ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 25/ मन्त्र 22
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - विराडुष्निक्
स्वरः - ऋषभः
ऋ॒ज्रमु॑क्ष॒ण्याय॑ने रज॒तं हर॑याणे । रथं॑ यु॒क्तम॑सनाम सु॒षाम॑णि ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒ज्रम् । उ॒क्ष॒ण्याय॑ने । र॒ज॒तम् । हर॑याणे । रथ॑म् । यु॒क्तम् । अ॒स॒ना॒म॒ । सु॒ऽसाम॑नि ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋज्रमुक्षण्यायने रजतं हरयाणे । रथं युक्तमसनाम सुषामणि ॥
स्वर रहित पद पाठऋज्रम् । उक्षण्यायने । रजतम् । हरयाणे । रथम् । युक्तम् । असनाम । सुऽसामनि ॥ ८.२५.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 25; मन्त्र » 22
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Blest with the grace of the lord of mercy, we receive the gift of efficient mind and senses, from the lord destroyer of darkness and suffering, we receive the light of knowledge, and from the lord of celestial Samans, we receive the versatile chariot of the human body.
मराठी (1)
भावार्थ
उपासकाला केव्हाही फळ अवश्य प्राप्त होते, यात संशय नाही. त्यासाठी ईश्वर भक्ताला धैर्य व विश्वास बाळगला पाहिजे. ॥२२॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथोपासनाफलं दर्शयति ।
पदार्थः
उक्षण्यायने=कामानां सेक्तरीश्वरे । ऋज्रम्=ऋजुगामिनमश्वम् । हरयाने=सर्वदुःखहरणकर्त्तरि ईशे । रजतम् । सुसामनि=शोभनगानगीयमाने देवे । युक्तं रथञ्च । असनाम=प्राप्नुमः ॥२२ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उपासना का फल दिखलाते हैं ।
पदार्थ
यहाँ से उपासना का फल कहते हैं । परमात्मा की उपासना के कारण हम उपासकगण (उक्षण्यायने) सर्व कामनाओं की वर्षा करनेवाले ईश्वर के निकट (ऋज्रम्) ऋजुगामी सात्त्विक इन्द्रियगण (असनाम) पाये हुए हैं और (हरयाणे) निखिल दुःखनिवारक परमात्मा के प्रसन्न होने से (रजतम्) श्वेत अर्थात् सात्त्विक ज्ञान प्राप्त किये हुए हैं (सुसामनि) जिसके लिये लोग सुन्दर सामगान करते हैं, उसकी कृपा से (युक्तम्+रथम्) विविध इन्द्रियों और सद्गुणों से युक्त शरीररूप रथ पाये हुए हैं ॥२२ ॥
भावार्थ
उपासक को कभी अवश्य फल प्राप्त होता है, इसमें सन्देह नहीं अतः ईश्वरभक्त को धैर्य और विश्वास रखना चाहिये ॥२२ ॥
विषय
प्रभु की स्तुति।
भावार्थ
जिस प्रकार ( उक्षण्यायने ) बलवान् बैल या अश्व से जाने योग्य, वो ( हरयाणे ) हरणशील वेगवान् अश्वों या यन्त्रों से जाने योग्य ( सु-सामनि ) उत्तम समभूमियुक्त मार्गों में ( ऋज्रम् ) ऋजु, वेग से, जाने वाले, ( रजतं ) सुन्दर, ( युक्तं ) अश्वों से जुते ( रथं ) रथ को ( असनाम ) उपयोग करते हैं इसी प्रकार हम लोग ( सु-सामनि ) सबके प्रति समान भाव से रहने वाले, सुखप्रद, ( उक्षण्यायने ) बलवान्, सुखसेचक पुरुषों के भी आश्रय स्थान, ( हरयाणे ) दुःखों के हरने वाले, प्रभु के अधीन हम ( युक्तं ) इन्द्रियादि अश्वों से युक्त, रथवत् ( ऋज्रम् ) ऋजु, धर्म मार्ग से चलने वाले इस देह को ( असनाम ) प्राप्त करें और उसका सुख भोग करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ १—९, १३—२४ मित्रावरुणौ। १०—१२ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, २, ५—९, १९ निचृदुष्णिक्। ३, १०, १३—१६, २०—२२ विराडष्णिक्। ४, ११, १२, २४ उष्णिक्। २३ आर्ची उष्णिक्। १७, १० पादनिचृदुष्णिक्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'ऋज्रः रजत-युक्त' रथ
पदार्थ
[१] यह शरीर रथ है, जो प्रभु से जीवनयात्रा की पूर्ति के लिये दिया जाता है। प्रभु कहते हैं कि (उक्षण्यायने) = उक्षण में, शरीर में ही शक्ति के सेचन में, उत्तम पुरुष में, अर्थात् उत्पन्न वीर्यशक्ति को जो प्राणायाम आदि के द्वारा शरीर में ही सिक्त करता है, उस पुरुष में हम (ऋज्रम्) = ऋजुमार्ग से गति करनेवाले इस (रथम्) = शरीररथ को (असनाम) = [सन् To bestow ] देते हैं। शक्ति को शरीर में सिक्त करनेवाला पुरुष कुटिल स्वभाव नहीं होता। [२] (हरयाणे) = काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रुओं का हरण करनेवाले में, इनको हरा देनेवाले में रजतम् रजत सदृश देदीप्यमान, तेजस्वी अथवा रञ्जनात्मक रथ को हम देते हैं। हरयाण का रथ दीप्त व सब का रञ्जन करनेवाला होता है। यह किसी को अपने व्यवहार से पीड़ित नहीं करता । [३] (सुषामणि) = शोभन सामवाले, शान्तवृत्तिवाले व उत्तम स्तोत्रोंवाले पुरुष में (युक्तम) = [ रथं असनाम] साम्य बुद्धि से युक्त रथ को देते हैं। सुषामा पुरुष साम्य बुद्धि से युक्त होकर स्थितप्रज्ञ बन जाता है। यह डाँवाडोल नहीं होता।
भावार्थ
भावार्थ-उक्षण्यायन का रथ ऋ होता है। हरयाण का रजत तथा सुषामा का रथ शोभायुक्त होता है।
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