ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 9
ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः
देवता - आदित्याः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
मा नो॑ मृ॒चा रि॑पू॒णां वृ॑जि॒नाना॑मविष्यवः । देवा॑ अ॒भि प्र मृ॑क्षत ॥
स्वर सहित पद पाठमा । नः॒ । मृ॒चा । रि॒पू॒णाम् । वृ॒जि॒नाना॑म् । अ॒वि॒ष्य॒वः॒ । देवाः॑ । अ॒भि । प्र । मृ॒क्ष॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो मृचा रिपूणां वृजिनानामविष्यवः । देवा अभि प्र मृक्षत ॥
स्वर रहित पद पाठमा । नः । मृचा । रिपूणाम् । वृजिनानाम् । अविष्यवः । देवाः । अभि । प्र । मृक्षत ॥ ८.६७.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 52; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 52; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O protectors and defenders of the people, brilliant and generous rulers, let not the violence and calumny of crooked enemies ever smear and injure us.$Pray cover us all round with safety and security.
मराठी (1)
भावार्थ
सभाध्यक्षाने असा प्रबंध करावा की, ज्यामुळे प्रजेवर संकटे येता कामा नयेत. ॥९॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे अविष्यवः=रक्षितारः सभाध्यक्षाः ! वृजिनानाम्= हिंसकानां पापिनाम् । रिपूणां=शत्रूणाम् । मृचा=हिंसा, हत्या नः अस्माकं मध्ये । मा भूत् । मृचिर्हिंसाकर्मा । हे देवाः ! यूयम् । तथा अभि=अभितः । प्रमृक्षत= परिमार्जयत प्रबन्धं कुरुत ॥९ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(अविष्यवः) हे रक्षितृसभाध्यक्षो ! (वृजिनानाम्) पापिष्ठ हिंसक (रिपूणाम्) शत्रुओं की (मृचा) हत्या हिंसा (नः+मा) हम लोगों के मध्य न आवे । (देवाः) हे देवो ! वैसा प्रबन्ध आप (अभि) सब तरफों से (अमृक्षत) करें ॥९ ॥
भावार्थ
सभाध्यक्षगण वैसा प्रबन्ध करें, जिससे प्रजाओं में कोई बाधा न आने पावे ॥९ ॥
विषय
प्रजा को नाश होने से बचावें।
भावार्थ
हे ( अविष्यवः देवाः ) रक्षा करने के इच्छुक विद्वान् मनुष्यो ! (रिपूणां ) शत्रुओं और ( वृजिनानां मृचा ) पापों के विनाशकारी साधन से ( नः मा अभि प्र मृक्षत ) हमारा नाश मत होने दो।
टिप्पणी
अत्र मृक्षत इत्यपि हिंसार्थस्य मृचेरेव रूपम्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥
विषय
पापजाल में न फंसना
पदार्थ
[१] हे (अविष्यवः देवा:) = हमारे रक्षण की कामनावाले देवो ! (नः) = हमें (वृजिनानां रिपूणाम्) = हिंसक शत्रुओं के (मृचा) = हिंसक जाल से मा (अभिप्रमृक्षत) = हिंसित मत होने दो। [२] 'माता, पिता व आचार्य' रूप देवों के सम्पर्क में हम सदा पापों के जाल में फंसने से बचे रहें। भावार्थ- हम पापियों के जाल में न फंसे।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal