ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 25/ मन्त्र 10
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराडुष्निक्
स्वरः - ऋषभः
उ॒त नो॑ दे॒व्यदि॑तिरुरु॒ष्यतां॒ नास॑त्या । उ॒रु॒ष्यन्तु॑ म॒रुतो॑ वृ॒द्धश॑वसः ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । नः॒ । दे॒वी । अदि॑तिः । उ॒रु॒ष्यता॑म् । नास॑त्या । उ॒रु॒ष्यन्तु॑ । म॒रुतः॑ । वृ॒द्धऽश॑वसः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत नो देव्यदितिरुरुष्यतां नासत्या । उरुष्यन्तु मरुतो वृद्धशवसः ॥
स्वर रहित पद पाठउत । नः । देवी । अदितिः । उरुष्यताम् । नासत्या । उरुष्यन्तु । मरुतः । वृद्धऽशवसः ॥ ८.२५.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 25; मन्त्र » 10
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
May Mother Nature divine and the mother power of humanity of inviolable strength protect and promote us. May the Ashvins, ever true, complementary powers of natural and social dynamics protect and promote us. May the Maruts, distinguished people of veteran strength and power protect and promote us.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजारक्षणच परम धर्म आहे. दंडाच्या भयानेच शांती टिकते. त्यासाठी यथाशक्ती सर्वच श्रेष्ठ पुरुष व स्त्रिया यांनी या कार्यात सावधान असावे. ॥१०॥
संस्कृत (1)
विषयः
प्रजाः सर्वै रक्षणीया इति दर्शयति ।
पदार्थः
उत=अपि च । देवी+अदितिः=माता । सत्पुत्राणां जनयित्री माता । नोऽस्मान् । उरुष्यताम्=रक्षतु । नासत्या=असत्यरहितौ वैद्यौ । रक्षतः । वृद्धशवसः=प्रवृद्धबलाः । मरुतः=सेनानायकाश्च । उरुष्यन्तु=रक्षन्तु ॥१० ॥
हिन्दी (3)
विषय
सबसे प्रजाएँ रक्षणीय हैं, यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(उत) और (देवी+अदितिः) उत्तमगुणयुक्ता सत्पुत्रों को पैदा करनेवाली लोकमाता (नः+उरुष्यताम्) हम लोगों का साहाय्य और रक्षा करे और (नासत्या) असत्यरहित वैद्यगण हमारी रक्षा करें और (वृद्धशवसः+मरुतः) परम बलवान् सेनानायकगण भी हमारी रक्षा करें ॥१० ॥
भावार्थ
प्रजारक्षा ही परमधर्म है, दण्ड के भय से ही शान्ति रहती है, अतः यथाशक्ति सब ही श्रेष्ठ पुरुष और स्त्रियाँ इस कार्य्य में दत्तचित्त और सावधान रहें ॥१० ॥
विषय
उत्तम माता पिता से रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
( उत ) और ( देवी अदितिः ) उत्तम सुख देने वाली विदुषी स्त्री माता और ( नासत्या ) असत्य व्यवहार से रहित माता पिता ( नः उरुष्यताम् ) हमारी रक्षा करें। और ( वृद्ध-शवसः ) बड़े बली और अधिक ज्ञान वाले पुरुष ( मरुतः ) शत्रुओं को मारने वाले वा वायुवत् जीवनप्रद, दूरगामी विद्वान् क्षत्रिय और वैश्य जन ( उरु व्यन्तु ) हमारी रक्षा करें। इति द्वाविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ १—९, १३—२४ मित्रावरुणौ। १०—१२ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, २, ५—९, १९ निचृदुष्णिक्। ३, १०, १३—१६, २०—२२ विराडष्णिक्। ४, ११, १२, २४ उष्णिक्। २३ आर्ची उष्णिक्। १७, १० पादनिचृदुष्णिक्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अदिति:-नासत्या-मरुतः
पदार्थ
[१] उत=और देवी-दिव्यगुणों की जननी अदितिः - स्वास्थ्य की देवता नः- हमें उरुष्यताम्- रक्षित करे यह अदिति ही 'मित्र और वरुण' को जन्म देकर, स्नेह व निर्देषता को उत्पन्न करके, हमारा रक्षण करती है। नासत्या= सब असत्यों को दूर करनेवाले अश्विनीदेव हमारा रक्षण करें। [२] वृद्धशवस:-बढ़े हुए बलवाले मरुतः = प्राण उरुष्यन्तु - हमारा रक्षण करें।
भावार्थ
भावार्थ- 'दिव्यगुणों को जन्म देनेवाली स्वास्थ्य की देवता, प्राणापान तथा शरीर में कार्य करनेवाले अन्य प्राण' ये सब हमारा रक्षण करें।
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