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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 20
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    मा नो॑ हे॒तिर्वि॒वस्व॑त॒ आदि॑त्याः कृ॒त्रिमा॒ शरु॑: । पु॒रा नु ज॒रसो॑ वधीत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । नः॒ । हे॒तिः । वि॒वस्व॑तः । आदि॑त्याः । कृ॒त्रिमा॑ । शरुः॑ । पु॒रा । नु । ज॒रसः॑ । व॒धी॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो हेतिर्विवस्वत आदित्याः कृत्रिमा शरु: । पुरा नु जरसो वधीत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । नः । हेतिः । विवस्वतः । आदित्याः । कृत्रिमा । शरुः । पुरा । नु । जरसः । वधीत् ॥ ८.६७.२०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 20
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 54; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Adityas, brilliant powers of nature and humanity, let not the onslaught of time or an artificial weapon made by man strike us before we have lived and enjoyed a full age of fulfilment to the last day of old age.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    मृत्यू हा अटळ आहे, परंतु अव्यवस्था व अविवेकामुळे जरावस्थेपूर्वीच मृत्यू होतो. त्यासाठी राज्याकडून रोगाच्या निवृत्तीचा प्रबंध होणे आवश्यक आहे. ॥२०॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे आदित्याः=सभासदः ! यूयं तादृशं प्रबन्धं रचयत । येन । नः=अस्मान् । जरसः=जरायाः । पुरा नु=पूर्वं हि । विवस्वतः=कालस्य । हेतिरायुधम् । मा वधीत् । कीदृशी हेतिः । कृत्रिमा=क्रियया निर्वृत्ता । पुनः । शरुः=हिंसिका ॥२० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (आदित्याः) हे राष्ट्र-प्रबन्धकर्ताओ ! आप वैसा प्रबन्ध करें, कि जिससे (जरसः+पुरा+नु) जरावस्था की प्राप्ति के पूर्व ही (विवस्वतः+हेतिः) कालचक्र का आयुध (नः+मा+वधीत्) हमको न मारे अर्थात् वृद्धावस्था के पहले ही हम प्रजागण न मरें, सो उपाय कीजिये । जो आयुध (कृत्रिमा) बड़ी कुशलता और विद्वत्ता से बना हुआ है और (शरुः) जो जगत् को अवश्य मार कर गिरानेवाला है ॥२० ॥

    भावार्थ

    मरना सबको अवश्य ही है, परन्तु जरावस्था के पूर्व मरना प्रबन्ध और अविवेक की न्यूनता से होता है, अतः राज्य की ओर से रोगादिनिवृत्ति का पूरा प्रबन्ध होना उचित है ॥२० ॥

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    विषय

    तेजस्वी विद्वान् पुरुषों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे ( आदित्याः ) तेजस्वी पुरुषो ! ( विवस्वतः ) विविध प्रजाओं के स्वामी राजा वा विविध किरणों वाले सूर्य की ( कृत्रिमा ) शिल्पी आदि से बनाई गई वा गति से उत्पन्न ( शरुः ) प्राण या जीवन का नाश करने वाली ( हेतिः ) शस्त्रपीड़ा, वा कालगति, ( नः ) हमें ( जरसः पुरा ) वृद्धावस्था से पूर्व ( मा वधीत् ) न मारे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    पूर्ण जीवन

    पदार्थ

    [१] हे (आदित्याः) = आदित्य विद्वानो ! (नः) = हमें (विवस्वतः) = इस किरणोंवाले सूर्य की (कृत्रिमा) = क्रिया से निर्वृत्त [सम्पादित] (शरु:) = रोगकृमिनाशक (हेति:) = शक्तिरूप शस्त्र (जरसः पुरा) = पूर्ण वृद्धावस्था से पूर्व (नु) = निश्चय से (मा वधीत्) = मत नष्ट होने दे। [२] हम सूर्य के सम्पर्क में क्रियाशील जीवन बिताते हुए पूर्ण वृद्धावस्था को बितानेवाले हों। सूर्य की किरणों में रोगकृमिनाशक शक्ति है। उसका हम लाभ लें। इन सूर्य किरणों के सेवन के लिए भी हम धूप में लेटे न रहें- क्रियाशील जीवन बिताएँ । यह मन्त्र 'कृत्रिमा' शब्द से व्यक्त किया गया है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्य किरणों के सम्पर्क में क्रियाशील जीवन हमें दीर्घजीवी बनाए।

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