ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 6
ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः
देवता - आदित्याः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
यद्व॑: श्रा॒न्ताय॑ सुन्व॒ते वरू॑थ॒मस्ति॒ यच्छ॒र्दिः । तेना॑ नो॒ अधि॑ वोचत ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । वः॒ । श्रा॒न्ताय॑ । सु॒न्व॒ते । वरू॑थम् । अस्ति॑ । यत् । छ॒र्दिः । तेन॑ । नः॒ । अधि॑ । वो॒च॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्व: श्रान्ताय सुन्वते वरूथमस्ति यच्छर्दिः । तेना नो अधि वोचत ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । वः । श्रान्ताय । सुन्वते । वरूथम् । अस्ति । यत् । छर्दिः । तेन । नः । अधि । वोचत ॥ ८.६७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 52; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 52; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Whatever be your defence, protection and relief for the worker, producer or creator of soma while he works to the point of weariness, exhaustion and retirement, for that plead for us and get us the relief needed, deserved and allowed.
मराठी (1)
भावार्थ
परिश्रमी व सुकर्मी लोकांना राज्याकडून सर्व सुविधा मिळाल्या पाहिजेत ही शिकवण यावरून मिळते. ॥६॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे आदित्याः ! श्रान्ताय=अतिपरिश्रमशीलाय । तथा सुन्वते=सदा शुभकर्मनिरताय जनाय च । वः=युष्माकम् । यद्+वरूथम्=दानाय धनं साहाय्यादिकञ्च वर्तते । यच्च । छर्दिः=गृहं शरणमस्ति । नः=अस्माकम् । तेन=द्वयेनापि । अधिवोचत=साहाय्यं कुरुत ॥६ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे राज्यसभासदों प्रबन्धकर्तारो ! (श्रान्ताय) अति परिश्रमी, उद्योगी और साहसी और (सुन्वते) सदा शुभकर्म में निरत जनों के लिये (वः) आप लोगों का (यद्+वरूथम्) जो दान के लिये धन साहाय्य और पुरस्कार आदि हैं और (यद्+छर्दिः) रहने के लिये बड़े-बड़े भवन और आश्रय हैं, (तेन) उन दोनों प्रकारों के उपकरणों से (नः) हम प्रजाजनों की (अधिवोचत) सहायता और रक्षा कीजिये ॥६ ॥
भावार्थ
परिश्रमी और सुकर्मी जनों को राज्य की ओर से सब सुविधा मिलनी चाहिये, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥६ ॥
विषय
वे प्रजा को पाप से मुक्त करें और प्रजा का पालन करें।
भावार्थ
हे उत्तम मनुष्यो ! ( यद् वरूथम् ) जो तुम लोगों का दुःखादि वारण करने योग्य धन और ( यत् छर्दिः ) जो गृह है वह ( श्रान्ताय ) श्रमशील तपस्वी, और ( सुन्वते ) उपासक भक्त जन के लिये हो। (तेन) उसी तपस्वी और उपासक भक्त जन द्वारा ( नः अधि वोचत ) हमें उत्तम उपदेश करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥
विषय
श्रान्ताय सुन्वते
पदार्थ
[१] (यद्) = जो (वः) = आपका (श्रान्ताय) = श्रमशील व्यक्ति के लिए और (सुन्वते) = शरीर में सोम का सवन करनेवाले पुरुष के लिए (वरूथम्) = धन (अस्ति) = है, इसके लिए (यत्) = जो आपका (छर्दिः) = गृह है, (तेन) = उस धन व गृह के हेतु से (नः) = हमें (अधिवोचत) = आधिक्येन उपदेश हो । [२] आदित्य विद्वानों से ज्ञान को प्राप्त करके हम श्रमशील व सोम का रक्षण करनेवाले बनते हैं। ये श्रम व सोमरक्षण हमें उत्तम धन व गृहवाला बनाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- आदित्य विद्वान् हमें ज्ञान देकर श्रम व सोमरक्षण का महत्त्व समझाते हैं। ये बातें हमें उत्तम धन व गृह प्राप्त कराती हैं।
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