व सुख यांचे पालन करावे ॥१६॥
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