ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 25/ मन्त्र 17
ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - पादनिचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
अनु॒ पूर्वा॑ण्यो॒क्या॑ साम्रा॒ज्यस्य॑ सश्चिम । मि॒त्रस्य॑ व्र॒ता वरु॑णस्य दीर्घ॒श्रुत् ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ । पूर्वा॑णि । ओ॒क्या॑ । सा॒म्ऽरा॒ज्यस्य॑ । स॒श्चि॒म॒ । मि॒त्रस्य॑ । व्र॒ता । वरु॑णस्य । दी॒र्घ॒ऽश्रुत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अनु पूर्वाण्योक्या साम्राज्यस्य सश्चिम । मित्रस्य व्रता वरुणस्य दीर्घश्रुत् ॥
स्वर रहित पद पाठअनु । पूर्वाणि । ओक्या । साम्ऽराज्यस्य । सश्चिम । मित्रस्य । व्रता । वरुणस्य । दीर्घऽश्रुत् ॥ ८.२५.१७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 25; मन्त्र » 17
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
We observe and follow the rules and laws of the discipline of Mitra and Varuna, lord of universal glory, in accordance with the internal statutes and ancient traditions of the sovereign social order.
मराठी (1)
भावार्थ
सर्वांनी राज्यप्रतिनिधींनी निर्धारित केलेले नियम व उपाय यांचे पालन करावे. ॥१७॥
संस्कृत (1)
विषयः
राज्यनियमाः पालनीया इति दर्शयति ।
पदार्थः
साम्राज्यस्य=राष्ट्रस्य । पूर्वाणि=पुरातनानि । ओक्या=गृह्याणि । ओको गृहम् । दीर्घश्रुत्=दीर्घश्रुतः । मित्रस्य वरुणस्य च । व्रतानि । अनुसश्चिम=अनुसरामः ॥१७ ॥
हिन्दी (4)
विषय
राज्यनियम पालनीय हैं, यह इससे दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(दीर्घश्रुत्) बहुत दिनों से सुप्रसिद्ध (यद्वा) दूर-दूरों की बातों को सुननेवाले (मित्रस्य+वरुणस्य) ब्राह्मणप्रतिनिधि और राजप्रतिनिधि के किये हुए (साम्राज्यस्य) जो महाराज्य के (पूर्वाणि+ओक्या) अतिप्राचीन गृह्य नियम हैं और (व्रतानि) और उनके पालन के जो उपाय हैं, उनका (अनु+सश्चिम) हम लोग अनुसरण करें ॥१७ ॥
भावार्थ
राज्यप्रतिनिधियों से स्थापित जो नियम और उपाय हैं, उनका प्रतिपालन करना सबको उचित है ॥१७ ॥
विषय
महान् सम्राट्।
भावार्थ
( साम्राज्यस्य ) महान् साम्राज्य के मालिक प्रभु के ( पूर्वाणि ) पूर्व विद्यमान वा पूर्ण, त्रुटिरहित ( ओक्या ) भुवनों, या गृहों के व्यवस्थापक नियमों को ( अनु सश्चिम ) पालन करें। ( मित्रस्य ) सर्वस्नेही, ( वरुणस्य ) सर्वश्रेष्ठ ( दीर्घ-श्रुतः ) दीर्घदर्शी, बहुज्ञ, पुरुष के ( व्रता ) का हम अनुकरण करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ १—९, १३—२४ मित्रावरुणौ। १०—१२ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, २, ५—९, १९ निचृदुष्णिक्। ३, १०, १३—१६, २०—२२ विराडष्णिक्। ४, ११, १२, २४ उष्णिक्। २३ आर्ची उष्णिक्। १७, १० पादनिचृदुष्णिक्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
मित्र और वरुण के व्रतों का पालन
पदार्थ
[१] [साम्राज्यम् अस्य अस्मि] (साम्राज्यस्य) = इस सृष्टिरूप सत्य साम्राज्यवाले [इन्द्रः सत्यः सम्राट्] (मित्रस्य) = पापों से बचानेवाले [प्रमीतेः त्रायते] अथवा सब के प्रति स्नेह करनेवाले प्रभु के (पूर्वाणि) = पालन व पूरण करनेवाले अथवा पूर्णता को लिये हुए (ओक्या) = गृह हितकारी नियमों को (अनु सश्चिम) = पालित करें। प्रभु से निर्दिष्ट नियमों के अनुसार ही घरों में वर्ते । नियमानुकूल वर्तन ही गृहों का कल्याण करेगा। [२] (दीर्घश्रुत्) = [दीर्घश्रुतः] उस दीर्घदर्शी सर्वज्ञ (वरुण) = पापों व द्वेषों से निवारित करनेवाले प्रभु के (व्रता) = कर्मों का हम अनुकरण करें । वरुण के व्रतों का पालन करते हुए हम कभी बन्धन में न पड़ेंगे।
भावार्थ
भावार्थ- हम उस सब के मित्र सम्राट् के गृह हितकारी नियमों का पालन करते हुए घरों को उत्तम बनायें। उस सर्वज्ञ वरुण के व्रतों का पालन करते हुए सब बन्धनों से ऊपर उठें।
विषय
राज्यनियम पालनीय हैं, यह इससे दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(दीर्घश्रुत्) बहुत दिनों से सुप्रसिद्ध यद्वा दूर-दूरों की बातों को सुननेवाले (मित्रस्य+वरुणस्य) ब्राह्मणप्रतिनिधि और राजप्रतिनिधि के किये हुए (साम्राज्यस्य) जो महाराज्य के (पूर्वाणि+ओक्या) अतिप्राचीन गृह्य नियम हैं और (व्रतानि) और उनके पालन के जो उपाय हैं, उनका (अनु+सश्चिम) हम लोग अनुसरण करें ॥१७ ॥
भावार्थ
राज्यप्रतिनिधियों से स्थापित जो नियम और उपाय हैं, उनका प्रतिपालन करना सबको उचित है ॥१७ ॥
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