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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 16
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    शश्व॒द्धि व॑: सुदानव॒ आदि॑त्या ऊ॒तिभि॑र्व॒यम् । पु॒रा नू॒नं बु॑भु॒ज्महे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शश्व॑त् । हि । वः॒ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । आदि॑त्याः । ऊ॒तिऽभिः॑ । व॒यम् । पु॒रा । नू॒नम् । बु॒भु॒ज्महे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शश्वद्धि व: सुदानव आदित्या ऊतिभिर्वयम् । पुरा नूनं बुभुज्महे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शश्वत् । हि । वः । सुऽदानवः । आदित्याः । ऊतिऽभिः । वयम् । पुरा । नूनम् । बुभुज्महे ॥ ८.६७.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 16
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 54; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Adityas, generous givers, by virtue of your protections we have been enjoying life always, now as ever before.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राज्यकर्मचाऱ्यांनी चांगले काम केल्यास त्यांचे अभिनंदन करावे. ॥१६॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    (सुदानवः+आदित्याः) हे परमोदाराः सभासदः ! वः=युष्माकम् । ऊतिभिः=रक्षणैः साहाय्यैः प्रबन्धैश्च । वयं हि । शश्वद्=सर्वदा । पुरा=पूर्वस्मिन् काले । नूनमिदानीञ्च । बुभुज्महे=भुञ्ज्महे=भुक्तवन्तश्च ॥१६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (सुदानवः+आदित्याः) हे परमोदार परमदानी सभासदों ! (वः+ऊतिभिः) आप लोगों की रक्षा, साहाय्य और राज्यप्रबन्ध से (वयम्+हि) हम प्रजागण (शश्वत्) सर्वदा (पुरा) पूर्वकाल में और (नूनम्) इस वर्तमान समय में (बुभुज्महे) आनन्द भोग विलास करते आए हैं और कर रहे हैं, अतः आप लोग धन्यवाद के पात्र हैं ॥१६ ॥

    भावार्थ

    राज्य-कर्मचारियों का अच्छे काम होने पर अभिनन्दन करें ॥१६ ॥

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    विषय

    तेजस्वी विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( सुदानवः आदित्याः ) उत्तम दानशील, दान-आदान करने चाले तेजस्वी जनो ! ( वः ) आप लोगों की ( ऊतिभिः ) रक्षाओं द्वारा ( वयं शश्वत् हि ) हम निरन्तर ही ( पुरा नूनं ) पहले के समान ( ब्रुभुज्महे ) नाना ऐश्वर्यों का भोग करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    सुदानु आदित्य

    पदार्थ

    [१] हे (सुदानवः) = [दाप् लवने] बुराई का सम्यक् खण्डन करनेवाले (आदित्याः) = आदित्य विद्वानो ! (वः) = आपके (ऊतिभिः) = रक्षणों के द्वारा (वयं) = हम (शश्वत् हि) = सर्वदा ही (पुरा) = पालन व पूरण के द्वारा (नूनं) = निश्चय से (बुभुज्महे) = पालन के लिए भोगों को प्राप्त करें [भुज पालनाभ्यवहारयोः] । [२] ज्ञानियों का सम्पर्क हमें भोगों में फंसने से बचाए । ये भोग हमारा पालन करनेवाले हों-हम इनके शिकार ही न हो जाएँ।

    भावार्थ

    भावार्थ-ज्ञानियों का सम्पर्क हमें वासनाओं से बचाए । हम सांसारिक भोगों को पालन के दृष्टिकोण से ही ग्रहण करें।

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