ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 4
ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः
देवता - आदित्याः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
महि॑ वो मह॒तामवो॒ वरु॑ण॒ मित्रार्य॑मन् । अवां॒स्या वृ॑णीमहे ॥
स्वर सहित पद पाठमहि॑ । वः॒ । म॒ह॒ताम् । अवः॑ । वरु॑ण । मित्र॑ । अर्य॑मन् । अवां॑सि । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
महि वो महतामवो वरुण मित्रार्यमन् । अवांस्या वृणीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठमहि । वः । महताम् । अवः । वरुण । मित्र । अर्यमन् । अवांसि । आ । वृणीमहे ॥ ८.६७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 51; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 51; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O great Varuna, Mitra and Aryama, great are your powers of protection and defence. We choose to ask and do ask for protection and defence by you.
मराठी (1)
भावार्थ
राष्ट्रीय सभासदाजवळ प्रजेने सदैव आपापल्या आवश्यकता सांगाव्या व त्यांच्याकडून त्यांची पूर्तता करून घ्यावी. ॥४॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे वरुण हे मित्र हे अर्य्यमन् ! महतां=श्रेष्ठानाम् । वः=युष्माकम् । अवः=रक्षणमपि । महि=प्रशंसनीयम् । वर्तते । तानि अवांसि=रक्षणानि । आवृणीमहे=याचामहे ॥४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(वरुण+मित्र+अर्य्यमन्) हे वरुण हे मित्र हे अर्य्यमन् ! (वः+महताम्) आप महान् पुरुषों का (अवः) रक्षण, साहाय्य और दान आदि (महि) प्रशंसनीय और महान् है । (अवांसि) उम्र रक्षण आदिकों को आपसे (आवृणीमहे) माँगते हैं ॥४ ॥
भावार्थ
राष्ट्रीय सभासदों के निकट प्रजागण सदा अपनी-अपनी आवश्यकताएँ जनाया करें और उनसे कराया करें ॥४ ॥
विषय
वे प्रजा को पाप से मुक्त करें और प्रजा का पालन करें।
भावार्थ
हे ( वरुण मित्र अर्यमन् ) श्रेष्ठ ! स्नेहवन् ! न्यायकारिन् ! ( वः महताम् ) आप बड़ों का ( महि अवः ) ज्ञान और पालन सामर्थ्य भी बड़ा है। आप लोगों से हम ( अवांसि वृणीमहे ) नाना ज्ञानों, रक्षाओं की याचना करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥
विषय
'स्नेह, निर्देषता व संयम' का महान् रक्षण
पदार्थ
[१] हे (वरुण) = निर्देषता के देव, (मित्र) = स्नेह की देवते तथा (अर्यमन्) = संयम के देव! (महतां वः) = महान् आपका (अवः) = रक्षण भी (महि) = महान् है। [२] हे मित्र, वरुण व अर्यमन् ! हम आपके (अवांसि) = रक्षणों को (आवृणीमहे) = सर्वथा वरते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हमें सदा 'स्नेह, निर्देषता व संयम' का महान् रक्षण प्राप्त हो ।
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