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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 13
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ये मू॒र्धान॑: क्षिती॒नामद॑ब्धास॒: स्वय॑शसः । व्र॒ता रक्ष॑न्ते अ॒द्रुह॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । मू॒र्धानः॑ । क्षि॒ती॒नाम् । अद॑ब्धासः । स्वऽय॑शसः । व्र॒ता । रक्ष॑न्ते । अ॒द्रुहः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये मूर्धान: क्षितीनामदब्धास: स्वयशसः । व्रता रक्षन्ते अद्रुह: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । मूर्धानः । क्षितीनाम् । अदब्धासः । स्वऽयशसः । व्रता । रक्षन्ते । अद्रुहः ॥ ८.६७.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 13
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 53; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Those who are on top of the average people, active, bold, unbending, and gifted with innate honour and reputation in law and personal values of virtue, free from jealousy and enmity, they maintain, uphold and protect the laws, values and commitments of the land. (They are the chosen children of mother earth, Adityas, worthy of being members of the mother’s household, council of the nation.)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे वेळोवेळी समाजात श्रेष्ठ गुणांनी भूषित होतात ते सभासद निवडून यावेत. ॥१३॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    ये सभासदः ! क्षितीनाम्=जनानां मध्ये । मूर्धानः=श्रेष्ठा इत्यर्थः । पुनः । क्षितीनाम् । अदब्धासः=अहिंसकाः । पुनः । स्वयशसः=यशसा भासमानाः । पुनः । अद्रुहः=अद्रोग्धारः । ते खलु । व्रता=व्रतानि=नियमान् रक्षन्ते ॥१३ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    सभासद् कैसे होने चाहियें, इसका वर्णन इसमें है । ये (क्षितीनाम्) मनुष्यों के मध्य (ये+मूर्धानः) जो गुणों के द्वारा सर्वश्रेष्ठ हों, (अदब्धासः) दूसरों की विभूति, उन्नति और मङ्गल देखकर ईर्ष्या न करें, (स्वयशसः) अपनी वीरता, सद्गुण विद्यादि द्वारा और परिश्रम करके जो स्वयं यश उत्पन्न करते हों, पुनः जो (अद्रुहः) किसी का द्रोह न करें, वे ही सभासद् हो सकते हैं और वे ही (व्रता+रक्षन्ते) ईश्वरीय और लौकिक नियमों को भी पाल सकते हैं ॥१३ ॥

    भावार्थ

    जो समय-समय पर समाजों में श्रेष्ठ गुणों से भूषित हों, वे सभासद् चुने जाएँ ॥—१३ ॥

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    विषय

    शिरोमणि

    शब्दार्थ

    (ये) जो लोग (अदब्धास:) अहिंस्य, न दबनेवाले (स्वयशसः) स्वयशवाले, स्वयं यश उपार्जन करनेवाले (अद्रुहः) द्रोहरहित होते हैं और (व्रता) अपने व्रतों की (रक्षन्ते) रक्षा करते हैं वे (क्षितीनाम्) मनुष्यों में (मूर्धान:) शिरोमणि होते हैं ।

    भावार्थ

    यदि आप मनुष्यों में शिरोमणि बनना चाहते हैं तो मन्त्र में वर्णित चार गुणों को अपने जीवन में लाइए । १. अदब्धास: – आप अदम्य बनिए किसी से न दबिए । विघ्न और बाधाओं से घबराकर हथियार मत डाल दीजिए । कितना ही भीषण विरोध, कैसी ही प्रतिकूल परिस्थिति हो, आप दबिए मत । जब संसार की शक्तियाँ दबाना चाहें तो आप गेंद की भाँति ऊपर उछलिए । २. स्वयशस : – अपने यश से यशस्वी बनिए । अपने पूर्वजों बाप-दादा के यश पर निर्भर मत रहिए । स्वयं महान् बनिए । ऐसे कार्य कीजिए जिनसे संसार में आपका नाम और यश हो । ३. अद्रुहः - द्रोहरहित बनिए । किसी से वैर मत कीजिए। किसीको हानि मत पहुँचाइए । किसीके विषय में बुरा चिन्तन मत कीजिए । किसी के प्रति ईर्ष्या-द्वेष और वैर-विरोध की भावनाएँ मत रखिए । द्रोह को त्यागकर सबके साथ प्रेम कीजिए ।

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    विषय

    उरुव्रजा, उरूची वैश्य सभा।

    भावार्थ

    ( ये ) जो ( क्षितीनां ) भूमियों में बसी ऐश्वर्ययुक्त प्रजाओं के ( मूर्धानः ) शिरोमणि, प्रमुख पुरुष हैं वे ( अदब्धासः ) अहिंसक ( स्व-यशसः ) धन और यश से सम्पन्न हों और (अद्रुहः ) द्रोह रहित होकर ( व्रता रक्षन्ते ) व्रत, उत्तम कर्मों, नियमों और अन्नों की रक्षा करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    क्षितीनां मूर्धानः

    पदार्थ

    [१] गतमन्त्र के अनुसार गतिशील व उपासक लोग वे होते हैं ये जो क्षितीनां मूर्धान:- मनुष्यों के शिरोमणि बनते हैं। अदब्धासः = ये वासनाओं से हिंसित नहीं होते । स्वयशसा - अपने उत्तम कर्मों के कारण यशस्वी होते हैं। [२] ये व्रता रक्षन्ते व्रतों का पालन करते हैं और अद्रुहः- किसी का द्रोह नहीं करते।

    भावार्थ

    भावार्थ- पुरुषोत्तम वह है जो [१] वासनाओं से आक्रान्त नहीं होता [२] यशस्वी कर्मोंवाला है, [३] व्रतमय जीवनवाला, तथा [४] द्रोहशून्य है।

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