ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 3
ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः
देवता - आदित्याः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तेषां॒ हि चि॒त्रमु॒क्थ्यं१॒॑ वरू॑थ॒मस्ति॑ दा॒शुषे॑ । आ॒दि॒त्याना॑मरं॒कृते॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतेषा॑म् । हि । चि॒त्रम् । उ॒क्थ्य॑म् । वरू॑थम् । अस्ति॑ । दा॒शुषे॑ । आ॒दि॒त्याना॑म् । अ॒र॒म्ऽकृते॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तेषां हि चित्रमुक्थ्यं१ वरूथमस्ति दाशुषे । आदित्यानामरंकृते ॥
स्वर रहित पद पाठतेषाम् । हि । चित्रम् । उक्थ्यम् । वरूथम् । अस्ति । दाशुषे । आदित्यानाम् । अरम्ऽकृते ॥ ८.६७.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 51; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 51; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Ample means and materials, wonderful, various and admirable, vest in the brilliant Adityas, enlightened powers of governance and administration, for the people of generosity, and beauty, decency and grace.
मराठी (1)
भावार्थ
जे राष्ट्राचे उच्चाधिकारी असतील त्यांनी सदैव उपकार करणाऱ्या लोकांना पारितोषिक द्यावे, त्यामुळे देशाची वृद्धी होते. केवळ आपल्या स्वार्थात मग्न राहता कामा नये. ॥३॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
दाशुषे=दत्तवते=समयादिदानवते । अरंकृते=अलङ्कृते= स्वाचरणैर्जनानामलंकर्त्रे । कर्मणां च पर्य्याप्तकर्त्रे वा जनाय । तेषां हि आदित्यानां सभासदाम् । चित्रं=नानाविधम् । उक्थ्यम्=प्रशंसनीयम् । वरूथम्=धनं पुरस्कारः पारितोषिकञ्च । अस्ति ॥३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(दाशुषे) जो लोग प्रजा के कार्य्य में अपना समय, धन, बुद्धि, शरीर और मन लगाते हैं, वे दाश्वान् कहलाते हैं और (अरंकृते) जो अपने सदाचारों से प्रजाओं को भूषित रखते हैं और प्रत्येक कार्य्य में जो क्षम हैं, वे अलंकृत कहाते हैं । इस प्रकार मनुष्यों के लिये (तेषाम्+हि+आदित्यानाम्) उन सभासदों का (चित्रम्) बहुविध (उक्थ्यम्) प्रशंसनीय (वरूथम्) दान, सत्कार, पुरस्कार पारितोषिक और धन आदि होता है ॥३ ॥
भावार्थ
जो राष्ट्र के उच्चाधिकारी हों, वे सदा उपकारी जनों में इनाम बाँटा करें । इससे देश की वृद्धि होती जाती है । केवल अपने स्वार्थ में कदापि भी मग्न नहीं होना चाहिये ॥३ ॥
विषय
वे प्रजा को पाप से मुक्त करें और प्रजा का पालन करें।
भावार्थ
( तेषां आदित्यानां ) उन विद्वान् तपस्वी जनों का ( अरंकृते ) अत्यन्त अधिक श्रम करने वाले ( दाशुषे ) दानशील जन के लिये ( चित्रम् ) अद्भुत ( उक्थ्यम् ) स्तुत्य ( वरूथम् ) दुःखवारक धन ( असि ) है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥
विषय
चित्रं उक्थ्यं 'वरूथम्'
पदार्थ
[१] (तेषां) = उन (आदित्यानां) = ज्ञान व गुणों का आदान करनेवालों का (दाशुषे) = दाश्वान् पुरुष के लिए अपना अर्पण करनेवाले मनुष्य के लिए तथा (अरङ्कृते) = खूब क्रियाशीलता द्वारा अपने जीवन को अलंकृत करनेवाले पुरुष के लिए (हि) = निश्चय से (चित्रं) = अद्भुत (उक्थ्यं) = प्रशंसनीय (वरूथम्) = धन (अस्ति) = है। [२] ये आदित्य इन दाश्वान् अरङ्कृत पुरुषों को अद्भुत प्रशंसनीय धन प्राप्त कराते हैं। जो विद्यार्थी आचार्य के प्रति अपना अर्पण कर देता है व पुरुषार्थवाला होता है, वह उत्कृष्ट ज्ञान धन को प्राप्त करता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम उत्कृष्ट ज्ञानियों के सम्पर्क में पुरुषार्थशील होते हुए ऊँचे-से-ऊँचे ज्ञान को प्राप्त करें।
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