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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 10
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒त त्वाम॑दिते मह्य॒हं दे॒व्युप॑ ब्रुवे । सु॒मृ॒ळी॒काम॒भिष्ट॑ये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । त्वाम् । अ॒दि॒ते॒ । म॒हि॒ । अ॒हम् । दे॒वि॒ । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । सु॒ऽमृ॒ळी॒काम् । अ॒भिष्ट॑ये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत त्वामदिते मह्यहं देव्युप ब्रुवे । सुमृळीकामभिष्टये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । त्वाम् । अदिते । महि । अहम् । देवि । उप । ब्रुवे । सुऽमृळीकाम् । अभिष्टये ॥ ८.६७.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 52; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And O great, brilliant and sovereign assembly of the nation, generous and gracious power, conscientiously I speak to you, pray save us from harm and injury, help us achieve our heart’s desire and cherished objectives.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अदिति = राज्यासंबंधी हे प्रकरण आहे. तसेच मित्र वरुण व अर्य्यमा इत्यादी प्रतिनिधींचे वर्णन आहे. अदिती शब्दाचा अर्थ सभा असा आहे. ही वैदिक शैली आहे की, सभेला संबोधित करून प्रजेने आपली प्रार्थना ऐकवावी. ॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सभा सम्बोध्यते ।

    पदार्थः

    हे महि=महति ! हे देवि अदिते=अदीने सभे ! उत=अपि च । अभिष्टये=अभिमतफलप्राप्त्यै । सुमृळीकाम्=सुखयित्रीम् । त्वा=त्वाम् अपि अहमुपब्रुवे ॥१० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    यहाँ सभा को संबोधित करते हैं ।

    पदार्थ

    (महि) हे पूज्य (देवि) हे देवि (अदिते) अदीने सभे ! (उत) और सभास्थ पुरुषो (अभिष्टये) अभिमत फलप्राप्ति के लिये (अहम्) मैं (सुमृळीकाम्) सुखदात्री (त्वा) तेरे निकट भी (उप+ब्रुवे) प्रार्थना करता हूँ ॥१० ॥

    भावार्थ

    अदिति=यह राज्यसम्बन्धी प्रकरण है और मित्र वरुण और अर्य्यमा आदि प्रतिनिधियों का वर्णन है, अतः यहाँ अदिति शब्द से सभा का ग्रहण है । यह भी एक वैदिक शैली है कि सभा को सम्बोधित करके प्रजागण अपनी प्रार्थना सुनावें ॥१० ॥

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    विषय

    विदुषी माता के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( महि ) पूज्ये ! हे ( देवि ) विदुषि ! हे ( अदिते ) पृथिवि ! मातः ! (उत) और मैं ( सुमृडीकाम् ) उत्तम सुखदायिनी दयावती ( त्वाम् ) तुझ से ( अभिष्टये ) अभीष्ट पूर्ति के लिये ( उप ब्रुवे ) याचनाः करता हूं। इति द्वापञ्चाशत्तमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    अदिति [मही- देवी- सुमृडीका]

    पदार्थ

    [१] (उत) = और हे (महि) = महनीय, (देवि) = प्रकाशमयी (अदिते) = स्वास्थ्य की देवते ! (अहं) = मैं (त्वाम् उपब्रुवे) = तेरी ही आराधना करता हूँ-तुझे ही माँगता हूँ। [२] (सुमृडीकाम्) = उत्तम सुख को देनेवाली तुझ स्वास्थ्य की देवता को ही (अभिष्टये) = इष्ट प्राप्ति के लिए पुकारता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्वास्थ्य ही हमारे जीवनों को महान् प्रकाशमय व सुखी बनाता है। ['मही- देवी- सुमृडीका' अदिति]

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