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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 21
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वि षु द्वेषो॒ व्यं॑ह॒तिमादि॑त्यासो॒ वि संहि॑तम् । विष्व॒ग्वि वृ॑हता॒ रप॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । सु । द्वेषः॑ । वि । अं॒ह॒तिम् । आदि॑त्यासः । वि । सम्ऽहि॑तम् । विष्व॑क् । वि । वृ॒ह॒त॒ । रपः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वि षु द्वेषो व्यंहतिमादित्यासो वि संहितम् । विष्वग्वि वृहता रप: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । सु । द्वेषः । वि । अंहतिम् । आदित्यासः । वि । सम्ऽहितम् । विष्वक् । वि । वृहत । रपः ॥ ८.६७.२१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 21
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 54; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Adityas, brilliant rulers and leaders of the nation, totally destroy jealousy and enmity, eliminate distress and depression, sin and crime, wipe out organised crime, terror and combined attacks, and uproot all disease, infirmity and disability from the earth.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राज्याकडून मोठमोठ्या विवेकी विद्वानांना देशाच्या दशेचे निरीक्षण करण्यासाठी नियुक्त करा व त्यांच्या म्हणण्यानुसार राज्याचा प्रबंध करा, तेव्हा संपूर्ण उपद्रव शांत होतील. ॥२१॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे आदित्यासः=हे आदित्याः ! विष्वग्=सर्वतः सर्वाभ्यो दिग्भ्यः । द्वेषः=द्वेष्टॄन् । सु=सुष्ठु । विबृहत=यूयमुन्मूलयत । अंहतिम्=पापम् । विबृहत । संहितम्= सम्मिलितमाक्रमणञ्च विबृहत । तथा रपः=रोगादि चित्तमालिन्यादिकञ्च । विबृहत ॥२१ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (आदित्यासः) हे राज्यप्रबन्धकर्त्ताओ (विष्वग्) सब प्रकार से और सब दिशाओं से आप सब मिलकर (द्वेषः) द्वेषियों को (सु) अच्छे प्रकार (वि+बृहत) मूल से उखाड़ नष्ट कीजिये (अंहतिम्) पापों को (वि) हमसे दूर फेंक दीजिये (संहितम्) सम्मिलित आक्रमण को (वि) रोका कीजिये तथा (रपः+वि) रोग, शोक, अविद्या आदि पापों को विनष्ट कीजिये । यह अन्तिम विनय आपसे है ॥२१ ॥

    भावार्थ

    राज्य की ओर से बड़े-बड़े विवेकी विद्वानों को देश की दशाओं के निरीक्षण के लिये नियुक्त करो और उनके कथनानुसार राज्यप्रबन्ध करो, तब निखिल उपद्रव शान्त रहेंगे ॥२१ ॥

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    विषय

    तेजस्वी विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( आदित्यासः ) विद्वान् तेजस्वी, अदीन शासक शक्ति के निर्माता जनो ! आप लोग ( द्वेषः वि सु वृहत ) शत्रुओं को विविध प्रकार से अच्छी प्रकार नष्ट कर दो। ( अंहतिम् वि वृहत) पाप को समूल उखाड़ दो। ( संहितम् वि वृहत ) बन्धन को दूर करो। और ( रपः विश्वक् विवृहत) पाप को भी सब प्रकार से उखाड़ दो। इति चतुःपञ्चाशत्तमो वर्गः॥ इति चतुर्थोऽध्यायः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    'द्वेष- कुटिलता - छल-पाप' से दूर

    पदार्थ

    [१] हे (आदित्यासः) = आदित्य विद्वानो ! आप (द्वेषः) = द्वेष को (सु) = सम्यक् (विवृहता) = हमारे जीवन में से उन्मूलित कर दो। (अंहतिम्) = कुटिलतारूप पाप को (वि) = हमारे से पृथक् करो। (संहितम्) = धोखा-छल, कपट आदि की वृत्ति को (वि) = हमारे से पृथक् करिये। [२] आप अनुग्रह करके (विष्वक्) = विविध क्रियाओं में आ जानेवाले (रपः) = दोषों को विवृहत उन्मूलित करिये। हमारा जीवन आपके अनुग्रह से निर्दोष हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- आदित्यों का सम्पर्क हमें 'द्वेष- कुटिलता-छल व दोषों' से दूर करे। इस निर्दोष जीवनवाले व्यक्ति को 'मेधा, बुद्धि व मेध यज्ञ' ही प्रिय होते हैं, सो यह प्रिय मेध कहलाता है। यह प्रार्थना करता है कि-

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