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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 18
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तत्सु नो॒ नव्यं॒ सन्य॑स॒ आदि॑त्या॒ यन्मुमो॑चति । ब॒न्धाद्ब॒द्धमि॑वादिते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । सु । नः॒ । नव्य॑म् । सन्य॑से । आदि॑त्याः । यत् । मुमो॑चति । ब॒न्धात् । ब॒द्धम्ऽइ॑व । अ॒दि॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तत्सु नो नव्यं सन्यस आदित्या यन्मुमोचति । बन्धाद्बद्धमिवादिते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । सु । नः । नव्यम् । सन्यसे । आदित्याः । यत् । मुमोचति । बन्धात् । बद्धम्ऽइव । अदिते ॥ ८.६७.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 18
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 54; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Adityas, O mother Aditi, we hope and pray may that ever new strength and sustenance of yours, which you give us for our good and protection, which saves us like people fettered in bondage and released, be extended to us ever as before.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सभ्य माणसांनो! प्रजेसाठी नवनवीन उपाय सुचवा व त्यांना साह्य करण्याचा प्रयत्न करा. ॥१८॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे आदित्याः=सभासदः ! हे अदिते=सभे ! युष्माकम् । तत् नव्यं=नूतनं=साहाय्यं रक्षणम् । सन्यसे=संभजनाय । नः=अस्माकम् । सुभवतु । यद्रक्षणम् अस्मान् । क्लेशात् । मुमोचति=मुञ्चति । अत्र दृष्टान्तः=बन्धात्=बन्धनात् । बद्धं पुरुषमिव ॥१८ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (आदित्याः) हे प्रकाशमान सभासदों ! (अदिते) हे सभे ! (सन्यसे) हमारे कल्याण और महोत्सव के लिये (तत्+नव्यम्) क्या आप लोगों की ओर से वह नूतन साहाय्य और रक्षण (नः) हमको (सु) सुविधा और आराम के साथ प्राप्त हो सकता है, (यत्+मुमोचति) जो हमको विविध क्लेशों से छुड़ाया करता है । यहाँ दृष्टान्त देते हैं, (बन्धात्+बद्धम्+इव) जैसे बन्धन से बद्ध पशु या पुरुष को खोलते हैं ॥१८ ॥

    भावार्थ

    हे सभ्यो ! प्रजाओं में नूतन-नूतन उपाय और साहाय्य पहुँचाने का प्रबन्ध करो • ॥१८ ॥

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    विषय

    तेजस्वी विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( आदित्याः ) सूर्यवत् तेजस्वी गुरु के शिष्यो ! वा भूमिमाता के सत्पुत्रो ! और हे ( अदिते ) सूर्यवत् तेजस्वी, हे मातृवत् पूज्य ! ( बद्धम् इव ) बद्ध पुरुष के समान कर्मबन्धन में बँधे पुरुष को ( यत् ) जो ज्ञान ( मुमोचति ) मुक्त कर देता है ( तत् ) वह ( नव्यं ) स्तुत्य उपदेष्टव्य ज्ञान ( सु सन्यसे ) अच्छी प्रकार सेव करने के लिये हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    [नव्य] स्तुत्य ज्ञान

    पदार्थ

    [१] हे (आदित्याः) = ऊँचे-से-ऊँचे ज्ञान का आदान करनेवाले ज्ञानी पुरुषो ! (नः) = हमारे लिए (तत्) = वह (नव्यं) = स्तुत्य [नु स्तुतौ] अथवा हमें गतिशील बनानेवाला [नव गतौ] ज्ञान (सुसंन्यसे) = सम्यक् सेवनीय हो (यत्) = जो (मुमोचति) = सब अशुभ कर्मों से छुड़ानेवाला होता है। [२] हे (अदिते) = स्वास्थ्य की देवते ! मुझे वह ज्ञान प्राप्त हो जो (बद्धम् इव) = विषय-जाल से बद्ध-सा हुए हुए मुझको (बन्धात्) = बन्धन से (मुमोचति) = छुड़ा देता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम आदित्यों के सम्पर्क में स्वस्थ रहते हुए उस ज्ञान को प्राप्त करें जो हमें विषयों के बन्धन से मुक्त करनेवाला हो।

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