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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    जी॒वान्नो॑ अ॒भि धे॑त॒नादि॑त्यासः पु॒रा हथा॑त् । कद्ध॑ स्थ हवनश्रुतः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जी॒वान् । नः॒ । अ॒भि । धे॒त॒न॒ । आदि॑त्यासः । पु॒रा । हथा॑त् । कत् । ह॒ । स्थ॒ । ह॒व॒न॒ऽश्रु॒तः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जीवान्नो अभि धेतनादित्यासः पुरा हथात् । कद्ध स्थ हवनश्रुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जीवान् । नः । अभि । धेतन । आदित्यासः । पुरा । हथात् । कत् । ह । स्थ । हवनऽश्रुतः ॥ ८.६७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 51; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Wherever you are or happen to be stationed, pray listen to our call and rush in for our life and protection before the strike of violence and possibly death and destruction.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राज्य सभासदांनी प्रजेमध्ये उपद्रव होण्यापूर्वी त्यांच्या आवश्यकता जाणाव्या व त्यांची पूर्ती करावी. ॥५॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे आदित्यासः=आदित्याः=सभासदः ! पुरा+हथात्= हननात् । पूर्वमेव । जीवान्=जीवितान् । नः=अस्मान् । अभि+धेतन=अभिधावत । हे हवनश्रुतः=आह्वानश्रोतारः= प्रार्थनाश्रोतारः ! कत् ह=के खलु स्थ ॥५ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (आदित्यासः) हे राज्यसभासदों ! (हथात्+पुरा) प्रजाओं में उपद्रवों और विघ्नों के आने के पहले ही (नः+जीवान्) हम जीते हुए जनों के उद्धार के लिये (अभि+धेतन) चारों ओर से दौड़ कर आवें, (हवनश्रुतः) हे प्रार्थनाओं के श्रोताओ ! (कत्+ह+स्थ) आप मन में विचार करें कि आप कौन हैं अर्थात् आप इसी कार्य के लिये सभासद् नियुक्त हुए हैं । प्रजाओं के प्रार्थनापत्र आप ही सुनते हैं । यदि इस कार्य्य में आपकी शिथिलता हुई, तो कितनी हानि होगी, इसको सोचिये । आपके किंचित् आलस्य से प्रजाओं में महान् मृत्यु उपस्थित होगी ॥५ ॥

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    विषय

    वे प्रजा को पाप से मुक्त करें और प्रजा का पालन करें।

    भावार्थ

    हे ( आदित्यासः ) तेजस्वी पुरुषो ! ( पुरा हथात् ) मृत्यु से पहले आप लोग ( नः जीवान् ) हम जीवित जनों को ( अभि घेतन ) सदा पालन पोषण करते रहो, हे ( हवन-श्रुतः ) आह्वान के सुनने वालो ! आप ( कत् ह स्थ ) कहीं भी होवो, इस व्रत का पालन करो। इत्येकपञ्चाशत्तमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    हवनश्रुत् आदित्य

    पदार्थ

    [१] (आदित्यासः) = हे गुणों का आदान करानेवाले आदित्यो! आप (पुरा हथात्) = मृत्यु से पूर्व ही (जीवान् नः) = जीवित हम लोगों को (अभिधेतन) = [अभिधावत] प्राप्त होओ और हमारे जीवनों को शुद्ध बनाने की कृपा करो [धावु शुद्धौ] । [२] हे (हवनश्रुतः) = हमारी पुकार को सुननेवाले आदित्यो ! (कत् ह स्थ) = आप कहाँ हो? जहाँ भी आप हो, आप हमें शीघ्रता से प्राप्त होओ और हमारे जीवनों को शुद्ध बनाने का अनुग्रह करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- इस जीवन में हमें शीघ्र ही आदित्यों का सम्पर्क प्राप्त हो, ये आदित्य हमारे जीवनों को शुद्ध बनाएँ।

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