ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 35/ मन्त्र 13
मि॒त्रावरु॑णवन्ता उ॒त धर्म॑वन्ता म॒रुत्व॑न्ता जरि॒तुर्ग॑च्छथो॒ हव॑म् । स॒जोष॑सा उ॒षसा॒ सूर्ये॑ण चादि॒त्यैर्या॑तमश्विना ॥
स्वर सहित पद पाठमि॒त्रावरु॑णऽवन्तौ । उ॒त । धर्म॑ऽवन्ता । म॒रुत्व॑न्ता । ज॒रि॒तुः । ग॒च्छ॒थः॒ । हव॑म् । स॒ऽजोष॑सौ । उ॒षसा॑ । सूर्ये॑ण । च॒ । सोम॑म् । पि॒ब॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मित्रावरुणवन्ता उत धर्मवन्ता मरुत्वन्ता जरितुर्गच्छथो हवम् । सजोषसा उषसा सूर्येण चादित्यैर्यातमश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठमित्रावरुणऽवन्तौ । उत । धर्मऽवन्ता । मरुत्वन्ता । जरितुः । गच्छथः । हवम् । सऽजोषसौ । उषसा । सूर्येण । च । सोमम् । पिबतम् । अश्विना ॥ ८.३५.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 35; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Ashvins, complementary powers of the nation’s social dynamics in balance for the march ahead, blest with Mitra, people of love and friendship, Varuna, distinguished people of judgement and discrimination, Maruts, vibrant youth and pilots of the nation, all holding on to Dharma, duty in the law of universal truth, listen and rise to the call of the celebrant. O twin divines, come with the Adityas, the sun in progressive zodias, and in unison with the sun and the dawn of every new day.
मराठी (1)
भावार्थ
राजा व राजपुरुषांच्या प्रजेत ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य सर्व प्रकारचे लोक सम्मिलित असतात. ॥१३॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे राजानौ ! युवाम् । मित्रावरुणवन्ता स्थः मित्रेण=ब्राह्मणदलेन । वरुणेन=क्षत्रियवर्गेण च युक्तौ स्थः । तथा धर्मवन्ता धर्मयुक्तौ स्थाः । अपि च । मरुत्वन्ता मरुद्भिः वैश्यैः प्राणैरिन्द्रियैर्वा युक्तौ स्थः । तौ युवाम् । जरितुर्गुणानां स्तोतुर्हवमाह्वानं प्रति । गच्छथः । युवां उषसा सूर्येण च सजोषसा संगतौ सन्तौ । आदित्यैः=सूर्य्यसमैः जनैः सह यातं गच्छतं सर्वकर्मसु ॥१३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(अश्विनौ) हे राजन् ! तथा मन्त्रिमण्डल ! आप (मित्रावरुणवन्ता) ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों दलों से युक्त हैं (उत) और (धर्मवन्ता) धर्म से युक्त हैं और (मरुत्वन्ता) वैश्यों से यद्वा इन्द्रियों से युक्त हैं । वे आप (जरितुः) गुणों के गानेवाले के (हवम्) निवेदन को सुनने के लिये जाएँ । पुनः आप (उषसा) मृदुता से और (सूर्य्येण) तीक्ष्णता से (सजोषसा) सम्मिलित हैं, वे आप (आदित्यैः) सूर्य्यवत् प्रकाशित महापुरुषों के साथ शुभ कर्मों में (यातम्) जाया करें ॥१३ ॥
विषय
धर्मवान्, तेजस्वी, ज्ञानी, सत्यवान् पुरुषों के सत्संगी होकर जीवनभर व्यतीत करने का उपदेश।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! वा सैन्य एवं नायक जनो ! आप दोनों ( मित्रावरुण-वन्ता ) स्नेहवान् एवं श्रेष्ठ पुरुषों, ब्राह्मण और क्षत्रिय राजाओं से युक्त, ( धर्म-वन्ता ) धर्मवान् और ( मरुत्वन्ता ) उत्तम प्राणों, नाना मनुष्यों और बलवान् पुरुषों के स्वामी होकर (जरितुः हवं गच्छथः) विद्वान्, उपदेष्टा पुरुष के उपदेश को प्राप्त करो। ( उषसा सुर्येण सजोषसा ) उषा सूर्यवत् समान परस्पर प्रीतियुक्त हो ( आदित्यैः यातम् ) किरणोंवत् तेजस्वी पुरुषों के साथ वा बारहों महीने (यातम् ) जीवन मार्ग पर गमन करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१—५, १६, १८ विराट् त्रिष्टुप्॥ ७–९, १३ निचृत् त्रिष्टुप्। ६, १०—१२, १४, १५, १७ भुरिक् पंक्ति:। २०, २१, २४ पंक्ति:। १९, २२ निचृत् पंक्ति:। २३ पुरस्ता- ज्ज्योतिर्नामजगती॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
मित्र-वरुण-धर्म-मरुत्
पदार्थ
[१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (मित्रावरुणवन्ता) = मित्र और वरुणवाले हो, स्नेह व निर्दोषता के भाववाले हो । (उत) = और (धर्मवन्ता) = धर्मोंवाले हो, धारणात्मक कर्मोंवाले हो । (मरुत्वन्ता) = शरीरस्थ विविध वायुवोंवाले होते हुए आप (जरितुः) = स्तोता की (हवम्) = पुकार को (गच्छथः) = जाते हो। अर्थात् स्तोता की प्रार्थना को स्वीकार करके उसे प्राप्त होते हो। [२] (उषसा सूर्येण च सजोषसा) = उषा और सूर्य के साथ प्रीतिपूर्वक सेवन किये जाते हुए आप (आदित्यैः) = आदित्यों के साथ (यातम्) = गति करते हो ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से हमारे में [क] स्नेह व निर्देषता के भाव बढ़ते हैं, [ख] धर्म वृद्धि होती है, [ग] शरीर में सब वायुवें ठीक काम करती हैं, [घ] हमारा जीवन आदित्यों अनुसार बनता है।
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